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वो बात जिसने सचिन पायलट को बगावत के लिए मजबूर कर दिया

राजस्थान का सियासी संकट कांग्रेस सरकार के लिए मुसीबत बढ़ाता जा रहा है. गहलोत सरकार का अल्पमत में आना लगभग कैसा लग रहा है क्योंकि सचिन पायलट किसी भी कीमत पर पीछे हटने को तैयार नहीं हैं. शनिवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वो उनकी सरकार गिराने में लगी हुई है.

200 विधायकों वाली राजस्थान विधानसभा में कांग्रेस के पास 107 विधायक हैं. इनमें बसपा के छह विधायक भी शामिल हैं जो अपनी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आए हैं. इसके अलावा प्रदेश के 12-13 स्वतंत्र विधायकों का समर्थन भी गहलोत सरकार को हासिल है. यानी यदि संख्या की बात की जाए तो गहलोत सरकार मज़बूत स्थिति में है. 2018 के चुनावों में बीजेपी ने 73 सीटें जीती थीं. अभी की स्थिति में कांग्रेस गठबंधन के पास बीजेपी के मुक़ाबले 48 विधायक अधिक हैं. ये मान भी लिया जाए कि सचिन पायलट के साथ 30 विधायक हैं तब भी अभी की स्थिति में गहलोत सरकार को ख़तरा नहीं है.

कहां से शुरू हुआ विवाद?

राजस्थान पुलिस की एसओजी सरकार गिराने की साज़िश के आरोपों की जांच कर रही है. इस जांच के सिलसिले में सीएम, डीप्टी सीएम और कई विधायकों को नोटिस जारी किए गए हैं. दो स्थानीय नेताओं को भी गिरफ़्तार किया गया है. इस बात से पायलट नाराज़ हो गए. इसका नतीजा ये हुआ कि अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट हो गई है. जैसे कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया हो गई थी और वहां की सरकार से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा था.

पीटीआई के अनुसार सचिन पायलट सोमवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. सचिन ने कहा है कि उनके साथ कांग्रेस के 30 विधायक हैं और अशोक गहलोत की सरकार अल्पमत में है. सचिन पायलट अभी दिल्ली में हैं और राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने जा रही है. कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सकती है. कांग्रेस का कहना है कि अशोक गहलोत के साथ 109 विधायकों का समर्थन है.

आपको बता दें कि राजस्थान में दिसंबर, 2018 में चुनाव जीतने के साथ ही कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने आ गए थे. हालांकि तब अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके बाद दोनों के बीच कुर्सी को लेकर खींचतान समाप्त हो गई थी लेकिन अब क़रीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर से राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों शीर्ष नेताओं की बीच तनाव बढ़ता हुआ दिख रहा है.

ये सब क्यों हो रहा है?

ऐसा लगता है कि कांग्रेस का नेतृत्व के प्रभावी नहीं रहा है. क्षेत्रीय नेताओं को लगता है कि राज्यों में उनके नाम पर वोट आ रहा है. अब जैसे राजस्थान में सचिन पायलट को लगता है कि यहाँ की जीत उनकी पाँच साल की मेहनत का नतीजा है और उनके साथ न्याय नहीं हो रहा. वैसे ही मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगता रहा. बीजेपी में ऐसा नहीं है.

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