मोदी सरकार के इस कदम से चीनी सामान भारतीय बाजारों पूरी तरह कब्जा कर लेगा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ आरसीईपी मुक्त व्यापार समझौते को लेकर बातचीत की है. मोदी सरकार का ये फैसला संघ को पसंद नहीं आ रहा है. सिर्फ संघ ही नहीं बल्कि हर उस आदमी को मोदी की ये बात कचोट रही है जो चीनी सामान का बहिष्कार करता है.
11 और 12 अक्टूबर को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. मुलाकात तस्वीरें खूब छाई रहीं. भारतीय मीडिया ने दिल खोलकर चीनी राष्ट्रपति का स्वागत किया. लेकिन इस मुलाकात में भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने पर जोर देने की बात हुई. इधर चीन और भारत के नेता मिल रहे थे और उधर क्षिण एशियाई देश थाइलैंड की राजधानी बैंकॉक में दोनों देशों के साथ 16 देशों के वाणिज्य मंत्रियों की मुलाकात हो रही थी. इसमें भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के अलावा ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, वियतनाम, ऑस्ट्रेलिया, चीन, दक्षिण कोरिया, जापान और न्यूजीलैंड के मंत्री भी शामिल थे. इन सभी देशों के बीच आरसीईपी यानी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते पर बातचीत हो रही है. अगर ये बातचीत कामयाब होती है तो भारतीय बाजार चीनी सामान से भर जाएगा. ये कैसे होगा इसे समझने के लिए आप आरसीईपी को समझिए.
आरसीईपी क्या है?
आसान शब्दों में समझें तो आरसीईपी एक मुक्त व्यापार समझौता है जो 16 देशों के बीच होने वाला है. इस समझौते से इन सभी देशों के बीच व्यापार को आसान बनाया जाएगा. पारस्परिक व्यापार में टैक्स में कटौती के अलावा कई तरीके की आर्थिक छूट दी जाएगी. 16 में से 10 देश आसियान समूह के और छह देश वो हैं जिनके साथ आसियान देशों का मुक्त व्यापार समझौता है. मुक्त व्यापार समझौते का मतलब दो या दो से ज्यादा देशों के बीच ऐसा समझौता है जिसमें आयात और निर्यात की सुगमता को बढ़ाया गया हो. इन सभी 16 देशों के बीच एक इंटिग्रेटेड मार्केट बनाया जाएगा, जो आपसी व्यापार को आसान करेगा. इससे इन देशों में एक दूसरे के उत्पाद और सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो सकेंगे. इस समझौते में उत्पाद और सेवाओं, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग, विवादों के निपटारे, ई कॉमर्स, बौद्धिक संपदा और छोटे-बड़े उद्योग शामिल होंगे.
इससे भारत को नफा-नुकसान क्या है?
जिन देशों के बीच आरसीईपी का समझौता होगा उसमें दुनिया की 45 फीसदी जनसंख्या रहती है. पूरी दुनिया में जितना निर्यात होता है उसका एक चौथाई इन देशों में होता है. दुनिया की जीडीपी का 30 प्रतिशत हिस्सा इन देशों से ही आता है. तो अगर आकंड़े देखें तो आरसीईपी दुनिया का सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होगा. इस समझौते में 25 हिस्से होंगे. इनमें से 21 हिस्सों पर सहमति बन गई है. अब निवेश, ई कॉमर्स, उत्पादों के बनने की जगह और व्यावसायिक उपचारों पर सहमति होनी है. इससे भारतीय कंपनियों को बड़ा बाजार तो मिलेगा लेकिन भारत के सामने सबसे बड़ी परेशानी है भारत का व्यापार घाटा. जब किसी देश का आयात उस देश के निर्यात से ज्यादा हो तो इस स्थिति को व्यापार घाटा कहा जाता है. इन 16 देशों के साथ होने वाले व्यापार में भारत 11 देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है.
अब इसका मतलब ये है कि भारत 16 में से 11 देशों से जो माल खरीदता है उससे कहीं कम उन्हें बेचता है. इनमें सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ है. 2014-15 में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने पर भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2600 अरब रुपये था जो 2018-19 में बढ़कर 3700 अरब रुपये हो गया है. इसके अलावा भारत की एक बड़ी चिंता आर्थिक मंदी भी है. अब आप ये समझिए कि भारत की निर्यात विकास दर 2019 के पहले आठ महीनों में 11.8 प्रतिशत से घटकर 1.4 प्रतिशत पर आ गई है. और अगर ये गिरावट ऐसे ही बनी रही तो भारत का व्यापार घाटा और बढ़ेगा क्योंकि भारत दूसरे देशों को निर्यात करने से ज्यादा खुद आयात करेगा. अब यहां एक पेंच ये भी है कि जैसे भारत की कंपनियों को बाकी देशों में बाजार मिलेगा वैसे ही दूसरे देशों को भारत में बाजार मिलेगा. ऐसे में चीन समेत सभी दूसरे देश सस्ती कीमतों पर अपना सामान भारतीय बाजार में बेचना शुरू करेंगे. इससे भारतीय बाजार के उत्पादकों को परेशानी होगी. इसका उदाहरण बांग्लादेश से दिया जा सकता है. भारत और बांग्लादेश के बीच मुक्त व्यापार का समझौता है. इसके चलते बांग्लादेश में बनने वाला कपड़ा सस्ती दरों पर भारत में उपलब्ध होता है. इसके चलते भारतीय कपड़ा उद्योग को बहुत नुकसान हुआ है. खेती के बाद दूसरे नंबर पर रोजगार प्रदान करने वाले कपड़ा उद्योग में करीब 10 लाख लोगों का रोजगार खत्म हो गया.
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आरसीईपी से इस तरह का असर सबसे ज्यादा डेयरी और स्टील उद्योग पर पड़ने के आसार हैं. विदेशों से सस्ते डेयरी उत्पाद और स्टील आने से भारतीय बाजार को नुकसान होगा. यही कारण है कि संघ भारत के इस फैसले का विरोध कर रहा है. भारत सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा नुकसान छोटी कंपनियों को होगा. जो लोग चीनी सामान का बहिष्कार या विरोध कर रहे हैं उनके लिए ये समझौता भयानक है. क्योंकि इस समझौते के बाद भारतीय बाजार चीनी सामान से भर जाएगा.