लोकसभा में कैब (CAB) यानी नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 सोमवार को पास हो गया. अब राज्यसभा में भी सरकार इस बिल को पास करा ही लेगी. अमित शाह ने लोकसभा में इस बिल को पेश करते हुए हुए शरणार्थी और घुसपैठियों की जो परिभाषा दी है वो कितनी सही है.
#CAB : लोकसभा में जब कैब बिल पेश किया गया तो सदन के 48 सदस्यों ने इस बिल को लेकर अपनी बात रखी. इसके बाद देर रात करीब 10 बजे के बाद गृह मंत्री अमित शाह ने सभी सवालों के जवाब देने शुरू किए. शाह अपने एक घंटे लंबे भाषण में सभी सवालों के जवाब देने की कोशिश की. उन्होंने अपने भाषण में बताया कि कैब (CAB) भारत के लिए कितना जरूरी है. गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज लाखों-करोड़ों शरणार्थियों की यातनाओं को ख़त्म करने वाला दिन है जो नरक का जीवन जी रहे हैं. तो सबसे पहले तो ये समझऩा जरूरी है कि अमित शाह जिनकी यातनाएं खत्म करने की बात कर रही है वो कौन लोग हैं.
भारत में कितने शरणार्थी हैं?
- संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दो लाख से अधिक शरणार्थी मौजूद हैं.
- इनमें तिब्बत, श्रीलंका, अफ़ग़ानिस्तान, म्यांमार, पाकिस्तान, सोमालिया और 2015 में, सीरिया के 39 शरणार्थी शामिल हैं.
लोकसभा में जो नागरिकता संशोधन विधेयक पास कराया गया है कि उसमें सिर्फ पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदायों को भारत में नागरिकता देने की बात कही गई है. CAB के मुताबिक भारत की नागरिकता दी जाएगी उनमें हिंदू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय के लोग शामिल हैं. गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में कहा कि अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के संविधान में राज्य का धर्म इस्लाम माना गया है. इस कारण वहां के अल्पसंख्यकों को न्याय मिलने की उम्मीद कम हो जाती है.
अमित शाह के भाषण के महत्वपूर्ण बिंदू
- 1971 में बांग्लादेश को संविधान में धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र माना गया था लेकिन उसके बाद 1977 में राज्य का धर्म इस्लाम माना गया.
- 1950 में दिल्ली में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था और उस समझौते के तहत यह निश्चित किया गया कि भारत और पाकिस्तान अपने-अपने अल्पसंख्यकों का ख़याल रखेंगे.
- पाकिस्तान ने भारत को विश्वास दिलाया था कि वो अपने यहां हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसियों का ध्यान रखेगा.
- 1947 में पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या 23 फ़ीसदी थी और 2011 में यह कम होकर 3.7 फ़ीसदी हो गई.
- 1947 में बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की संख्या 22 फ़ीसदी थी और 2011 में यह कम होकर 7.8 फ़ीसदी रह गई.
- बांग्लादेश 1971 में बना, 1947 से 1971 के बीच वो पूर्वी पाकिस्तान था.
- 1951 में 84% हिंदू थे और 2011 में वो घटकर 79% हो गए जबकि बाकी के देशों में वहां के बहुसंख्यकों की संख्या बढ़ी है.
- 1951 में भारत में मुसलमानों की संख्या 9.8 फ़ीसदी थी और आज मुसलमानों की संख्या 14.23 फ़ीसदी है.
गृह मंत्री के यह आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार बिलकुल सही थे. लेकिन जानकार इससे हटकर बात करते हैं. जानकारों का मानना है कि शाह ने या तो जल्दबाज़ी में या फिर कुल मिलाकर यह आंकड़ा दिया होगा लेकिन 1947 से 1971 की पूरी यात्रा के दौरान पूर्वी पाकिस्तान में सिर्फ़ 15 फ़ीसदी अल्पसंख्यक बचे थे, बांग्लादेश बनने के बाद भी यह संख्या घटती रही और 1991 में वहां सिर्फ़ 10 फ़ीसदी अल्पसंख्यक बचे जबकि 2011 में वहां सिर्फ़ 8 फ़ीसदी अल्पसंख्यक बचे. वहीं पाकिस्तान में भी अल्पसंख्यकों की संख्या एक फ़ीसदी तक पहुंच गई है. इन आकंड़ों के अलावा अमित शाह ने घुसपैठियों और शरणार्थियों का जिक्र भी किया. लेकिन उन्होंने इसकी जो परिभाषा पेश की उसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं.
क्या है शरणार्थी या घुसपैठिया की परिभाषा?
गृह मंत्री अमित शाह ने अपने भाषण के दौरान कहा कि जो अपने देश में प्रताड़ित होता रहा है और जो अपना धर्म और महिलाओं की इज़्ज़त बचाने के लिए भारत आया है, वो शरणार्थी है और जो बिना अनुमति अवैध रूप से देश में घुस आया है वो घुसपैठिया है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी कहती है कि शरणार्थी वो शख़्स है जिसे उत्पीड़न, युद्ध या हिंसा के कारण अपने देश से भागना पड़ा है, शरणार्थियों को डर रहता है कि नस्ल, धर्म, राजनीतिक मत या किसी सामाजिक समूह के कारण उनका उत्पीड़न किया जाएगा. इस CAB में मुसलमानों को शामिल नहीं किया गया इसलिए भी इसकी आलोचना हो रही है. और इसके पीछे जो तर्क दिया गया है वो विपक्ष के गले नहीं उतर रहा. विपक्ष का कहना है कि CAB आर्टिकल 14 का उल्लंघन है.
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