‘किसान आंदोलन में राजनीतिक मौका देख रहे हैं अरविंद केजरीवाल’
दिल्ली बॉर्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों को 1 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है. सरकार और किसानों के बीच हुई बातचीत कामयाब भले ही ना हो पाई हो लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल किसानों के मुद्दे पर बेहद आक्रामक हैं. क्या केजरीवाल को किसानों में अपना राजनीतिक भविष्य दिखाई दे रहा है?
अन्ना आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के विस्तार के लिए किसानों के आंदोलन को बहुत बारीकी से भुनाने की जुगत में लगे हुए हैं. इसी आंदोलन के दौरान उन्होंने आम आदमी पार्टी के उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में चुनाव लड़ने का ऐलान किया और इसी आंदोलन के दौरान संजय सिंह के अलावा दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश की बीजेपी शासित सरकारों को चुनौती देते हुए नजर आए. अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर बारीक नजर रखने वाले बताते हैं कि केजरीवाल बीजेपी के विकल्प के रूप में खुद को स्थापित करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
वहीं, आम आदमी पार्टी का दावा है कि वो किसानों के साथ उस दिन से खड़ी है जब से ये क़ानून लोकसभा और राज्य सभा में पास किए गए थे. इस मुद्दे पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बादल और केजरीवाल के बीच पिछले कई हफ़्तों से ‘ट्विटर जंग’ छिड़ी हुई रही. कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, “इन कृषि क़ानूनों के बारे में किसी भी मीटिंग में कोई चर्चा नहीं की गई थी और अरविंद केजरीवाल आपके बार-बार दोहराये गए झूठ से ये नहीं बदलने वाला है. और बीजेपी भी मुझपर दोहरे मापदंड रखने का आरोप नहीं लगा सकती है क्योंकि आपकी तरह मेरा उनसे किसी किस्म का गठजोड़ नहीं है.”
अब अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर विपक्षी पार्टियां भले ही कोई राय रखती हो लेकिन इतना तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि अरविंद केजरीवाल आंदोलन से होने वाले फायदे को समझ रहे हैं. शायद उनको लग रहा है कि पंजाब में पैर जमाने के लिए इस आंदोलन से फायदा उठाया जा सकता है. पंजाब में अकाली दल और कांग्रेस के विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी को स्थापित करने के लिए इस आंदोलन में अरविंद केजरीवाल को एक मौका दिखाई दे रहा है. और ना सिर्फ पंजाब में बल्कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी आम आदमी पार्टी अपने विस्तार को लेकर बेहद सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रही है.
साल 2017 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब के चुनाव में 20 सीटें हासिल करके प्रमुख विपक्षी दल के रूप में पंजाब की राजनीति में एक जगह हासिल की थी. लेकिन इसके बाद आम आदमी पार्टी में कई स्तरों पर आपसी कलह सामने आई. एक ओर आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में दख़ल बढ़ाती हुई दिख रही है, वहीं पार्टी ने गुजरात और उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने का एलान कर दिया है. पार्टी ने 2022 में उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव को लड़ने का फ़ैसला कर लिया है. इसके साथ साथ पार्टी ने अपनी तरह की राजनीति को भी शुरू कर दी है.
सपा और बसपा की जगह भर पाएगी आप?
उत्तर प्रदेश में अखिलेश की चुप्पी और मायावती के खिसकते वोट बैंक में जो जगह खाली की है आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल उसको भरने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि उनका जमीन पर उतना नेटवर्क नहीं है लेकिन इसके लिए उनके पास समय है. राजनीतिक रूप से बेहद जटिल उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी की हालिया दिनों में जो सक्रियता दिखाई दे रही है क्या वह सिर्फ ऊपरी सक्रियता है या फिर इसके लिए उन्होंने एक मजबूत रणनीति के साथ जमीन पर उतरने की तैयारी की है यह हमको बहुत जल्द दिखना शुरू हो जाएगा लेकिन किसान आंदोलन के वक्त में आक्रामक रवैया अपनाकर अरविंद केजरीवाल विपक्ष के रूप में अपनी मजबूत उपस्थिति तो दर्ज करा ही रहे.
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