जर्मनी में सड़कों पर ट्रैक्टर लेकर पहुंचे किसान, शहर हुआ जाम

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जो लोग दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली का विरोध कर रहे थे उन्हें जरा उन्हें जरा जर्मनी की ट्रैक्टर रैली देखनी चाहिए. भारत में सरकार से किसानों की नाराजगी के बीच जर्मनी के किसान भी एक प्रस्तावित कानून से नाराज हैं. भारत के किसान अपनी फसल के दामों को लेकर चिंतित हैं तो जर्मन किसानों को अपनी पैदावार कम होने की आशंका है.

जिन्हें दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर लाने से देशद्रोह नजर आता है उन्हें जर्मनी की ट्रैक्टर रैली देखनी चाहिए. जर्मनी में सरकार से किसान एक कानून को लेकर नाराज हैं. जर्मन सरकार ने एक कानून का प्रस्ताव रखा है जिसका मकसद कीटों की आबादी में हो रही बड़ी गिरावट को रोकना है. इसे “कीट संरक्षण” कानून का नाम दिया गया है. इसमें खेती बाड़ी में कीटनाशकों के इस्तेमाल को कम करने पर जोर दिया गया है. इसे अभी संसद से पारित होना बाकी है. लेकिन इसके विरोध में सैकड़ों जर्मन किसान ट्रैक्टर लेकर राजधानी बर्लिन में पहुंच गए. मंगलवार को बर्लिन के ऐतिहासिक ब्रांडेनबुर्ग गेट पर किसानों ने “किसान नहीं तो खाना नहीं और भविष्य नहीं” जैसे नारों के साथ विरोध जताया.

जर्मनी के किसानों की ट्रैक्टर रैली और भारत के किसानों का आंदोलन एक ही जैसा है फर्क सिर्फ इतना है कि जर्मनी में किसानों को देशद्रोही और आतंकवादी नहीं कहा जा रहा. जर्मनी की सरकार के नए कानून का मकसद खरपतवार को रोकने वाले विवादित कीटनाशक ग्लिफोसेट के इस्तेमाल को धीरे धीरे 2023 के अंत तक रोकना है. इसके तहत राष्ट्रीय पार्कों में हर्बीसाइड और इंसेक्टीसाइड के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. रात के दौरान प्रकाश प्रदूषण को रोकना भी इसका लक्ष्य है.

जर्मनी की पर्यावरण मंत्री स्वेन्या शुत्से कहती हैं, “लोग कीटों के बिना नहीं रह सकते हैं.” वह नए कानून को “कीटों और भविष्य में हमारे इको सिस्टम के लिए खुशखबरी” मानती हैं. यह कानून जल स्रोतों के पास भी पेस्टीसाइड के इस्तेमाल को कम करने पर जोर देता है. ऐसा नहीं है कि जर्मनी में सरकार के इस कानून के समर्थन में किसान नहीं है. कुछ किसानों ने इन कानून का समर्थन भी किया है लेकिन जो किसान विरोध कर रहे हैं उन्होंने अपने ट्रैक्टर शहर की सड़कों पर घुसा दिए.

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दुनिया भर में किसान अपनी फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन इससे बड़ी संख्या में अन्य कीट भी मारे जाते हैं. कीड़े ना सिर्फ हमारे ईको सिस्टम में बड़ी भूमिका निभाते हैं, बल्कि वे परागण के लिए भी जरूरी है. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि दुनिया भर में एक तिहाई खाद्य उत्पादन परागण पर ही निर्भर करता है. जर्मन कृषि मंत्री यूलिया क्लोएकनर ने कहा कि संरक्षित इलाकों में उगने वाली कुछ फसलों को सख्त नियमों से रियायत दी जाएगी. जैसे वाइन के लिए अंगूरों की खेती अपवाद होगी.

दूसरी तरफ, जर्मन किसान संघ के अध्यक्ष योआखिम रुकवीड ने नए कानून की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने इसे “अल्पदर्शी” और “कृषि उद्योग और प्रकृति संरक्षणवादियों के बीच सहयोग के लिए बुरा संकेत” बताया है. उन्होंने कहा, “कानून बहुत से किसान परिवारों के लिए अस्तित्व का खतरा पैदा करता है.” लेकिन जर्मनी के पर्यावरण समूह ने प्रस्तावित कानून का समर्थन किया है.

जीवविज्ञानी लंबे समय से कीड़ों की संख्या में आ रही कमी के प्रति चेतावनी देते रहे हैं. उनके मुताबिक इससे प्रजातियों की विविधता घट रही है और ईको सिस्टम को नुकसान हो रहा है. इससे परागण और खाद्य श्रृंखला पर भी असर पड़ रहा है. 2017 में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी उन पहले देशों में है जिन्होंने कीड़ों की संख्या में आ रही कमी का मुद्दा उठाया.

दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि नए कदमों का बोझ उन्हीं पर पड़ेगा. उनके मुताबिक कड़े नियमों का मतलब है कि जर्मन किसान विदेश से आने वाले सस्ते कृषि उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. जर्मन किसान संघ का कहना है कि नए उपायों से कृषि लायक जमीन में सात प्रतिशत की कमी हो जाएगी.

https://youtu.be/yfyf8AMwKKs

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