ऑटो सेक्टर से लेकर कई सेक्टर सरकार से अपील कर रहे थे कि जीएसटी की दरों में कटौती की जाए. लेकिन जीएसटी काउंसिल की मीटिंग से पहले डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में बड़ी गिरावट के चलते राजस्व घटा है ऐसा लगता इससे इसकी संभावना खत्म हो गई है.
आर्थिक मोर्चे पर जूझ रही मोदी सरकार के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती है कि राजस्व कैसे बढ़ाया जाए. साल 2019-20 के पहले साढ़े पांच महीनों में नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में कमी देखने को मिल रही है. अप्रैल से सितंबर तक के बीच नेट डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में महज 4.4 लाख करोड़ करोड़ रहा. ये सरकार के लक्ष्य से काफी कम है और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में बढ़ोत्तरी सिर्फ पांच फीसदी ही रही है. सरकार ने बजट अनुमान में 13.35 लाख करोड़ रुपये अर्जित करने का अनुमानित लक्ष्य रखा है.
चुंकि लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है तो तो बाकी बचा राजस्व सरकार को बचे हुए समय में दोगुनी रफ्तार से हासिल करना होगा जो कि ऐसे आर्थिक हालात में काफी मुश्किल है. सरकार सितंबर महीने से उम्मीद है क्योंकि इस महीने में कंपनियों को अपनी कुल देयता के मुकाबले 45 फीसदी जमा करना होता है. कंपनियां अपनी शेष 30 फीसदी और 25 फीसदी कर देयता को अगले दो किस्तों में चुकाती हैं. ये समय 15 दिसंबर और 15 मार्च होता है. कहा तो ये भी जा रहा है कि मंदी का असर है और एडवांस टैक्स कलेक्शन में वृद्धि एक अंक में सिमट गई है.
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मौजूदा वक्त में ये कलेक्शन 6 फीसदी है जबकि पिछले साल ये 18 फीसदी के करीब था. इससे पता चलता है कि डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन में गिरावट और होगी. राजस्व की कमी के जलते सरकार के राजकोषीय गणित के गड़बड़ाने के भी आसार हैं. क्योंकि सरकार को जीडीपी का 3.3 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल करना भी एक चुनौती के समान होगा. सरकार ने पिछले वित्त वर्ष में भी 63000 करोड़ रुपये का डायरेक्ट टैक्स का लक्ष्य हासिल नहीं किया था और इस साल भी आसार ठीक नहीं हैं. इसलिए जीएसटी में सरकार राहत देने की स्थिति में नहीं है.