महाराष्ट्र में सियासी संकट शुरू हो गया है. सवाल ये है कि क्या 6 महीने के भीतर गठबंधन सरकार गिर जाएगी. 28 नवंबर 2019 को उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा था और बिना विधायक बने ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.
बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के कार्यकाल को 27 मई 2020 को छह महीने पूरे हो जाएंगे. ऐसे में 6 अप्रैल को राज्य की कैबिनेट ने उद्धव ठाकरे को राज्य के गवर्नर की ओर से विधान परिषद सदस्य के तौर पर मनोनीत किए जाने की सिफ़ारिश की है. कैबिनेट की यह अनुशंसा गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को भेज दी गई थी. राज्य के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कैबिनेट की मीटिंग की अध्यक्षता की थी. लेकिन, गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी ने अभी तक इस प्रस्ताव पर कोई फ़ैसला नहीं किया है. राज्यपाल की ओर से फ़ैसला लेने में हो रही देरी से एक राजनीतिक तनाव का माहौल पैदा हो गया है.
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राज्यपाल की तरफ़ से अनिश्चय की स्थिति देखते हुए राज्य में राजनीतिक सरगर्मियों में अचानक तेज़ी आ गई है. बुधवार को महाराष्ट्र की कैबिनेट ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाक़ात की. महाराष्ट्र में विधानसभा और विधान परिषद दोनों हैं. उद्धव को छह महीने के भीतर किसी भी एक सदन का सदस्य बनना था. छह महीने होने वाले हैं लेकिन वो किसी भी सदन का सदस्य नहीं बन पाए हैं. महाराष्ट्र में विधान परिषद की सात सीटों के लिए 24 अप्रैल 2020 को चुनाव होना था. लेकिन, कोरोना महामारी के चलते चुनाव आयोग ने अनिश्चितकाल के लिए सभी तरह के चुनावों पर रोक लगा रखी है.
क्या कहता है संविधान?
संविधान का आर्टिकल 171 राज्य विधायिका की संरचना के बारे में बताता है. संविधान के आर्टिकल 171(3) (e) के मुताबिक़, राज्यपाल को विधान परिषद के कुछ सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार होता है. आर्टिकल 171(5) के मुताबिक़, ऐसे किसी भी शख़्स जिनके पास साहित्य, कला, विज्ञान, सहभागिता आंदोलन या सामाजिक कार्यों में विशेष ज्ञान हो या इनका ज़मीनी अनुभव हो, तो उसे राज्यपाल विधान परिषद का सदस्य मनोनीत कर सकते हैं.
राज्यपाल के पास उद्धव ठाकरे को उनकी छह महीने की अवधि पूरी होने से पहले विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने का अधिकार है. लेकिन, इसके लिए विधान परिषद सदस्य की सीट ख़ाली होना ज़रूरी है. किसी को सदस्य के तौर पर मनोनीत करना राज्यपाल के अधिकार में है, साथ ही वह किसी की सदस्यता को ख़ारिज भी कर सकते हैं. लेकिन, इस तरह से सदस्यता ख़ारिज करते समय राज्यपाल के पास इसकी कोई पुख़्ता वजह होनी चाहिए. बिना वजह राज्यपाल किसी की नियुक्ति को रद्द नहीं कर सकते हैं. बीजेपी इस मौके को करीब से देख रही है और राज्य में शिवसेना के लिए संकट खड़ा हो सकता है.