दिल्ली हिंसा में मरने वालों की तादाद एक दर्जन से ज्यादा हो गई है. उत्तरी दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में दहशत का माहौल है. देश की राजधानी को देखकर ऐसा लग रहा है कि उबलती हुई दिल्ली कभी भी फट सकती है. नागरिकता संशोधन कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हो रही हिंसा ने कई परिवारों को उजाड़ दिया है. पत्रकारों को पीटा जा रहा है. और ऐसा लग रहा है कि दिल्ली बारूद पर बैठी है. दिल्ली दंगों में बीजेपी नेता कपिल मिश्रा की क्या भूमिका है और बीजेपी सांसद गौतम गंभीर के कहने के बाद भी अभी तक उनपर क्यों कार्रवाई नहीं की गई.
कपिल मिश्रा की गिरफ्तारी कब?
Delhi violence : दिल्ली में दंगे भड़कने से तीन दिन पहले बीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि अगर जाफराबाद और चांदबाग की सड़के तीन दिन में खाली नहीं कराएगी गईं तो फिर हम किसी की नहीं सुनेंगे. कपिल मिश्रा के इस बयान के ठीक तीन दिन बाद दिल्ली जलने लगी और इस आग में दर्जनों घर खाक हो गए. कपिल मिश्रा केबयान को लेकर बीजेपी सांसद गौतम गंभीर को भी ये कहना पड़ा कि चांहे कपिल मिश्रा हों या कोई और अगर किसी ने भड़काऊ भाषण दिया है तो कार्रवाई होनी चाहिए.
कपिल मिश्रा ने इससे पहले 23 जनवरी को एक भड़काऊ ट्वीट भी किया था जिसमें उन्होंने लिखा था कि 8 फरवरी को दिल्ली में हिन्दुसतान और पाकिस्कान का मुकाबला होगा. भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें दिल्ली की मॉडल टाउन सीट से अपना उम्मीदवार बनाया था. एक तरफ दिल्ली जल रही है. सांप्रादायित सद्भाव की ऐसी तैसी कर दी गई है और दूसरी तरफ दिल्ली पुलिस ने अभी तक कपिल मिश्रा पर कोई कार्रवाई नहीं की है.
क्या है ‘हेट स्पीच’ के लिए कानून?
इस पीछे क्या कारण हो सकते हैं. इसको समझने के लिए ये समझा होगा कि भारत में भड़काऊ बयान या भाषण को परिभाषित नहीं किया गया है. कुछ कानूनों में ऐसे प्रावधान जरूर हैं जो खास तरह के भाषणों पर रोक लगाते हैं लेकिन उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से बाहर रखते हैं. इंडियन पीनल कोड के अलग-अलग प्रावधानों के तहत धर्म, नस्ल, जन्म स्थान, रिहाइश, भाषा आदि के आधार पर समाज में वैमनस्य भड़काना, सौहार्द बिगाड़ना अपराध है. यहां तक कि किसी पर ये लांछन लगाना कि वो किसी धर्म, नस्ल, भाषा, या जाति या समुदाय के लोग भारत के संविधान प्रति सच्ची श्रद्धा या निष्ठा नहीं रख सकते, अपराध है और इसके लिए तीन साल तक की सज़ा हो सकती है.
किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से कही गई बात भी इसी दायरे में आती है. समाज में दो वर्गों या समुदायों के बीच घृणा फैलाना भी आईपीसी के तहत अपराध है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का नाजायज़ इस्तेमाल करने के दिए दोषी करार दिया गया व्यक्ति जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत चुनाव लड़ने से अयोग्य हो जाता है. दंड प्रक्रिया संहिता सरकार और प्रशासन को ये हक़ देती है कि वो किसी को सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने से रोक सकती है. इसके अलावा प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स ऐक्ट, धार्मिक संस्थाओं के बेजा इस्तेमाल को रोकने वाला क़ानून, केबल टेलीविज़न नेटवर्क रेगुलेशन ऐक्ट और सिनेमाटोग्राफ़ ऐक्ट के तहत ‘भड़काऊ भाषण’ को रोकने और ऐसा होने पर सज़ा का प्रावधान किया गया है. लेकिन फिर भी कपिल मिश्रा पर कानून तोड़ने के बाद कार्रवाई नहीं हुई इसके पीछे क्या मंशा है.
क्यों मजबूर है कानून?
कानून ये कहता है कि दिल्ली पुलिस कपिल मिश्रा को तुरंत गिरफ्तार करना चाहिए था लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया. इस समय जो दिल्ली में हो रहा है वो आईपीसी के सेक्शन 153ए के तहत आता है. इन मामलों में चार्जशीट दायर करने के लिए आला अधिकारियों की मंजूरी लेनी होती है. कपिल मिश्रा जिस विवादास्पद वीडियो में पुलिस को अल्टिमेटम देते हुए दिख रहे हैं, उसमें भी उनके बगल में दिल्ली पुलिस के एक डीसीपी रैंक के अधिकारी भी मौजूद थे.
लेकिन अभी तक किसी पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है और दिल्ली को शांत करने के लिए दंगाई को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गए हैं. ये वैसा ही है जैसे जख्म हाथ में है और आप पैर का इलाज कर रहे हों.