खनन में प्राइवेट कंपनियों के लिए रास्ता साफ करके किसे फायदा पहुंचाना चाहती है मोदी सरकार?
खनन मंत्रालय ने ‘खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 या एमएमडीआर ऐक्ट में, अगस्त महीने में नौ बड़े फेरबदल प्रस्तावित करते हुए भारतीय खनन में बड़े स्तर पर निजीकरण की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है.
निजीकरण, इस शब्द से बीजेपी को 2014 से पहले बहुत आपत्ति थी लेकिन अब सत्ता में आने के बाद बीजेपी इसी के भरोसे देश को आत्मनिर्भर बनाने में यकीन करने लगी है. खेती-किसानी, तकनीक, रक्षा, श्रम और उद्योग में बड़े पैमाने पर निजीकरण करने के बाद अब खनन के क्षेत्र में प्राइवेट कंपनियों के लिए मोदी सरकार ने रास्ता साफ कर दिया है. सरकार का दावा है कि इन प्रस्तावित बदलावों से खनन में बड़ी तदाद में रोज़गार पैदा किया जा सकेगा और देश की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी.
लेकिन यहां आपके लिए यह बात जानना जरूरी है कि ये बदलाव खनन में सीधे तौर पर शामिल देश की एक बड़ी जनसंख्या को प्रभावित करेंगे. छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान उड़ीसा और कर्नाटक जैसे राज्य इन बदलावों से प्रभावित होंगे. खनन के क्षेत्र में मोदी सरकार ने जिस तरह से आनन-फानन में बदलाव किया है उससे कई सवाल खड़े हो रहे हैं. जानकार कहते हैं कि इन बदलावों से आदिवासी समुदाय, जंगल, नदियों और वातावरण पर भी इन बदलावों का सीधा प्रभाव पड़ेगा.
खनन मंत्रालय ने क्या बदलाव किया?
- प्राइवेट कंपनियों को खदानों के साथ-साथ संभावित खदान क्षेत्रों की जाँच-पड़ताल करने की अनुमति मिल जाएगी और इस शोध का खर्च ‘राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट’ उठाएगा.
- खनिज-संभावित इलाक़ों को प्राइवेट कंपनियों के बीच नीलामी के लिए उपलब्ध करवाया जाएगा.
- खनन लाइसेंस के साथ इन खदानों को प्राइवेट सेक्टर को सौंपा जाएगा.
- अवैध खनन की परिभाषा में किया जा रहा बदलाव काफ़ी अहम है. फ़िलहाल किसी भी खदान में खनन के लिए खनन योजना में चिह्नित किए गए ‘कोर खनन क्षेत्र’ के सिवा अन्य जगहों पर खनन करने की इजाज़त नहीं है.
- माइनिंग कंपनियाँ खनन के लिए लीज़ पर ली गई पूरी ज़मीन में से जहां भी खनन करना चाहें, वहां अब क़ानूनी रूप से कर सकती हैं.
- ‘कैप्टिव’ और ‘नॉन-कैप्टिव’ खदानों के अंतर को ख़त्म करके सभी खनिजों के ब्लॉकों को व्यावसायिक खनन के लिए निजी कंपनियों के बीच नीलाम किए जाने की बात करता है.
- स्टैम्प ड्यूटी को कम करने और डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड (डीएमएफ) की जनकल्याणकारी नीति के मूल उद्देश्य में बदलाव का प्रस्ताव भी इन सुधारों में शामिल.
खनन मंत्रालय ने यह हम बदलाव किए हैं और यह माइनिंग को पूरी तरह से प्राइवेट कंपनियों के लाभ के लिए बदल देंगे. इन बदलावों की सुगबगाहट बीते जून से ही महसूस की जाने लगी थी. 18 जून को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ़्रेंस के ज़रिए देश के 41 नए कोयला ब्लॉकों की नीलामी को हरी झंडी दिखाई, तो यह कोयला क्षेत्र को व्यावसायिक खनन के लिए खोले जाने की पहली खुली घोषणा थी.
मोदी सरकार ने यह अहम बदलाव यह कहते हुए किए हैं कि खनन क्षेत्र में रोजगार पैदा होगा. लेकिन क्या प्राइवेट कंपनियां खनन के क्षेत्र में दाखिल होकर लोगों को रोजगार दे पाएंगे. यह सवाल इसलिए है क्योंकि जिन क्षेत्रों में पहले से खनन का काम हो रहा है वहां लोगों की जिंदगी में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है. फिर भी माइनिंग का प्राइवेटाइजेशन आदिवासी समुदाय, जंगल और जमीन के लिए मुसीबत ही खड़ी करेगा.
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