बिहार में फिर से नीतीश कुमार लेकिन BJP बनी ‘बिग ब्रदर’
बिहार विधानसभा के लिए तीन चरणों में हुए चुनाव में बिहार में एनडीए सरकार की वापसी का रास्ता साफ हो गया है. मंगलवार को हुई मतगणना में नेशनल डेमोक्रेटिक एलायंस (एनडीए) को 125 तो प्रतिद्वंदी महागठबंधन को 110 सीटें मिली हैं.
बिहार में एकबार फिर नीतीश कुमार सरकार के मुखिया बनेंगे. एनडीए ने यह चुनाव ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा था. पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर व जयप्रकाश नारायण के शिष्य रहे 69 वर्षीय नीतीश कुमार ने अपना पहला चुनाव जनता पार्टी के टिकट पर 1977 में लड़ा था. करीब 32 फीसद वोट हासिल करने के बाद भी वे निर्दलीय प्रत्याशी भोला सिंह से चुनाव हार गए थे. दूसरी बार उन्होंने 1980 में चुनाव लड़ा लेकिन वे फिर हार गए.
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर
दो बार की हार से विचलित हुए बिना नीतीश 1985 में लोकदल के उम्मीदवार बने और भारी मतों से चुनाव जीतने में कामयाब रहे. उन्हें करीब 54 प्रतिशत वोट मिले थे. इसके बाद नीतीश कुमार ने पीछे मुड़कर नहीं देखा. यह जरूर है कि साल 1989 में उनके राजनीतिक जीवन में खासा उछाल आया. 1989 में बाढ़ (पटना) लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीतकर अप्रैल 1990 से नवंबर, 1991 तक वे केंद्रीय कृषि मंत्री रहे. 1991 में वे फिर लोकसभा के लिए चुने गए.
1995 में जार्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर उन्होंने समता पार्टी बनाई. फिर 1996 में भी वे सांसद चुने गए. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे रेल मंत्री बने. 1999 में फिर 13वीं लोकसभा के लिए चुने गए और फिर केंद्रीय मंत्री बने. नीतीश कुमार पहली बार तीन मार्च, 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री बने किंतु उनका यह कार्यकाल महज सात दिनों का यानी दस मार्च तक रहा. 2004 में वे छठी बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए. इसके बाद वे फिर 24 नवंबर, 2005 में बिहार के मुख्यमंत्री बने.
2010 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर बिहार सरकार के मुखिया बने किंतु लोकसभा चुनाव में हुई हार की वजह से उन्होंने इस्तीफा देकर 20 मई, 2014 को जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया. मांझी 20 फरवरी, 2015 तक मुख्यमंत्री रहे. नीतीश कुमार ने 2015 में एनडीए से नाता तोड़ लिया और उसके बाद अपने विरोधी राजद व कांग्रेस के साथ मिलकर उन्होंने महागठबंधन के बैनर तले चुनाव लड़ा और 22 फरवरी, 2015 को पुन: उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
अब नीतीश नहीं रहे ‘बिग ब्रदर’
हालांकि 18 महीने तक सरकार चलाने के बाद 2017 में महागठबंधन से अलग होकर वे एक बार फिर अपने पुराने सहयोगी एनडीए के साथ आ गए और बीजेपी तथा अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई. 2020 के चुनाव परिणाम में जो एक खास बात सामने आई है, वह है जदयू के सीटों की संख्या में कमी आना. एनडीए में जदयू अब तक बड़े भाई की भूमिका में था जबकि भाजपा छोटे भाई की. इस बार जदयू के सीटों की संख्या में खासी कमी आ गई. इस चुनाव में भाजपा को 74 तथा जदयू को 43 सीटें मिलीं.
बीजेपी ने 74 सीटें जीती हैं और नीतीश की पार्टी ने महज़ 43. ऐसे में नीतीश सीएम बनेंगे या नहीं यह सवाल भी प्रमुखता से उभरकर सामने आ रहा है. नीतीश कुमार की इस जीत पर अभी कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन कहा जा रहा है उनके मन में एलजेपी को लेकर कसक है कि बीजेपी ने उसे रोका नहीं. इस चुनाव में दोनों अहम गठबंधनों पर दो पार्टियों का गहरा असर रहने की बात की जा रही है.
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