चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है. इन राज्यों में 21 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे और नतीजे 24 अक्टूबर को आएंगे. दोनों राज्यों में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है. दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार है और यहां सरकार बचाने की चुनौती है. धारा 370 हटने के बाद ये बीजेपी के गढ़ में पहली परीक्षा है.
हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी काफी मजबूत है दोंनो ही राज्यों में पार्टी ने विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया है. महाराष्ट्र में 8.94 करोड़ और हरियाणा में 1.28 करोड़ वोटर है. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा है कि हरियाणा में 1.3 लाख और महाराष्ट्र में 1.8 लाख ईवीएम का इस्तेमाल किया जाएगा. चुनाव आयोग ने कहा है कि इस बार प्रचार के दौरान पर्यावरण के अनुकूल प्रचार सामिग्री का इस्तेमाल करें. दोनों राज्यों के गणित की बात करें हरियाणा में भाजपा और महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार है.
महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ चुनाव लड़ेगी बीजेपी
महाराष्ट्र में विधानसभा की 288 सीटें हैं और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में भाजपा-शिवसेना की गठबंधन सरकार है. यहां विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को खत्म हो जाएगा और इससे पहले नई सरकार का गठन होना हैं. एनसीपी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी शिवसेना के साथ मिलकर मैदान उतरी है. मोटे तौर पर देंखे तो यहां पर बीजेपी शिवसेना का गठबंधन मजबूत है. मौजूदा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे, कांग्रेस के अशोक चव्हाण और राकांपा प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजीत पवार की किस्मत दांव पर है. धारा 370 हटने के बाद बीजेपी के सामने सत्ता में वापस आने की चुनौती है.
हाल ही में पीएम मोदी ने अपने महाराष्ट्र दौर पर कश्मीर के संबंध में लिए फैसले का जिक्र किया. पिछले दिनों मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष कृपाशंकर सिंह ने अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पार्टी छोड़ दी. विलासराव देशमुख की सरकार में गृह राज्य मंत्री रहे सिंह ने कहा कि वे इस मुद्दे पर कांग्रेस के रुख से आहत हैं. महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में फैसला किया है कि राज्य पर्यटन विकास विभाग श्रीनगर और लेह में दो रिजॉर्ट बनाएगा. यहां बीजेपी के रुख से साफ हो जाता है कि चुनाव में धारा 370 बीजेपी के लिए मुद्दा रहेगी. हालांकि विदर्भ में सूखा और किसान आत्महत्या का मामला भी है. दूसरी तरफ मध्य महाराष्ट्र में बाढ़ और मराठा आरक्षण का मुद्दा भी मुंह फैलाए खड़ा है. पिछले चुनाव में यहां 25 साल बाद बीजेपी शिवसेना से अलग होकर मैदान में उतरी थी. इसमें बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिली थीं.
हरियाणा में खट्टर का विरोध लेकिन मोदी का असर
हरियाणा में मौजूदा मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर, कांग्रेस के भूपिंदर सिंह हुड्डा के बीच टक्कर है. यहां भी धारा 370 प्रमुख चुनावी मुद्दा रहेगा. ये तय है कि बीजेपी कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का मुद्दा उठाएगी. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला ने पिछले दिनों इसके संकेत दिए हैं. उधर पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने भी अगस्त में रोहतक में हुई रैली में अनुच्छेद 370 निष्प्रभावी करने के फैसले का समर्थन कर दिया था और कांग्रेस के स्टैंड पर सवाल खडे किए थे. लेकिन यहां पर स्वराज्य इंडिया नाम की नई पार्टी बेरोजगारी को मुद्दा बना रही है. नौकरियां, क्योंकि खट्टर सरकार दावा कर रही है कि उसने समाज के सभी वर्गों को रोजगार के मौके दिए हैं लेकिन विपक्ष इस खारिज कर रहाहै.
भाजपा को हरियाणा में पहली बार 2014 में पूर्ण बहुमत मिला था 2014 विधानसभा चुनाव से ऐन पहले भाजपा ने हरियाणा जनहित कांग्रेस से गठबंधन तोड़कर सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ा. पार्टी 47 सीटें जीतने में सफल रही. हरियाणा के इतिहास में ये पहला मौका था जब किसी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी. अब देखना होगा कि इस चुनाव में हुड्डा और खट्टर के बीच कैसा मुकाबला रहता है.