उत्तराखंड: ‘प्रलय’ आने से पहले और बाद में क्या हुआ?
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में रविवार को ग्लेशियर फटने के बाद आई बाढ़ के बाद राहत और बचाव कार्य जारी है. राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र की ओर से बीती रात जारी की गई सूचना के मुताबिक़, अभी तक 26 शव बरामद किये जा चुके हैं. 171 लोग अब भी लापता हैं.
सात फरवरी को ग्लेशियर फटने की वजह से धौली गंगा और अलकनंदा नदी में बाढ़ आ गई थी. प्रभावित इलाक़े में सेना, आईटीबीपी, एसडीआरएफ़ और एनडीआरएफ़ की संयुक्त टीमें राहत और बचाव कार्य में जुटी हुई हैं. इस त्रासदी में तपोवन हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर डैम जिसे ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के नाम से भी जाना जाता है, पूरी तरह तबाह हो चुका है. राज्य के मुख्यमंत्री ने बीते दिन आपदाग्रस्त जोशीमठ इलाक़े का दौरा किया. दौरे के बाद उन्होंने कहा था कि,
“बचाव दल तपोवन सुरंग के 130 मीटर अंदर तक जा चुका है. अब और 50 मीटर अंदर तक पहुंचने में ढाई से तीन घंटे का वक्त लग सकता है.”
उत्तराखंड के पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार ने समाचार एजेंसी एएएनआई को बताया है कि चमोली में एनटीपीसी की परियोजना से जु़ड़ी एक सुरंग को खोलने के प्रयास जारी हैं. रविवार को ग्लेशियर हादसे के बाद अचानक बाढ़ आने से सुरंग में कई मज़दूर फँस गए थे.
देहरादून में आईटीबीपी के सेक्टर मुख्यालय की डीआईजी अपर्णा कुमार ने बताया,” कल रातभर वहां(तपोवन टनल में) सेना, आईटीबीपी, एसडीआरएफ़ और एनडीआरएफ़ की टीम मलबा निकालने में लगी हुई थी.”
उत्तराखंड में दूसरी बार कैसे आई प्रलय?
रविवार सुबह दस बजे के आस-पास उत्तराखंड के चमोली ज़िले में कुछ नदियों में अचानक से पानी बढ़ गया. दरअसल नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से भूस्खलन हुआ और धौली गंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया जिससे अफ़रा-तफ़री मच गई. इससे वहाँ एनटीपीसी की दो पनबिजली परियोजनाओं से जुड़ी सुरंगों में पानी भर गया और वहाँ मज़दूर फँस गए.
पानी के रास्ते में आने वाले कई घर भी बह गए. निचले इलाक़ों में आबादी वाले इलाक़ों में भी नुक़सान की आशंका है. प्रशासन ने ख़तरे को देख फ़ौरन कई गाँवों को खाली करवाया और लोगों को सुरक्षित इलाक़ों में ले जाया गया. पानी का स्तर बढ़ने के कारण बचाव कार्य को बीती रात कुछ देर रोकना पड़ा था.
जानकारों को कहना है कि इनकी वजह से जंगल काटे जा रहे हैं, नदी-नाले के बहाव को रोका जा रहा है. प्रकृति से जब इस तरह से छेड़-छाड़ होती है, तो वो अपने तरीक़े से बदला लेती है. केदारनाथ में हुए 2013 के हादसे के बाद वहाँ चार धाम परियोजना पर काम शुरू है. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस परियोजना में 56 हज़ार पेड़ काटे जाने हैं.
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