वो कारण जिसके वजह से महाराष्ट्र में लगा राष्ट्रपति शासन

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महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने आखिरकार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश की और राष्ट्रपति ने इसकी मंजूरी दे दी. लेकिन को कौन से कारण है जिसकी वजह से महाराष्ट्र में कोई भी दल सरकार नहीं बना पाया.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी और शिवसेना का गठबंधन था एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन था. 24 अक्टूबर को आए चुनाव नतीजों में यह स्पष्ट था कि महाराष्ट्र की जनता ने बीजेपी और शिवसेना को अपना वोट दिया है इस गठबंधन को जादुई आंकड़े के बराबर सीटें मिली थी. लेकिन बाद में शिवसेना का मन पलट गया और उसने मुख्यमंत्री पद की वजह से गठबंधन से अलग होने का फैसला किया. लेकिन महाराष्ट्र में सरकार बनाने का दावा कर रही राकांपा, कांग्रेस और शिवसेना में आखिरी वक्त तक शर्तें ही तय नहीं हो पाईं और मंगलवार को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की सिफारिश पर केंद्र ने राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दी.

लेकिन अब एक बड़ा खुलासा हो रहा है और यह पता चल रहा है क्या फिर क्या वजह थी कि शिवसेना, एनसीपी और कॉन्ग्रेस की बात फाइनल नहीं हो पाई . दरअसल तीनों पार्टियों में तीन मुख्य वजह थी जिसकी वजह से इन तीनों ने मिलकर राज्य में गठबंधन की सरकार नहीं बना पाई .

पहली वजह तो यह थी की तीनों पार्टियां यह तय नहीं कर पाईं कि सरकार में किसके कितने मंत्री होंगे.

दूसरी दूसरी वजह यह थी कि कांग्रेस आश्वस्त होना चाहती है कि शिवसेना प्रखर हिंदुत्व के एजेंडे से दूर रहकर ही साथ आए.

तीसरी वजह थी कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने राज्यपाल से समय मांगने की बात शिवसेना और कांग्रेस को नहीं बताई. इससे अविश्वास पैदा हो गया

महाराष्ट्र की विधानसभा को निलंबित कर दिया गया है और अब राज्य में राजनीतिक हालात भी तेजी से उलट पलट रहे हैं पहले सरकार बनाने से इंकार कर चुकी भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर से सरकार बनाने के लिए सक्रिय हो गई है बीजेपी के पास 105 सीटें हैं. बीजेपी ने कांग्रेस से आए नारायण राणे के नेतृत्व में टीम बना ली है. राणे ने रात में कहा,

‘‘हमारे पास 145 का आंकड़ा हो जाएगा। हम ही सरकार बनाएंगे।’’

दूसरी तरफ कांग्रेस में भी केंद्रीय नेतृत्व दो खेमों में बटा हुआ नजर आ रहा है. एक तरफ महाराष्ट्र में कांग्रेस के सभी विधायक सरकार में शामिल होने की जिद पर अड़े हैं और दूसरी तरफ कांग्रेस को यह डर भी सता रहा है कि अगर वह सरकार में शामिल नहीं होती है तो उसके विधायक बीजेपी में चले जाएंगे. का केंद्रीय नेतृत्व दो खेमों में बंट चुका है। महाराष्ट्र के सभी विधायक सरकार में शामिल होने के लिए अड़े हुए हैं. लेकिन कांग्रेस का दूसरा खेमा जिसमें, राहुल गांधी, एके एंटनी, गुलाम नबी आजाद, केसी वेणुगोपाल जैसे नेता है वह शिवसेना से गठबंधन के खिलाफ बताए जा रहे हैं. बात अगर शिवसेना की करें तो शिवसेना ने भी अभी स्पष्ट तौर पर यह नहीं कहा है कि बीजेपी के साथ उसके रिश्ते खत्म हो गए हैं. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से जब पत्रकारों ने सवाल किया कि क्या फिर से वह बीजेपी के साथ जा सकते हैं तो उन्होंने कहा कि कुछ भी संभव है.

आप सभी की निगाहें इस बात पर टिकी है कि महाराष्ट्र में आगे क्या होगा? किसकी सरकार बनेगी?कौन मुख्यमंत्री बनेगा? इन सवालों के जवाब जाने से पहले आप यह जान लीजिए कि राज्य में भले ही राष्ट्रपति शासन लग गया हो लेकिन पार्टी अगर चाहती हैं तो वह कुछ दिनों में सरकार बना सकते हैं. इसके लिए बहुमत का आंकड़ा दर्शाना होगा. यानी समर्थन पत्र पर 145 (बहुमत का आंकड़ा) से ज्यादा विधायकों के हस्ताक्षर जरूरी हैं. समर्थन पत्र मिलने के बाद राज्यपाल केंद्र को राष्ट्रपति शासन खत्म करने के लिए कह सकते हैं। लेकिन, अगर राज्यपाल को विधायकों की खरीद-फरोख्त के प्रमाण मिलते हैं तो वह सरकार बनाने की मांग को खारिज भी कर सकते हैं.

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