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सत्ता की ‘कठपुतली’ बनते देश के स्वतंत्र आयोग, मनमाने तरीके से हो रही नियुक्तियां

राष्ट्रीय महिला आयोग, बाल अधिकार आयोग, मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त और लोकपाल की नियुक्ति के बाद अब सूचना आयोग में हुई नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार कटघरे में है और उसके ऊपर नियुक्तियों में मनमानी करने का आरोप लग रहा है.

सूचना आयोग में तीन नई नियुक्तियां की गई हैं. विदेश सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी यशवर्धन कुमार सिंहा को प्रमुख सूचना आयुक्त (सीआईसी), सरोज पुन्हानी को डिप्टी सीएजी और पत्रकार उदय माहुरकर को सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है. विवाद तब खड़ा हुआ जब आयुक्तों को चुनने के लिए बने पैनल के सदस्य कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि ये नियुक्तियां उनके विरोध के बावजूद हुई हैं. विपक्ष का आरोप है कि सूचना आयुक्त चुनने वाली समिति में विपक्ष के नेता के पुरजोर विरोध को नजरअंदाज कर दिया गया. प्रधानमंत्री पर किताब लिखने वाले एक ऐसे पत्रकार को भी नियुक्त किया गया है जिसका नाम आवेदकों में भी नहीं था. अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता भी हैं.

पीएम मोदी के करीबी पत्रकार को मिली कुर्सी

इससे पहले राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा पर महिला विरोधी विचार रखने के आरोप लग चुके हैं और केंद्र सरकार से उनकी नियुक्ति को लेकर सवाल किए गए हैं. इसी तरह बाल अधिकार आयोग, मानवाधिकार आयोग, लोकायुक्त और यहां तक की लोकपाल में भी नियुक्ति में हुई मनमानी को लेकर विरोध होता रहा है. सबसे बड़ा विवाद उदय माहुरकर के नाम को लेकर उठा है. इंडिया टुडे समूह के साथ काम करने वाले उदय माहुरकर को केंद्र में सत्तारूढ़ बीजेपी के मुखर समर्थक के रूप में जाना जाता है. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों पर एक किताब भी लिखी है. उनकी नियुक्ति का मामला सबसे विवादास्पद इसलिए भी है क्योंकि चौधरी के अनुसार माहुरकर का नाम आवेदकों की सूची में था ही नहीं.

आयोगों के आयुक्तों की नियुक्ति में मनमानी

अधीर रंजन चौधरी का आरोप है कि चयन समिति ने 139 आवेदकों में से सात को शार्ट लिस्ट करने का कोई भी आधार नहीं बताया, और एक ऐसे व्यक्ति को सीआईसी बनाया गया जिसे देश के अंदर सेवाएं उपलब्ध कराने, कानून, विज्ञान, मानवाधिकार और दूसरे जन-सरोकार के विषयों का कोई जमीनी तजुर्बा नहीं है. यह पहली बार नहीं है जब सूचना आयोग में नियुक्तियों पर विवाद खड़ा हुआ है. लंबे समय तक आयुक्तों के पदों का खाली पड़े रहना और जब नियुक्तियां हों तो उनमें पारदर्शिता का ना होना बार बार सामने आने वाली समस्या है. जानकार बताते हैं कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सूचना आयुक्तों, दूसरे आयुक्तों और यहां तक कि लोकायुक्त की भी नियुक्ति के लिए पूरी तरह से मनमानी भरी प्रक्रिया का इस्तेमाल हो रहा है.

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