MGNREGA: मनमोहन सरकार की जिस योजना को मोदी ने पानी पी पीकर कोसा, अब उसी पर करना पड़ रहा है भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेताओं ने जिस मनरेगा को कांग्रेस सरकार की विफलताओं का स्मारक बताया था आज वहीं मनरेगा गरीब मजदूरों तक रोजगार पहुंचाने का सबसे बड़ा जरिया बन गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद में मनरेगा को पानी पी पीकर कोसते थे और उनके कैबिनेट के साथी उनकी बातों पर अपनी सीट ठोकते थे. मोदी सरकार कहती थी कि मनरेगा कांग्रेस सरकार या यूं कहें मनमोहन सरकार की विफलताओं का स्मारक है लेकिन अब उसी मनरेगा में वित्त मंत्री सीतारमण ने 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (Nirmala Sitharaman) ने 20 लाख करोड़ रुपये की पांचवी और आखिरी आर्थिक किस्त के तहत महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGA) के लिए अहम एलान किया है. वित्त मंत्री सीतारमण ने मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त आवंटन किया है. इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अधिक से अधिक अवसर उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी. बजट में सरकार ने मनरेगा के लिए 61,000 करोड़ रुपये के बजट का एलान किया था.
इससे पहले 1 फरवरी को पेश किए गए आम बजट में मोदी सरकार ने मनरेगा में 61000 करोड रुपए दिए थे. अब करो ना काल में यह बात पूरी तरह से साबित हो गई है कि देश मोदी के मैजिक से नहीं बल्कि मनमोहन सिंह जैसे माइंड से चलेगा. आज मनरेगा गरीब मजदूरों को मदद पहुंचाने का सबसे अच्छा जरिया साबित हुआ है.
वित्त मंत्री सीमारमण ने कहा कि कोरोना महामारी के चलते अधिकांश प्रवासी मजदूर अपने गांवों की ओर लौट रहे हैं. ऐसे में गांवों में उनके लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध कराए जा सके, सरकार ने मनरेगा के तहत अतिरिक्त आवंटन का एलान किया है. वित्त मंत्री ने कहा कि मनरेगा के लिए 40,000 करोड़ रुपये के अतिरिक्त आवंटन से कुल 300 करोड़ मानव दिवस काम के पैदा किए जा सकेंगे.
मनरेगा में काम बढ़ने से जल संरक्षण समेत रोजगार के टिकाउ काम उपलब्ध कराए जा सकेंगे. इसके तहत अधिक से अधिक उत्पादन होने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा. इसके पहले बजट (Budget 2020-21) में ही केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत 61,000 करोड़ रुपये देने का प्रावधान किया था.
मनरेगा के आँकड़े
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को 20 लाख करोड़ की दूसरी किश्त की घोषणा करते हुए दावा किया:
•13 मई तक 14.62 लाख पर्सन-डे का काम जेनरेट हुआ.
•मनरेगा के तहत 10 हज़ार करोड़ का ख़र्च किया गया.
•2.33 करोड़ मनरेगा का काम मांगने वालों को 13 मई तक काम दिया गया.
•पिछले साल के मुकाबले 40-50 फीसदी ज्यादा व्यक्ति मनरेगा के तहत एनरोल किए गए.
•अब प्रवासी मजदूरों को भी मनरेगा के तहत काम देना का अभियान चलाया जाएगा.
पहले तीन आँकड़े तो सरकार की बेवसाइट से मेल खाते हैं, लेकिन 40-50 फीसदी ज्यादा लोग मनरेगा के तहत ज्यादा एनरोल किए गए ये बात उनकी ही बेवसाइट पर नहीं दिखती.
सरकारी आँकड़ो के मुताबिक मार्च महीने तक तकरीबन 18 करोड़ 19 लाख पर्सन डे काम हुआ था. जो अप्रैल मई में 13 करोड़ 60 लाख पर्सन डे रह गया है.
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भारत सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक़ इस साल अप्रैल के महीने में पिछले पांच सालों में सबसे कम काम हुआ है. साल 2015 को छोड़ दिया जाए तो ये पिछले पांच सालों में सबसे कम है. और सरकारी दावे के बिलकुल उलट भी.
मई में भी स्थिति बेहतर होती नज़र नहीं आ रही है, लेकिन उतनी बेहतर भी नहीं जितना वित्त मंत्री ने प्रेस कॉंफ्रेंस में कह दिया.
सरकार ने तो मई का महीना पूरा होने के पहले ही दावा कर दिया. मंत्रालय में जब हमने बात की तो उनका कहना था कि आँकड़ें, पूरे महीने के प्रोजेक्शन पर आधारित हैं. और बेवसाइट पर अपडेट होने में 10-15 दिन का वक़्त लगता है.
मनरेगा के तहत हर राज्य में मज़दूरी दर अलग-अलग है. मनरेगा के तहत होने वाले काम में मज़दूरी केंद्र सरकार देती और इस्तेमाल होने वाले मटेरियल का ख़र्च राज्य सरकारें वहन करती हैं. झारखंड में मज़दूरी फ़िलहाल 194 रुपए है.
मनरेगा की आधिकारिक बेवसाइट पर दर्ज़ आँकड़ों के मुताबिक़ देश में सबसे ज़्यादा मज़दूरी दर केरल सरकार देती है और सबसे कम राजस्थान सरकार देती है.