विश्व महिला दिवस ( International women’s Day special) पर हम आपको भारत की उन महिलाओं की हकीकत से रूबरू कराने जा रहे हैं. जो सरकारी कागजों पर तो सशक्त हैं लेकिन हकीकत बहुत अलग है. कई औरतें सबसे ज़्यादा सशक्त और आज़ाद तब महसूस करती हैं जब वो अकेली कहीं जाती हैं. लेकिन पंचायत चुनाव लड़ने वाली औरतें अकेले वह काम ही नहीं करती जिसकी जिम्मेदारी उन्हें लोकतंत्र ने दी है.
सुनिए प्रोफेसर पूर्णिमा जैन के अनुभव जो एक दिन घर से अकेली ही निकल पड़ीं, जिसके बाद से उनकी ज़िंदगी के सफ़र को एक अलग ही दिशा मिली. उन्होंने सिर्फ़ अपनों की ही नहीं बल्कि ख़ुद की भी ख़ुशी और ख्वाहिशों का ख़याल रखा. दयालबाग शिक्षण संस्थान में पॉलिटिकल साइंस और सोशियोलॉजी की विभागाध्यक्ष रहते हुए उन्होंने उन तमाम ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी को करीब से देखा जो लोकतांत्रिक तरीके से ग्राम पंचायत प्रधान बनी लेकिन उनके मुकद्दर में चूल्हा चौका ही रहा. राजनीति ऑनलाइन के खास कार्यक्रम सुनिए! गांव की बात के International women’s Day special कार्यक्रम में प्रोफेसर पूर्णिमा जैन से बात की शिवप्रताप ने…
International women’s Day Exclusive
गांव की महिलाएं अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हों यही हमारी कोशिश है.
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