क्या अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी या ‘एक आदमी पार्टी’ में बदल दिया है ?

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Has Arvind Kejriwal turned into Aam Aadmi Party or 'One Man Party'?

दिल्ली में 8 फरवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोट डाले जाएंगे. अरविंद केजरीवाल दोबारा से सत्ता में आने के लिए प्रचार-प्रसार में लगे हैं. केजरीवाल को उम्मीद है की दिल्ली की जनता एक बार फिर से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार को चुनेगी. लेकिन उनके ऊपर ये आरोप भी लग रहे हैं कि उन्हें बीते पांच सालों में आप को ‘एक आदमी पार्टी’ में बदल दिया है

अरविंद केजरीवाल आज राजनीति के शीर्ष पर हैं. कुछ वर्ष पहले तक शायद ही ये किसी ने सोचा होगा कि दिल्ली के जंतर-मंतर पर तिरंगा लहराकर जन लोकपाल क़ानून की मांग करके वो दिल्ली की सीएम की कुर्सी तक पहुंचेंगे. अरविंद केजरीवाल ने बड़े ही करिश्माई ढंग से एक आंदोलन को देखते ही देखते राजनीति पार्टी की शक्ल दे दी और खुद उसके मुखिया बन गए. उन्होंने बड़ी बदर्दी से एक एक करके उन सभी लोगों को किनारे कर दिया जो कभी उनके सबसे करीब थे. इन लोगों में कवि कुमार विश्वास, योगेद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे लोग शामिल थे. भ्रष्टचार के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन का वर्तमान ये है कि आज आंदोलन आप पार्टी में बदल चुका है और अरविंद केजरीवाल पांच साल तक दिल्ली की सत्ता संभाल चुके हैं. अब दिल्ली एक बार फिर से चुनाव में है और केजरीवाल को ये उम्मीद है कि वो दोबाला दिल्ली के सीएम बनेंगे.

‘एक आदमी पार्टी’ में बदल गई है आप?

पांच साल पहले तक दिल्ली में दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टीयों का बोलबाला था. तब तीसरी पार्टी के उभरने की कोई गुंजाइश नजर नहीं आती थी. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने ऐसा कर दिखाया. साल 2011 में, जब सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ जन आंदोलन खड़ा हुआ था उस वक्त केजरीवाल के साथ वरिष्ठ वकील शांति भूषण, उनके वकील बेटे प्रशांत भूषण, किरन बेदी, जनरल वीके सिंह, योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास जैसे कई चहरे थे. लेकिन जब इस आंदोलन ने राजनीतिक शक्ल ली और आम आदमी पार्टी बनी तब समीकरण बदल गए. ये बात और है कि कई दौर की बातचीत और भूख हड़ताल के बाद भी अन्ना के आंदोलन का मकसद पूरा नहीं हुआ लेकिन केजरीवाल का मकसद पूरा हो गया.

अरविंद केजरीवाल ने अपने आंदोलन के साथियों के साथ मिलकर 2 अक्टूबर 2012 को आम आदमी पार्टी बनाई. अस्तित्व में आई. हालांकि उस वक्त अन्ना हजारे खुद राजनीतिक पार्टी बनाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन केजरीवाल और उनके सहयोगियों का कहना था कि देश को भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने का यही एक रास्ता है. 2012 में बनी आम आदमी पार्टी 2013 के आखिर में चुनाव मैदान में उतरी और सबको चौंकाते हुए पहली ही बार में दिल्ली की 70 में से 28 सीटों पर जीत गई. इस प्रदर्शन ने कांग्रेस और बीजेपी जैसे राजनीतिक दलों की हवाईयां उड़ा दीं. केजरीवाल ने तीन बार मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित को नई दिल्ली विधान सभा क्षेत्र से रिकॉर्ड अतंर से हरा दिया. और फिर बहुमत ना मिलने के बाद भी कांग्रेस के साथ मिलकर ही सरकार बनाई. और केजरीवाल सीएम बन गए.  

कांग्रेस से मिलकर बनी आम आदमी पार्टी की सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल सकी. सरकार में अंतर्विरोध सामने आए और अरविंद केजरीवाल ने फ़रवरी 2014 में ये कहते हुए इस्तीफ़ा दे दिया कि दिल्ली विधानसभा में संख्या बल की कमी की वजह से वो जन लोकपाल बिल पास कराने में नाकाम रहे हैं, इसलिए फिर से चुनाव बाद पूर्ण जनादेश के साथ लौटेंगे. दिल्ली में फिर से चुनाव हुए और आम आदमी पार्टी ने इतिहास रच दिया. महज दो साल पुरानी पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीती. इस तरह आम आदमी पार्टी ने पूरी दिल्ली को जीत लिया. इस जीत के बाद आम आदमी पार्टी ‘एक आदमी पार्टी’ में बदलने लगी. धीरे धीरे करके केजरीवाल ने अपने आंदोलन के साथियों को किनारे किया और खुद पार्टी के आका बन गए.

2020 में फिर से सत्ता में आने की लड़ाई

2020 में दिल्ली फिर से चुनाव में है. लेकिन ये लड़ाई 2015 जैसी नहीं है. 2015 में आम आदमी पार्टी सबसे ऊपरी पायदान पर दिख रही थी, लेकिन अब वो उससे नीचे उतर आई है और लगता है लड़ाई अब बराबरी की होगी. आंदोलन से निकली ये पार्टी व्यवस्था परिवर्तन और नई क़िस्म की राजनीति करने के वादे के साथ आई थी. देश भर में लोगों को उम्मीद बंधी थी कि भारतीय राजनीति में एक मौलिक बदलाव आएगा. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया. आम आदमी पार्टी राजनीति बदलने आई थी लेकिन राजनीति ने आम आदमी पार्टी को बदल दिया. आप सरकार ने पिछले पाँच साल में उन्होंने भ्रष्टाचार पर कोई बात नहीं की. भ्रष्टाचार अब उनके लिए मुद्दा नहीं रह गया है. पार्टी के कामकाज का तरीका हाईकमान के इशारों से बदलता है.

ये बात भी ठीक है कि आप सरकार की नीतियों से लोगों को फायदा पहुंचा है. उनकी कई योजनाओं गरीब तबके को राहत दे रही हैं. कुछ स्कूलों में शिक्षा बेहतर हुई है, मोहल्ला क्लीनिक से लोगों को फायदा हो रहा है. फ्री बिजली-पानी की स्कीम कुछ लोगों को खुश कर रही है. इन पांच सालों में अरविंद केजरीवाल ने अपनी राजनीति करने का तरीका बदला है. केजरीवाल की राजनीति करने की शैली अलग थी और आज भी दूसरी पार्टियों से थोड़ी अलग है. हिंदुस्तान में एक राजनीति ढर्रा है और हर दल को धीरे-धीरे उस ढर्रे से ताल मेल बैठाना पड़ता है और अरविंद केजरीवाल ने भी शायद इस ढर्रे के साथ अपना समायोजन निकालने में कामयाब हुए हैं. 2020 दिल्ली विधानसभा चुनाव में केजरीवाल अपनी इस नई विशेषता से कितना कामयाब होते हैं ये 11 फरवरी को पता चल जाएगा लेकिन आम आदमी पार्टी में हाईकमान कल्चर की शुरुआत हो गई है इससे इंकार नहीं किया जा सकता.

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