देसी घी आपके शरीर पर क्या असर डालता है?
भारतीय व्यंजनों में घी के लड़के का बड़ा महत्व है. उत्तर भारत में तो रोटियां भी घी लगाकर ही पसंद की जाती हैं. कुछ लोग तो देसी घी के इतने शौकीन होते हैं कि बिना घी के एक निवाला भी खाना पसंद नहीं करते. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देसी घी आपके शरीर पर क्या असर करता है?
आमतौर पर शुद्ध देसी घी सभी को पसंद होता है. लेकिन को लेकर कई तरह के मिथक भी हैं. कुछ लोगों को लगता है कि घी खाने से मोटापा बढ़ता है. कुछ लोग शुक्रिया डायबिटीज के मरीज होते हैं तो वो से बचते हैं. लेकिन यहां हम आपको घी के बारे में सब कुछ बताने वाले हैं. हम आपको बताएंगे घी खाने से आपके शरीर पर क्या असर होता है.
सबसे पहले तो आप ही के गुणों के बारे में जान लीजिए. वसा का एक शुद्ध स्रोत घी किसी भी तरह के ट्रांस फैट से मुक्त होता है. एक साल तक कमरे के तापमान पर ही इसे शुद्ध रूप में रखा जा सकता है. आयुर्वेद के अनुसार 6,000 साल से भी पुराने पारंपरिक चिकित्सा विज्ञान आयुर्वेद में घी के इस्तेमाल का जिक्र मिलता है. यह गाय के दूध से बनने वाला घी होता है.
विटामिनों और खनिजों का माध्यम
खाने में मौजूद कई तरह के विटामिनों और खनिजों के लिए घी एक माध्यम का काम करता है. यह पोषक तत्व घी में घुल कर ज्यादा आसानी से शरीर की पाचन तंत्र में सोखने लायक बन पाता है.
खाने में इस्तेमाल
भारत और मध्य पूर्व के देशों में पारंपरिक खान पान में घी का इस्तेमाल होता आया है. पश्चिम में लोग इसे क्लैरिफाइड बटर के नाम से जानते हैं.
पारंपरिक घी के गुण
भारत के घरों में मक्खन को कम आंच पर पकाते हुए जिस पारंपरिक तरीके से घी निकाला जाता है उससे घी में विटामिन ई, विटामिन ए, एंटीऑक्सीडेंट और दूसरे ऑर्गेनिक कंपाउंड सुरक्षित रहते हैं.
पश्चिम का घी
बिना नमक वाले बटर को गरम करने से भी तरल घी और मक्खन अलग हो जाते हैं. इसी तरल को पश्चिमी देशों में क्लैरिफाइड बटर या घी के नाम से बेचा जाता है.
जल कर भी नष्ट नहीं
ज्यादातर तरह के तेल को तेज आंच पर गर्म किए जाने से उसमें से फ्री रैडिकल कहलाने वाले अस्थिर तत्व निकलते हैं जो कि शरीर में जाकर कोशिका के स्तर पर बदलाव ला सकते हैं. वहीं घी का स्मोकिंग प्वाइंट 500° फारेनहाइट होने के कारण तेज आंच पर भी उनके गुण नष्ट नहीं होते.
शरीर के आंतरिक सफाईकर्मी -एंटीऑक्सीडेंट
घी में विटामिन ई के रूप में जो शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट पाया जाता है वह शरीर में घूम रहे फ्री रैडिकल्स को ढूंढ कर खत्म कर देता है. इस तरह कोशिकाओं और ऊत्तकों को फ्री रैडिकल के नुकसान से बचाता है और कई बीमारियों की संभावना से भी.
कैंसर से लड़ने वाले -सीएलए
घास के मैदानों में चरने वाली गायों के दूध से निकाला गया घी सबसे अच्छा माना जाता है. इसमें सीएलए यानि कॉन्जुगेटेड लिनोलेइक एसिड का भंडार मिलता है जो दिल की बीमारियों से लेकर कैंसर तक से लड़ने में मददगार होते हैं.
आयुर्वेदिक चिकित्सा में इस्तेमाल
आयुर्वेद में जलन और आंतरिक संक्रमण में इसके इस्तेमाल की सलाह दी जाती है. इसमें पाए जाने वाले ब्यूटाइरेट नामके फैटी एसिड शरीर के इम्यून सिस्टम के लिए अच्छे माने जाते हैं. घी में एंटी वायरल और पाचन तंत्र के भीतर की सतह की मरम्मत के गुण भी पाए जाते हैं.
हार्ट के लिए अच्छा या बुरा
घी में मोनोसैचुरेटेड ओमेगा -3 फैट काफी मात्रा में पाए जाते हैं. यह वही फैट हैं जो सालमन मछली में भी मिलते हैं और इस कारण से पश्चिम में काफी लोकप्रिय हैं और दिल को स्वस्थ रखने के लिए डॉक्टर इसे खाने की सलाह भी देते हैं.
एलर्जी वालों के लिए भी सुरक्षित
चूंकि घी बनाने की प्रक्रिया में दूध के लगभग सारे ठोस हिस्से अलग कर दिए जाते हैं, इसलिए शर्करा (लैक्टोज) और प्रोटीन (केसीन) की एलर्जी वाले भी घी खा सकते हैं.
रोज कितना घी खाएं
अगर आपको घी से कोई दिक्कत नहीं रही है तो इसे रोजाना अपने खानपान में शामिल रखें. आप जहां भी रहते हैं, जैसे परिवेश से आते हैं और आपके परिवार के खानपान में जैसे घी शामिल रहा है वैसे ही खाना चाहिए. हालांकि अगर आपको कोई स्वास्थ्य से जुड़ी दिक्कत है तो डॉक्टर की सलाह लेकर ही घी लेना चाहिए.
बदनाम रहे फैट का क्या
घी फैट का स्रोत तो है ही और हाल तक हर तरह के फैट को लेकर पूरे विश्व में अच्छी धारणा नहीं थी. घी और कई तरह के मक्खन में भी सैचुरेटेड फैट होते हैं जिनका संबंध दिल की बीमारों से रहा है. अब तक ऐसी पर्याप्त स्टडी नहीं हुई है जो इसे सुरक्षित बता सकें.
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