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जलवायु संकट: यमराज हमारे पीछे होंगे और भागने की जगह नहीं मिलेगी

जलवायु संकट इस दशक की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है. इससे जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े दिए गए हैं. संयुक्त राष्ट्र ने इसे “मानवता के लिये कोड रेड” करार दिया है.

जलवायु संकट से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में साफ साफ शब्दों में यह कहा गया है कि आने वाले दशक में पृथ्वी इतनी गरम हो जाएगी कि मानवता खतरे में पड़ जाएगी. संयुक्त राष्ट्र (संरा) की तरफ से सोमवार को जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक पृथ्वी की जलवायु इतनी गर्म होती जा रही है कि एक दशक में तापमान संभवत: उस सीमा के पार पहुंच जाएगा जिसे दुनिया भर के नेता रोकने का आह्वान करते रहे हैं. संरा ने इसे “मानवता के लिये कोड रेड” करार दिया है.

क्या जलवायु संकट से हम निपट सकते हैं?

अभी जो हालात हैं उससे तो शायद नहीं…क्योंकि पर्यावरण के प्रति हमारी बेरुखी ने जलवायु संकट को और बढ़ा दिया है. अमेरिका के वायुमंडलीय अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय केंद्र की वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक और इस रिपोर्ट की सह-लेखक लिंडा मर्न्स ने कहा, “इस बात की गारंटी है कि चीजें और बिगड़ने जा रही हैं. मैं ऐसा कोई क्षेत्र नहीं देख पा रही जो सुरक्षित है…कहीं भागने की जगह नहीं है, कहीं छिपने की गुंजाइश नहीं है.” वैज्ञानिक हालांकि जलवायु तबाही की आशंका को लेकर थोड़ी ढील देते हैं.

पेरिस जलवायु समझौता नहीं आएगा काम

पेरिस जलवायु समझौते पर 2015 में करीब 200 देशों ने हस्ताक्षर किए थे और इसमें विश्व नेताओं ने सहमति व्यक्त की थी कि वैश्विक तापमान को दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) से कम रखना है और वह पूर्व औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फारेनहाइट) से अधिक नहीं हो. कार्बन उत्सर्जन में कितनी कटौती की जाएगी इस पर आधारित भविष्य के सभी पांच परिदृश्य इस समझौते में तय ऊपरी सीमा के पार जा रहे हैं.

यह सीमा मौजूदा की तुलना में एक डिग्री का महज दसवां हिस्सा है क्योंकि पिछली डेढ़ सदी में दुनिया पहले ही लगभग 1.1 डिग्री सेल्सियस (दो डिग्री फारेनहाइट) गर्म हो चुकी है. रिपोर्ट कहती है कि किसी भी सूरत में दुनिया 2030 के दशक में 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान के आंकड़े को पार कर लेगी जो पुराने पूर्वानुमानों से काफी पहले है. आंकड़े दर्शाते हैं कि हाल के वर्षों में तापमान बढ़ा है.

रिपोर्ट में कहा गया कि तीन परिदृश्यों में, दुनिया के दो डिग्री सेल्सियस (3.6 डिग्री फारेनहाइट) तापमान के औद्योगिक काल के पूर्व के समय से ऊपर जाने की आशंका है- दूसरे कारण, कम कठोर पेरिस लक्ष्य- बेहद व्यापक लू के थपेड़ों के साथ, सूखे और भारी बारिश की वजह से बाढ़ आदि हैं, “जबतक कि आगामी दशक में होने वाले कॉर्बन डाई ऑक्साइड और हरित गैस उत्सर्जन में बहुत व्यापक रूप से कमी न की जाए.”

हालात बहुत खराब होने वाले हैं सावधान रहें

यह रिपोर्ट 3000 पन्नों से ज्यादा की है और इसे 234 वैज्ञानिकों ने तैयार किया है. इसमें कहा गया है कि तापमान से समुद्र स्तर बढ़ रहा है, बर्फ का दायरा सिकुड़ रहा है तथा प्रचंड लू, सूखा, बाढ़ और तूफान की घटनाएं बढ़ रही हैं. ऊष्णकटिबंधीय चक्रवात और मजबूत तथा बारिश वाले हो रहे हैं जबकि आर्कटिक समुद्र में गर्मियों में बर्फ पिघल रही है और इस क्षेत्र में हमेशा जमी रहने वाली बर्फ का दायरा घट रहा है. यह सभी चीजें और खराब होती जाएंगी.

रिपोर्ट में कहा गया कि उदाहरण के लिये जिस तरह की प्रचंड लू पहले प्रत्येक 50 सालों में एक बार आती थी अब वह हर दशक में एक बार आ रही है और अगर दुनिया का तापमान एक और डिग्री सेल्सियस (1.8 डिग्री फारेनहाइट) और बढ़ जाता है तो ऐसा प्रत्येक सात साल में एक बार होने लग जाएगा. और इसके बाद आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इंसानियत के लिए कितना बड़ा खतरा खड़ा हो जाएगा.

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