सरकारी नौकरियां कहां हैं? जवाब दें योगी जी, अखिलेश को 2022 जिताएगा ‘यूथ आंदोलन’!

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सरकारी नौकरियां कहां हैं? यह सवाल यूपी के युवा 2022 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ से पूछ रहे हैं. लेकिन क्या इसका जवाब सरकार के पास है? क्योंकि यही मुद्दा अखिलेश यादव के लिए बड़ा मौका लेकर आया है.

उत्तर प्रदेश में कुछ महीनों बाद चुनाव होने हैं और सभी राजनीतिक दल अपने अपने हिसाब से 2022 की तैयारियों में लगे हुए हैं. लेकिन मुसीबत सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के सामने है क्योंकि यूपी के युवा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से पूछ रहे हैं कि सरकारी नौकरियां कहां हैं. सरकार के पास युवाओं के इस सवाल का जवाब तो नहीं है लेकिन कुछ सरकारी आंकड़े जरूर है जिसके सहारे यह दावा किया जा रहा है कि पिछले 4 सालों में उत्तर प्रदेश में रोजगार देने के रिकॉर्ड बने हैं.

‘सरकारी नौकरियां कहां हैं इसका जवाब दीजिए बातें ना बनाइए’

22 जून को लखनऊ में SCERT कार्यालय पर सैकड़ों की तादाद में छात्र छात्राओं ने धरना-प्रदर्शन किया. इनकी मांग थी कि शिक्षक भर्ती मे आरक्षण घोटाले तथा 1.37 लाख शिक्षक भर्ती पूरा किया जाए. धरना प्रदर्शन कर रहे छात्र-छात्राओं का कहना है की सरकारी नौकरियां ना के बराबर हैं और सरकार झूठे आंकड़ों के सहारे तस्वीर को बेहतर करने की बात कर रही है. धरना दे रहे छात्र आमोद बताते हैं, “मैं पिछले 4 सालों से सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा हूं. लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते मेरी जिंदगी बर्बाद हो गई है”

उन्होंने बताया शिक्षक भर्ती में आरक्षण घोटाला हो या फिर शिक्षक भर्ती का लटकाया जाना. हमारे लिए यह जीने और मरने का सवाल है. आमोद कहते हैं, “कोई सरकार से पूछे कि सरकारी नौकरियां कहां हैं. सरकार के पास इसका कोई जवाब नहीं है सिवाय झूठे आंकड़ों के अलावा” आमोद जैसे सैकड़ों युवा 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले योगी आदित्यनाथ के लिए मुसीबत बन सकते हैं. क्योंकि जिन युवाओं के समर्थन के सहारे बीजेपी सत्ता तक पहुंची आज वही युवा सरकारी नौकरी की तलाश में दर-दर भटक रहा है और उसके सामने रोटी रोजगार का संकट खड़ा हो गया है.

सरकारी नौकरी तो दूर प्राइवेट नौकरियों के भी लाले हैं

CMIE की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना की दूसरी लहर में अप्रैल-मई के महीने में 2.27 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए. बेरोजगारी दर 12% पहुँच गयी. मोदी सरकार के नोटबन्दी और अनियोजित लॉकडाउन जैसे विनाशकारी कदमों के चलते अर्थव्यवस्था जिस रसातल में पहुंच चुकी है, वहां एक बार बेरोजगार होने के बाद फिर रोजगार मिल पाना कठिन है, विशेषकर वेतन वाली नौकरियों में. जिनको काम पुनः मिल भी रहा है, उन्हें कम वेतन तथा बदतर सेवा शर्तों वाली नौकरियों से सन्तोष करना पड़ रहा है.

पहली लहर में जिन लोगों का काम गया, उसमें से 55 लाख लोग पहली लहर खत्म होने के बाद भी, मार्च 21 तक पुनः काम नहीं पा सके थे। (कोरोना के पहले 2019-20 में सभी क्षेत्रों में मिलाकर कुल रोजगार प्राप्त लोगों की संख्या 40 करोड़ 35 लाख थी, जो मार्च 21 में 39 करोड़ 80 लाख रह गयी थी). असंगठित क्षेत्र जहां नियमित नौकरियों के अभाव में हमारी विराट मेहनतकश आबादी ( कुल रोजगार का 93% ) जीविका का अर्जन करती है, वह पूरी तरह ध्वस्त हो चुका है.

अब तो मनरेगा में मजदूरी मिलना भी हुआ है मुश्किल

20 जून के Indian Express में एक बेहद चौंकाने वाली खबर आयी, पिछले साल मई के 42.29 लाख की तुलना में इस साल मई में मात्र 8 लाख लोगों ने मनरेगा के तहत काम किया अर्थात 83% की अकल्पनीय गिरावट हुई, यहां तक कि यह संख्या 2019 मई के 11.33 लाख से भी 29% कम है. ( राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा पिछली मई के 3.30 करोड़ के सापेक्ष 2.18 करोड़ रहा, 34% की गिरावट के साथ). इससे समझा जा सकता है कि सरकार के दावों के विपरीत उत्तर प्रदेश के गांवों में महामारी का कहर कितना खौफनाक था कि उस दौरान 83% लोगों को आजीविका से वंचित होना पड़ा!

सरकारी नौकरियों का मुद्दा अखिलेश को दे सकता है बड़ा मौका

2022 के विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव युवाओं को समाजवादी पार्टी से जोड़ने या समाजवादी पार्टी को वोट करने के लिए मना सकते हैं और इसमें उनकी मदद करेगा रोजगार का मुद्दा. यूपी चुनाव में रोजगार का मुद्दा एक ऐसा मुद्दा साबित होने वाला है जो सत्ता परिवर्तन का दम रखता है. उत्तर प्रदेश मोदी-योगी की डबल इंजन सरकार की संवेदनहीनता का सबसे बदतरीन शिकार है. क्योंकि दूसरी लहर की मार अबकी बार सुदूर गांवों, कस्बों तक थी और प्रदेश में बड़े पैमाने पर प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली से बेरोजगार होकर इस दौरान वापस लौटे थे.

आये दिन प्रदेश के किसी न किसी इलाके से भुखमरी और आत्महत्या की दिलदहला देने वाली खबरें आ रही हैं. बरेली में एक परिवार के बच्चों ने घर से निकलकर पड़ोसी को बताया कि पापा 3 दिन से घर मे खुदकशी कर लटके हैं, हम लोग भूखे हैं. अलीगढ़ में परिवार के मुखिया की पहली लहर में मौत हो गयी, महिला जो 4000 रुपये महीने की नौकरी कर अपने 5 बच्चों को पाल रही थीं, उनकी नौकरी दूसरी लहर में चली गयी. इस तरह की तमाम घटनाएं उत्तर प्रदेश में घट रही हैं लेकिन सरकार का दावा है कि सब चंगा है.

सरकारी नौकरियां ना मिलने से खुदकुशी करने को मजबूर है युवा

उत्तर प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारी का आलम यह है कि प्रतियोगी छात्रों और शिक्षा के ऐतिहासिक केंद्र इलाहाबाद से निराश युवक-युवतियों की खुदकशी की उदास कर देने वाली खबरें आती रहती हैं. जाहिर है इस भयावह मंजर का political repercussion होगा. चुनाव वर्ष में इस आशंका से घबराई योगी सरकार पूरे आत्मविश्वास के साथ बड़े बड़े झूठ बोल कर वैतरणी पार करना चाहती है. अन्य तबकों का गुस्सा तो शायद मौन ढंग से वोट के माध्यम से फूटेगा, पर छात्र नौजवान इनके झूठ का मुखर विरोध कर रहे हैं और आने वाले दिनों में बड़े आंदोलन की तैयारी में हैं.

CMIE के अनुसार 2020-21 में salaried jobs में 98 लाख की गिरावट हुई, 2019-20 के 8 करोड़ 59 लाख से घटकर मार्च, 21 में 7.62 करोड़ नौकरियां बचीं। इनमें से ग्रामीण क्षेत्र में जिन 60 लाख लोगों की नौकरियां गईं, वे व्यवसाय बंद होने से खेती की ओर लौटे 30 लाख लोगों के साथ आकर जुड़ गए। इस तरह कृषि पर 90 लाख लोगों का अतिरिक्त बोझ आ गया। जाहिर है, यह disguised unemployment ही है जो कृषि-उत्पादकता बढ़े बिना लंबे समय तक sustainable नहीं है.

सरकारी नौकरियां कहां हैं? यह सवाल तो जरूर पूछा जाएगा

सरकार लाख कोशिश कर ले, पड़ोसी राज्य बिहार में जिस तरह लाखों सरकारी नौकरियों को भरने का सवाल एक तरह से चुनाव का केंद्रीय मुद्दा बन गया था, वैसे ही यह उत्तर प्रदेश में भी बनेगा. अखिलेश यादव की नजर ऐसे ही युवाओं पर है जो सरकार के कामकाज से नाखुश हैं. सच तो यह है कि पश्चिम बंगाल में भी अंतर्धारा के बतौर आम जनता विशेषकर युवाओं के बीच चुनावी विमर्श में यह बेहद अहम सवाल था और मोदी-भाजपा की करारी शिकस्त में रोजगार के मोर्चे पर उसकी विफलता और विश्वासघात से उपजी नाराजगी ने भी भूमिका निभाई.

दरअसल, बिहार चुनाव के ठीक पहले पिछले साल 17 सितंबर को मोदी जी के जन्मदिन पर पूरे देश में छात्र-युवाओं ने राष्ट्रीय बेरोजगारी दिवस का जो आह्वान किया था, वह #NationalUnemploymentDay और #राष्ट्रीयबेरोजगारीदिवस पूरे दिन सोशल मीडिया में टॉप ट्रेंड करता रहा, यह 46 लाख बार शेयर किया गया!

रोजगार के लिए जगह-जगह आंदोलन कर रहे हैं युवा

छात्र-नौजवान इलाहाबाद से लेकर अमृतसर तक, कोल्हापुर से लेकर भोजपुर-समस्तीपुर तक सड़क पर उतरे. पूरे देश में जगह जगह छात्रों-नौजवानों पर लाठीचार्ज हुआ और गिरफ्तारी हुई. इलाहाबाद में युवा मंच के आह्वान पर, बालसन चौराहे पर छात्रों का हुजूम सड़क पर उतरा था. लखनऊ में सारे नियम-कानून, मर्यादा को तार-तार करते विश्वविद्यालय की छात्रा को बेहद आपत्तिजनक ढंग से दबोचे मर्द पुलिस वाले कि तस्वीर वायरल हो गयी थी.

उस दिन शाम को BHU से लेकर आरा, सिवान, पटना पूरे बिहार से मशाल जुलूस के वीडियो आते रहे, ” छात्र-युवा की जली मशाल, भागे तानाशाह और दलाल”! ट्विटर पर मोदीजी के जन्मदिन के शुभकामना संदेशों को बहुत पीछे छोड़ते हुए नौजवानों का ट्विटर स्टॉर्म #17Sept17hrs17minutes पर छाया रहा था.

उत्तर प्रदेश में संगठित आंदोलन खड़ा करने की तैयारी कर रहे बेरोजगार

इस बीच उत्तर प्रदेश के अंदर रोजगार के सवाल पर एक संगठित आंदोलन खड़ा करने के लिए 10 युवा-छात्र संगठनों ने छात्र युवा रोजगार अधिकार मोर्चा का गठन किया है. इसमें ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन(AISA), स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI ), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (AISF), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन (AIDSO), इंकलाबी छात्र मोर्चा (ICM), रिवॉल्यूशनरी यूथ एसोसिएशन (RYA), डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन आफ इंडिया (DYFI), ऑल इंडिया यूथ फेडरेशन (AIYF), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक यूथ ऑर्गेनाइजेशन (AIDYO), विद्यार्थी युवजन सभा शामिल हैं.

छात्र-युवाओं ने ‘ आंकड़ों में मत उलझाओ, रोजग़ार कहाँ है ये बतलाओ’ नारे के साथ सभी रिक्त पदों को भरने और सभी नौजवानों को सम्मानजनक रोजगार की गारंटी के लिए प्रदेशव्यापी आंदोलन में उतरने का एलान किया है.

क्यों कामयाब नहीं हो रही रोजगार देने की सरकारी कोशिशें?

5 जून को युवा मंच व अन्य संगठनों के संयुक्त आह्वान पर आयोजित यूपी बेरोजगार दिवस पर 10 लाख से ज्यादा ट्वीट हुए और यह ट्विटर पर घंटों ट्रेंड करता रहा. सरकारी नौकरियां कहां हैं? इसका जवाब योगी सरकार के पास नहीं है. लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें युवाओं को इसका जवाब देना होगा. अखिलेश यादव युवाओं के इसी आक्रोश में अपने लिए मौका तलाश रहे हैं और रोजगार के मुद्दे पर प्रखर हो रहे हैं.

आज सच्चाई यह है कि मिशन रोजगार, इन्वेस्टर समिट, रोजगार मेला, एक जिला-एक उद्योग जैसे तमाशों और जुमलों के बावजूद पिछले साढ़े चार साल में प्रदेश में न नया औद्योगीकरण हुआ है, न कृषि आधारित उद्योगों का विकास हुआ है न सेवा क्षेत्र में कोई गतिशीलता आयी है क्योंकि पूरी अर्थव्यवस्था चौपट है. जब अर्थव्यवस्था में गति नहीं, विकास नही तो कथित स्किल्ड लोग भी कहां जॉब पाएंगे? बदहाल कानून-व्यवस्था, साम्प्रदायिक राज्य-संचालन और अन्य कारणों से राज्य में निजी निवेश आ नहीं रहा है, सार्वजनिक निवेश सरकार कर नहीं रही है, फिर रोजगार पैदा कैसे होगा?

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