अखिलेश यादव ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया है. समाजवादी पार्टी से जुड़े कुछ लोग इसके समर्थन में नहीं है लेकिन कुछ लोगों को सपा प्रमुख का यह फैसला पसंद नहीं आ रहा.
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने से पहले जातीय गठजोड़ की कवायद तेज हो गई है. सभी राजनीतिक पार्टियां अपने अपने वोट बैंक को जोड़ने और दूसरे के वोट बैंक को तोड़ने की जुगत में हैं. और सभी की नजर है उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों पर…बीएसपी ने अपने ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत अयोध्या से की है. उसके अगले ही दिन बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने गुरु पूर्णिमा पर ब्राह्मण साधु संतों के चरण धोकर आशीर्वाद लिया. और अब अखिलेश यादव भी ब्राह्मणों को रिझाने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन करने जा रही है.
इसकी शुरुआत 23 अगस्त को बलिया से होगी. यही नहीं पार्टी ने प्रदेश के सभी 75 जिलों में भगवान परशुराम के मंदिर बनाने शुरू कर दिए हैं. उधर अयोध्या में हुए बीएसपी के ब्राह्मण सम्मेलन के अगले दिन गुरु पूर्णिमा पर बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने भी ब्राह्म्णों के चरण धोकर आशीर्वाद लिया. परशुराम जयंती की छुट्टी करने वाले मुलायम सिंह काफी पहले से ब्राह्मणों को जोड़ने की कोशिश में रहे हैं.
दरअसल मायावती के ऑपरेशन ब्राह्मण ने अखिलेश यादव के कान खड़े कर दिए हैं और इसीलिए सपा प्रमुख उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों को अपने पाले में खींचने के लिए बलिया से ब्राह्मण सम्मेलनों का आगाज करने वाले हैं. समाजवादी पार्टी प्रबुद्ध सभा के अध्यक्ष मनोज पांडे कहते हैं, ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष का सदैव विभिन्न जाति, समाज के साथ ब्राह्मण समाज के साथ आदर भाव रहा है. 23 तारीख से बलिया से कार्यक्रम हम सब फिर शुरू करने जा रहे हैं. ये हम लोगों का दूसरा चरण होगा. और इसमें हमलोग प्रबुद्ध समाज के लोगों को अधिक से अधिक संख्या में समाजवादी पार्टी के साथ जोड़ने का काम करेंगे.’
समाजवादी पार्टी ने ब्राह्मणों को जोड़ने के लिए परशुराम का सहारा लिया है… बीएसपी तो ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है लेकिन समाजवादी लोगों ने तो भगवान परशुराम के मंदिर बनवा कर उनमें पूजा भी शुरू कर दी है. ऐसे पांच मंदिर वो बलिया, मेरठ, बलरामपुर, जालौन और उरई में बनवा चुके हैं. 70 और जिलों में बनाएंगे. और लखनऊ के मंदिर में परशुराम की 108 फीट ऊंची कांसे की मूर्ति लगेगी.
समाजवादी प्रबुद्ध प्रकोष्ठ का कहना है कि बीएसपी ब्राह्मणों की राजनीति कर रही है. लेकिन वो उनसे दिल से जुड़े हैं. वे एक साल में 57 जिलों में ब्राह्मण सम्मेलन कर चुके हैं. समाजवादी पार्टी की ब्राह्मण वोट बैंक को साधने की कवायद कुछ समाजवादियों को ही रास नहीं आ रही. उनका कहना है कि यह वोट बैंक शुरू से भारतीय जनता पार्टी का कोर वोट रहा है. और मोदी के दौर में ब्राह्मण किसी भी कीमत पर अखिलेश का समर्थन नहीं करेगा. लेकिन अगर फिर भी सपा प्रमुख ब्राह्मणों के वोट हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं तो यह उनका भरम है.
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