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‘ICU में पहुंची अर्थव्यवस्था, भारत में बड़ी मंदी की आहट’

'Economy reaches ICU, big recession in India'

भारत बड़ी मंदी की ओर जा रहा है और देश की अर्थव्यवस्था ICU में पहुंच गई है. भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने का ये बयान अपने आप में काफी अहम है.

देश के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने कहा है कि “स्पष्ट रूप से यह एक सामान्य मंदी नहीं है. यह भारत की महान मंदी है, जहां अर्थव्यवस्था को गहन देखभाल की जरूरत आ पड़ी है”. उन्होंने कहा है कि देश बड़ी मंदी की ओर जा रहा है. और अर्थव्यवस्था ICU में पहुंच रही है. उन्होंने अपनी बात को और पुख्ता करने के लिए कई उदाहरण दिए. अपनी बात में उन्होंने दोहरे बैलेंस शीट की समस्या को इंगित करते हुए सरकार को बड़ा खामियाजा भुगतने की चेतावनी दी है.

अरविंद सुब्रमण्यन ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट के एक ड्राफ्ट वर्किंग पेपर में कहा है कि वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था को ट्विन (दोहरे) बैलेंस शीट (TBS) संकट की “दूसरी लहर” का सामना करना पड़ रहा है, जो कि “महान मंदी” के रूप में है. उन्होंने अपनी बात पर जोर देकर कहा है कि भारत में स्पष्ट रूप से एक समान्य मंदी है. ये भारत की महान मंदी है, जहां अर्थव्यवस्था को गहन देखभाल की जरूरत आ पड़ी है”

उन्होंने टीबीएस संकट का भी जिक्र किया. टीबीएस संकट निजी कॉरपोरेट्स द्वारा एनपीए के रूप में बढ़ते कर्ज से जुड़ा है. सुब्रमण्यम ने भारत की मंदी का जिक्र जिस लेख में किया है वो उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के भारत स्थित कार्यालय के पूर्व प्रमुख जोश फेलमैन के साथ लिखा है. अपने लेख में उन्होंने बताया है कि TBS और “TBS-2” के बीच क्या अंतर है.

TBS-1 और TBS-2 में अंतर

TBS-1 साल 2004 से 2011 के बीच के बैंक लोन्स का है जब निवेश चरम पर था और बैंकों ने स्टील, बिजली और बुनियादी ढांचा क्षेत्र की कंपनियों को खूब कर्ज दिए गए थे. TBS-2 नोटबंदी के बाद से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों से है, जिसमें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और रियल एस्टेट फर्मों को शामिल किया गया है.

नोटबंदी के बाद नकदी का क्या हुआ?

सुब्रमण्यम की रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद बड़ी तादाद में नकदी बैकों में पहुंची. इस नकदी का बड़ा हिस्सा एनबीएफसी को दिया गया. इसके बाद एनबीएफसी ने इस पैसे को रियल एस्टेट सेक्टर में लगाया. 2017-18 तक रियल एस्टेट के 5,00,000 करोड़ रुपये के बकाया अचल संपत्ति ऋण के आधे हिस्से के लिए एनबीएफसी जिम्मेदार थे. उन्होंने बताया है कि सितंबर 2018 में IL&FS का डूबना एक “भूकंपीय घटना” थी, जो न केवल 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के बकाए के कारण थी, बल्कि बुनियादी ढांचे के लिए ऋण देने तथा बाजारों को जगाने और पूरे एनबीएफसी क्षेत्र को आश्वस्त करने के लिए भी प्रेरित कर रहा था. उनके इस पेपर से ये बात साबित हो जाती है कि जैसा दिखाया जा रहा है कि वैसा नहीं है औ भारत की अर्थव्यवस्था की हालत वाकई खराब है.

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