आपने ये तो सुना होगा कि जंग के दौरान सेनाएं कुत्तों का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन क्या कभी ये सुना है कि युद्ध में न सिर्फ कुत्ते बल्कि जमगादड़ों का भी इस्तेमाल किया जाता है. और चमगादड़ दुश्मनों पर बम गिराने का काम करते हैं. अपनी इस रिपोर्ट में हम आपको उन जानवरों के बारे में बताने जा रहे हैं जो अपने देश के लिए शहीद हुए.
बात दूसरे वर्ल्ड वॉर की है जब 6 जून 1944 को कबूतर गठबंधन सेना की नॉर्मैंडी में लैंडिंग की अच्छी खबर लाए थे. इस सेना में चमगादड़, मधुमक्खी, चिड़िया या डॉल्फिन जैसे बहुत से जानवरों का इस्तेमाल किया गया था. चांहे पहली वर्ल्ड वॉर या दूसरी दोनों ही जंगों में कबूतरों का इस्तेमाल संदेश भेजने के लिए किया गया था. कबूतरों के अच्छे दिशा ज्ञान की वजह से दूसरे विश्व युद्ध में सिर्फ ब्रिटेन ने दूर दराज में संदेश भेजने के लिए दो लाख कबूतर इस्तेमाल किए थे. कहा जाता है जंग में कबूतरों ने हजारों लोगों की जिंदगियों को सुरक्षित किया था और जंग के बाद कुछ कबूतरों को विक्टोरिया क्रॉस की तरह का डिकिन मेडल से सम्मानित किया गया था.
जब कबूतर फोटोग्राफर बने थे
जंग में कबूतरों ने सिर्फ संदेशवाहक का काम ही नहीं किया बल्कि फोटो भी खींचे. आजकल ड्रोन कैमरों से जो काम होता है एक जमाने में वो काम कबूतर करते थे. 1907 में युलियुस नॉयब्रोनर को आयडिया आया कि इनके गले में छोटा सा कैमेरा बांध हवा से फोटो भी लिए जा सकते हैं. इन्हें कभी जासूसी के लिए या लड़ाई के मैदान में इस्तेमाल किया जाना था या नहीं, इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. अमेरिका ने प्रोजेक्ट पिजन के तहत पिजन गाइडेड मिसाइल बनाने की कोशिश भी की थी.
जंग में कुत्तों ने जान बचाई
जहां हजारों सैनिकों से काम नहीं हो पाता है वहां पर कुत्ते काम आते हैं. ये बात अमेरिका को अच्छी तरह पता थी. क्योंकि कुत्ते इंसान के सबसे अच्छे दोस्त होते हैं और कुत्ते को बारुदी सुरंग सूंघने और बम धमाकों में घायल लोगों को ढूंढने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यही कारण था कि वियतनाम में अमेरिका ने चार हजार कुत्ते इस्तेमाल किए, जिसमें ज्यादातर लैब्राडोर और जर्मन शेफर्ड प्रजाति के थे. जंग में इन कुत्तों ने अमेरिका की बहुत मदद की. इसी तरह सैकेंड वर्ल्ड वॉर में भी एंटी टैंक डॉग्स कुत्तों को कहा जाता था. रूस की सेना इन्हें जर्मनी के टैंकों के खिलाफ इस्तेमाल करती थी. विस्फोटकों के साथ इन्हें टैंक के नीचे जाने की ट्रेनिंग दी जाती. जैसे ही ये वहां पहुंचते बम में विस्फोट करवा दिया जाता. 1996 के कुत्तों को बम से उड़ाने का काम बंद हो गया.
चमगादड़ों से करवाई बमों की बारिश
बात 1940 की है जब अमेरिका ने चमगादड़ों पर बम बांधकर दुश्मन के खिलाफ उन्हें उतार दिया. जैसे ही बम का कनस्तर गिराया जाता हजारों छोटे चमगादड़ नैपैम को लिए उड़ते और नीचे किसी इमारत पर बैठते. योजना थी एक ही शहर में एक साथ कई जगह आगजनी की जाए. अमेरिका का ये प्रयोग काफी हद तक कामयाब भी कहा. दुश्मनों को चकमा देने में चमगादड़ों ने अमेरिकी सैनिकों की खूब मदद की. युद्ध के दौरान कम संसाधनों का दोहन करके सामने वाले को शिकस्त देने की का ये फॉर्मूला कामयाब रहा था.
जब बिल्ली से करवाई गई जासूसी
जंग में ना सिर्फ चमगादड़ बल्कि बिल्ली का भी खूब इस्तेमाल किया गया. 1960 में सीआईए ने अकूस्टिक किट्टी प्रोजेक्ट के जरिए सोवियत दूतावासों में जासूसी करने की योजना शुरू की. इसके लिए एक बिल्ली में माइक्रोफोन, बैटरी, एंटीना ऑपरेशन कर लगा दिए जाते. ये बाहर होने वाली बातचीत रिकॉर्ड कर सकते थे. इस प्रोजेक्ट को 1967 में खत्म कर दिया गया.
जानवरों को किया जा रहा जंग के लिए तैयार
दुश्मनों को हराने के लिए मधुमक्खियां का करने की भी योजना है. क्रोएशिया में बम पार्टिकल को मीठे घोल में डूबा कर शोधकर्ता ऐसी मधुमक्खियां ब्रीड करवा रहे हैं जो तीन मील दूर से ही छिपी हुई बारुदी सुरंग का पता लगा लें. चूहों को भी ट्रेंड किया जा रहा है. तंजानिया में बेल्जियाई गैर सरकारी संगठन अपोपो चूहों को बारुदी सुरंग सूंघने की ट्रेनिंग दे रहा है. चुहों को ट्रेनिंग देकर दूसरे देशों को इन्हें किराए पर दिया जाता है. फिलहाल 57 चूहे ऐसे हैं जो इन सुरंगों का पता लगा सकते हैं. इससे पहले 1970 में ब्रिटेन की एमआई5 ने योजना बनाई कि वह खास चूहों की एक टीम बनाएगी जिन्हें एड्रेनलीन यानि स्ट्रेस हार्मोन सूंघना सिखाया जाएगा. इन्हें तेल अवीव में आतंकियों को सूघने के लिए तैयार किया जाता था.
जानवरों की याद में स्मारक
सेनाओं ने जानवारों को जंग में उतारकर एक से एक प्रयोग किए हैं. इन्हीं प्रयोगों में सी लायन और डॉल्फिन भी जाती हैं जिन्हें अमेरिकी सेना में 1960 में तैयार किया. ये नौसेना के मैमल प्रोग्राम का हिस्सा हैं. उन्हें दुश्मन गोताखोरों का पता लगाने, जहाज के यात्रियों को सुरक्षित तट तक पहुंचाने और पानी के नीचे बिछाई गई बारुदी सुरंगों का पता लगाने के लिए किया जाता था. इराक युद्ध के दौरान फारस की खाड़ी में बारूदी सुरंगों की सफाई का काम डॉल्फिन करती थीं. ऐसा नहीं है कि जानवरों का जंग में सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है. उन्हें याद करके के लिए लंदन में स्मारक बनाया बनाया गया है.