किसान आंदोलन को तेज करने के लिए हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला में एक किसान महापंचायत का आयोजन किया गया. किसान संगठनों की अब कोशिश है कि सरकार को झुकाने के लिए महापंचायतों के जरिए दलित लोगों को भी इससे जोड़ा जाए. जिससे कि देशभर में इस आंदोलन को व्यापक रूप से बढ़ाया जा सके.
Farmers Protest : किसान आंदोलन को मजबूत करने के लिए महापंचायत को संबोधित करते हुए चढूनी ने किसान नेताओं से हरियाणा और पंजाब में ऐसी महापंचायत आयोजित नहीं करने की अपील की है. केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसान संगठनों की कोशिश है कि इसे और हवा देने के लिए कुछ और समुदायों को भी जोड़ा जाए. इसी सिलसिले में हरियाणा के हिसार जिले के बरवाला में एक किसान महापंचायत का आयोजन किया गया. किसानों की यह महापंचायत दलितों को लेकर था. किसान संगठनों की अब कोशिश है कि सरकार को झुकाने के लिए महापंचायतों के जरिए दलित लोगों को भी इससे जोड़ा जाए. जिससे कि देशभर में इस किसान आंदोलन को व्यापक रूप से बढ़ाया जा सके. शनिवार को बरवाला में हुए किसान महापंचायत में भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रधान गुरनाम सिंह चढूनी ने हिस्सा लिया.
किसान आंदोलन को और तेज करने की तैयारी
बता दें कि, हरियाणा की बीस प्रतिशत आबादी अनुसूचित जातियों की है. इसलिए किसान आंदोलन से इन जातियों को जोड़ने की रणनीति बनाई गई है. महापंचायत में चढूनी ने किसानों और दलितों के बीच अधिक सामंजस्य बनाने का आह्वान किया. इस दौरान एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें किसानों को अपने घरों में दलित आइकन डॉ बीआर आंबेडकर की तस्वीर रखने के लिए कहा गया. साथ ही दलितों को सर छोटूराम की तस्वीर रखने के लिए कहा गया. इस दौरान चढूनी ने कहा, “हमारी लड़ाई न केवल सरकार के खिलाफ है बल्कि पूंजीपतियों के खिलाफ भी है. सरकार हमें आज तक विभाजित करती रही है, कभी जाति के नाम पर या कभी धर्म के नाम पर. आप सभी सरकार की इस साजिश को समझें” उन्होंने कहा कि आपसी भाईचारे को मजबूती प्रदान करने के लिए हमारे दलित भाई अपने घरों में सर छोटूराम की फोटो और किसान भाई अपने घरों में डॉ बीआर आंबेडकर की फोटो लगाएं.
किसान आंदोलन को दबाने के लिए राजद्रोह का इस्तेमाल
किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने वाले लोगों के खिलाफ सरकार राजद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है. भारतीय दंड संहिता का ये क़ानून किसी भी उस कार्रवाई को अपराध की श्रेणी में रखता है जिसमें “सरकार के प्रति असहमति जताया गया है या फिर इसकी कोशिश की गई है.” इसमें सज़ा के तौर पर जुर्माना या फिर अधिकतम उम्र कैद की सज़ा या फिर दोनों ही हो सकती है. सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक करने या फिर उसे शेयर करने, कार्टून बनाने, यहाँ तक की स्कूल में नाटक खेलने को लेकर भी इस क़ानून का इस्तेमाल किया गया है. जब भारत ब्रितानी हुकूमत के अंदर था तब यह क़ानून 1870 के दशक में लाया गया था.
वकीलों, पत्रकारों और अकादमिकों के एक समूह आर्टिकल 14 के आंकड़ों के मुताबिक पिछले पांच सालों में औसतन 28 फ़ीसद के हिसाब से हर साल राजद्रोह के मामलों में भारत में वृद्धि देखी गई है. हाल के दिनों में किसान आंदोलन के पक्ष में बोलने वालों के खिलाफ राजद्रोह कानून का इस्तेमाल खुलकर किया गया. किसान आंदोलन से पैदा हुए आक्रोश को दबाने के लिए सरकार इस क़ानून का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन वक्त के साथ ही आंदोलन और ज्यादा ताकतवर होता जा रहा है.
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