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चतुर चीन को उसकी भाषा में जवाब दे पाएंगे मोदी?

Will Modi be able to answer the clever China in his language?

बहुत जल्द भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्टपति शी चिनपिंग की मुलाकात होनी है. दोनों देशों के राष्ट्राध्यक्षों की मुलाकात ऐसे समय में हो रही है जब कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने चीन से भारत की शिकायत की है और चीन ने जम्मू कश्मीर पर अपना रुख भी जाहिर किया है.

चीन किसी का सगा नहीं है ये सब जानते हैं लेकिन उसके बगैर किसी का काम भी नहीं चलता. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के कश्मीर पर रुख के समर्थन के बाद भारत ने प्रतिक्रिया दी है. ये प्रतिक्रिया ऐसे समय में आई है जब चीनी राष्ट्रपति शुक्रवार से भारत के अनौपचारिक दौरे पर आ रहे हैं. क्या भारत की प्रतिक्रिया से चीनी राष्ट्रपति का भारत दौरा प्रभावित होगा. क्योंकि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के बीजिंग दौरे के खत्म होने से पहले चीनी राष्ट्रपति ने कहा कि चीन कश्मीर पर बारीकी से निगाह रखा रहा है और सच्चाई साफ है.

ये बात चीन की सरकारी समाचार एजेंसी के हवाले से दुनिया के सामने आई है. समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबित शी जिनपिंग ने कहा है कि, “चीन पाकिस्तान को उसके वैध अधिकारों की रक्षा के लिए समर्थन देता है और उम्मीद करता है कि संबंधित पक्ष अपने विवादों को शांतिपूर्ण बातचीत से सुलझा लेंगे.” पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ जारी संयुक्त बयान में यह भी कहा गया है कि चीन, “ऐसी किसी भी एकतरफा कार्रवाई का विरोध करता है जो स्थिति को और जटिल बना दे”

समाचार एजेंसी का ये भी दावा है कि “सही ठंग से शांतिपूर्ण तरीके से यूएन चार्टर, संबंधित सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और द्विपक्षीय समझौतों के जरिए सुलझाया जाना चाहिए.” चीन की इस प्रतिक्रिया के बाद भारत ने भी अपने प्रतिक्रिया दी. भारतीय विदेश मंत्रालया ने बयान जारी करके कहा है कि जम्मू कश्मीर के मसले पर भारत की स्थिति स्पष्ट है. जम्मू और कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा है. चीन हमारी स्थिति के बारे में जानता है. दूसरे देशों को भारत के अंदरूनी मामलों में बयान नहीं देना चाहिए.

ये बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि शी भारत की यात्रा पर होंगे तो अब इस रुख क्या बाद क्या बदलाव आएगा. हाल में कश्मीर को लेकर चीन का पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र में समर्थन देने से यह थोड़ा और बढ़ गया है. इसके साथ ही चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना भी इस तनाव को हवा दे रही है. चुंकि चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का एक हिस्सा पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर से भी गुजरता है जिस पर भारत की भी दावेदारी है.

चीन का जम्मू कश्मीर पर ये रुख इसलिए भी है क्योंकि पांच अगस्त को भारत सरकार ने लद्दाख को जम्मू कश्मीर से बांट कर अलग राज्य बना दिया लिहाजा चीन की चिंता बढ़ गई. क्योंकि लद्दाख के कुछ हिस्सों पर चीन भी दावा करता है. लद्दाख चीन के उत्तर में अशांत क्षेत्र शिनजियांग और पूर्व में तिब्बत से लगता है. भारत भी लद्दाख के उस हिस्से पर अपना दावा जताता है जो फिलहाल चीन के कब्जे में है.

इन तमाम घटनाक्रमों के बीच मोदी और शी की मुलाकात में क्या गर्मजोशी रह पाएगी ये अहम सवाल है. ऐसा लग रहा था कि शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी ने अप्रैल 2018 में चीन के वुहान में हुए पहले अनौपचारिक सम्मेलन के बाद आपसी विवादों को किनारे रख दिया था. हालांकि कश्मीर में स्थिति बदलने के बाद से दोनों के रिश्तों में गर्मजोशी नहीं नजर आ रही है. भारत चार देशों के उस संगठन में भी अपनी भागीदारी बढ़ा रहा है जिसे माना जाता है चीन के बढ़ते प्रभाव को बेअसर करने के लिए बनाया गया है.

जिन चार देशों का समूह बनाया गया है उसमें भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. भारत ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश में एक सैन्य अभ्यास भी किया था जो चीन के साथ उसके संबंधों की एक और दुखती रग है. चीन अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों को भी अपना बताता है. अब ऐसे में शी भारत में क्या रुख रखते हैं ये देखना होगा. क्योंकि भारत की यात्रा के बाद चीनी राष्ट्रपति दो दिन के लिए नेपाल भी जाने वाले हैं. बीते करीब 20 सालों में किसी चीनी राष्ट्रपति का ये पहला चीन दौरा है और इस दौरे के भी अपने ही माएने हैं.

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