मुलायम सिंह यादव भी समझ रहे हैं कि 2022 में अगर समाजवादी पार्टी को सत्ता नहीं मिली तो फिर अखिलेश यादव के लिए आगे की राजनीति मुश्किल होगी. इसलिए उम्र के इस पड़ाव पर भी वह सक्रिय हैं. उन्होंने चुनाव के लिए एक मास्टर प्लान बनाया है.
लखनऊ के सियासी गलियारों में इस वक्त हलचल कुछ तेज है. गहमागहमी का माहौल है 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में व्यस्त हैं. हलचल दो खेमों में ज्यादा हो रही है. एक खेमा है सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी का. और दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी जो 2022 में वापसी की तैयारी कर रही है. समाजवादी पार्टी के लिए ‘करो या मरो’ वाले हालात पैदा हो गए हैं. इसलिए पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव की शरण में हैं. छनती छनती खबर आ रही है की सेहत की दुश्वारियां के बावजूद भी मुलायम सिंह यादव अखिलेश के लिए मास्टर प्लान तैयार कर चुके हैं.
‘मुलायम बेल्ट’ का मास्टर प्लान, बीजेपी को करेगा परेशान
सूत्रों से मिली खबर बताती है की उत्तर प्रदेश की सियासी नब्ज पहचानने में माहिर माने जाने वाले मुलायम सिंह यादव ने ‘मुलायम बेल्ट’ का मास्टर प्लान अखिलेश को समझाया है. यह वही बेल्ट है जिसने मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाया और अखिलेश को सत्ता तक पहुंचाने में अहम योगदान दिया. लेकिन 2014 के लोकसभा के बाद से इस बेल्ट का वोटर वोटर सपा के हाथ से फिसल कर बीजेपी की झोली में चला गया. इसके बाद 2017 और 2019 के चुनावों में भी इस वोटर ने बीजेपी का साथ नहीं छोड़ा नतीजा यह हुआ समाजवादी पार्टी चारों खाने चित हो गई. लेकिन 2021 के पंचायत चुनाव में हवा ने अपना रुख बदला है और अब यह वोटर दोबारा से सपा की तरफ उम्मीद भरी नजर से देख रहा है. किसी नजर को परख कर मुलायम ने तैयार किया है एक मास्टर प्लान.
‘मुलायम बेल्ट’ का गणित और क्यों हार सकती है बीजेपी?
उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के खिलाफ उपजा आक्रोश यूं ही नहीं है इसके लिए कई कारण जिम्मेदार हैं इन कारणों पर फिर कभी बात करेंगे पहले आपको यह बता दें कि कौन सा गणित पिता मुलायम ने बेटे अखिलेश को समझाया है. इस गणित को समझने से पहले आपको इटावा जिले के मिजाज को समझना होगा. अभी हाल ही में संपन्न हुए पंचायत चुनावों में बीजेपी ने सभी 24 जिला पंचायत सदस्य की सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, सांसद से लेकर विधायक तक ने यहां प्रचार किया था और पूरा जोर लगाया था, लेकिन शिवपाल-अखिलेश के अंदरूनी गठजोड़ के चलते बीजेपी यहां महज एक सीट ही जीत सकी. वहीं, अब जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सपा का साथ प्रसपा दे सकती है, क्योंकि जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में दोनों के साथ आने का प्रयोग कामयाब रहा है. यही प्रयोग अब अध्यक्ष के चुनाव में दोहराने की तैयारी में दोनों दल लगे हैं.
इटावा जिला पंचायत में सपा का 32 सालों से कब्जा है और अगला अध्यक्ष भी सपा से होगा यह चुनाव के नतीजों ने तय कर दिया है. लेकिन यह वही इटावा जिला है जहां बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में इटावा जिले में दो सीटों और 2014-2019 में इटावा संसदीय क्षेत्र फतह की थीं. इस जीत में बीजेपी का मनोबल बढ़ाया था लेकिन पंचायत चुनाव में इटावा की कुल 24 सीटों में से बीजेपी को सिर्फ एक सीट पर ही जीत मिली है.
इटावा जिला पंचायत पर तीन दशक से ज्यादा से सपा का कब्जा है. 1989 में सपा के प्रो रामगोपाल यादव जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे. इसके बाद शिवपाल यादव अध्यक्ष बने. 2006 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई राजपाल सिंह यादव की पत्नी प्रेमलता यादव जीतीं. उन्होंने दो कार्यकाल पूरे किए और 2016 में उनके बेटे अभिषेक यादव उर्फ अंशुल जिला पंचायत अध्यक्ष बने. इस बार भी जिला पंचायत की कुर्सी पर अभिषेक यादव के काबिज होने की संभावना दिख रही हैं, क्योंकि शिवपाल सिंह यादव ने भी चुनावों के बाद परिवार में एका के संकेत दिए थे.
पंचायत चुनाव में सेट की यूपी में सियासी जमीन
जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में सत्ताधारी बीजेपी और सपा के बीच कांटे का मुकाबला होने की संभावना दिख रही है. सूबे में कई जिलों में निर्दलीय ही निर्णायक स्थिति में हैं, जिनमें शिवपाल यादव के काफी समर्थक भी जीतकर आए है. खासकर इटावा, मैनपुरी, औरया, कन्नौज, फिरोजाबाद जैसे जिले में, जिन्हें मुलायम परिवार के प्रभाव वाला इलाका माना जाता है. या यूं कहें कि इसे ‘मुलायम बेल्ट’ कहा जाता है. यहां लंबे अरसे से सपा का सियासी प्रभुत्व रहा है. मुलायम बेल्ट में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में अगर शिवपाल और अखिलेश साथ आते हैं तो बीजेपी की चुनौतियों से निपट ही नहीं सकते बल्कि उसे मात भी दे सकते हैं. यही आंकड़े पिता मुलायम ने अखिलेश यादव को समझाए हैं.
मुलायम की प्लानिंग से पड़ा है फर्क
- फिरोजबाद के जिला पंचायत की कुल 33 सीटों में से सपा 16 और शिवपाल यादव की पार्टी के दो सदस्य जीते हैं. इसके अलावा बसपा के तीन, बीजेपी के 5 और 7 निर्दलीय विजयी उम्मीदवार हैं. ऐसे में अखिलेश और शिवपाल मिलकर आसानी से जिले पर अपना कब्जा बरकरार रख सकते हैं.
- मैनपुरी जिला पंचायत सदस्य की 30 सीटें हैं, जिनमें से 12 सपा, 9 निर्दलीय, 8 बीजेपी और एक पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है.
- कन्नौज जिले की कुल 28 सीटें हैं, जिनमें से 11 सपा, 6 बीजेपी, 1 बसपा और 10 पर निर्दलीय जीते हैं. मैनपुरी-कन्नौज जिले में निर्दलीय में शिवपाल के कई समर्थक भी हैं. ऐसे में शिवपाल और अखिलेश हाथ मिलकर अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए क्या रणनीति हो सकती है?
अखिलेश यादव को पिता मुलायम ने सिर्फ यादव बेल्ट का गणित ही नहीं समझाया है बल्कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश और मध्य उत्तर प्रदेश की रणनीति भी समझाई है. क्योंकि सपा पश्चिमी यूपी में आरएलडी के साथ भी तालमेल कर बेहतर परिणाम ले आई. बागपत से लेकर गाजियाबाद, बिजनौर, मेरठ, शामली, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़ में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में सपा-आरएलडी गठजोड़ बीजेपी के लिए चुनौती बन सकता है. मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव अखिलेश यादव को छोटे दलों के साथ हाथ मिलाने का फॉर्मूला दिया था जो हिट होता नजर आ रहा है और माना जा रहा है कि सपा जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में इसी रणनीति पर पश्चिम यूपी से लेकर सेंट्रल यूपी में अपना सियासी वर्चस्व कायम रखेगी.
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