गणेश चतुर्थी : भगवान गणेश का उत्तराखंड से क्या है कनेक्शन?

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गणेश चतुर्थी पर पूरे देश में हर्षोल्लास का माहौल है. लोग अपने घरों में भगवान की प्रतिमा स्थापित कर रहे हैं. और पूजा अर्चना में लगे हुए हैं. आमतौर पर ये माना जाता है कि महाराष्ट्र में इस त्योहार का रंग जमता है. लेकिन हमें ये बात नहीं भूलना चाहिए कि भगवान गणेश का उत्तराखंड से भी कनेक्शन है.

गणेश चतुर्थी पर पूरी दुनिया महाराष्ट्र के रंग को देखती है. लेकिन महाराष्ट्र से करीब हजार किलोमीटर दूर तिब्बत सीमा से सटे उत्तराखंड के छोटे से इलाके उत्तरकाशी में भी गणेश उत्सव खास तौर पर मनाया जाने लगा है. यहां लोगों का मानना है कि गणेश जी मूल रूप से उत्तरकाशी के थे. उत्तरकाशी के लोगों में भी इस त्योहार को लेकर वैसा ही उत्साह है जैसा किसी और जगह पर है. हां ये बात और है कि अब इस त्योहार की रौनक यहां बाकी जगह से अलग दिखाई देती है. उत्तरकाशी से सटे हुए केलसू क्षेत्र के लोग गणेश पर अपना दावा जताते हुए अपने यहां भी गणेश चतुर्थी का आयोजन कर रहे हैं.

गणेश जी का जहां पैदा हुए!

यहां के लोगों का कहना है कि गणेश जी मूल रूप से यहीं के हैं. उत्तरकाशी का केलसू इलाका असी गंगा नदी घाटी के सात गांवों को मिलाकर बना है. 2012 की विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आया यह क्षेत्र लगातार मानसूनी आफत से दो-चार होता रहा है. इस इलाकों में आपदाएं आती रहती है. 1991 में यहां विनाशकारी भूकंप भी आया था. इस भूकंप का केंद्र भी केलसू का ढासड़ा गांव था. यहां आज भी भूकंप से हुई तबाही से निशान बाकी हैं. 2012 में आपदा के बाद ये इलाका पूरी तरह से बर्बाद हो गया. उससे पहले यहां पर काफी पर्यटक आते थे.

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अस्सी गंगा घाटी कैंपिंग के लिए मशहूर थी, संगमचट्टी से 18 किमी लंबे ट्रैक के जरिए डोडीताल तक जाने के लिए मार्च से नवंबर तक पर्यटकों की भीड़ रहती थी. लेकिन 2012 के बाद यहां पर तबाही ही तबाही दिखाई देने लगी. ज्यादातर रास्तें टूट गए और अस्सी़ गंगा घाटी कैंपिंग लायक नही रही. लेकिन अब यहां के लोगों ने गणेश जी पर अपना दावा ठोंक कर गणेश चतुर्थी को धूमधाम से मनाने शुरु किया है और ये लोग कहते हैं कि डोडीताल का केलसू क्षेत्र गणेश की जन्म भूमि है.

डोडीताल के किनारे पैदा हुए भगवान गणेश

लोगों का कहना है कि पुराणों में इस बात की पुष्टि होती है कि भगवान गणेश यहीं पैदा हुए थे. हालांकि ये बाद अलग है कि यहां के लोगों ने कभी इस बात को जोर शोर से प्रचारित नहीं किया. यहां के लोगों का मानना है कि डोडीताल, जोकि मूल रूप से बुग्यातल के बीच में काफी लंबी-चौड़ी झील है, वहीं गणेश का जन्म हुआ था. यहां एक अन्नंपूर्णा का मंदिर भी है. लोगों का कहना है कि केलसू मूल रूप से कैलाशू है. लोग कहते हैं कि ये शिव का कैलाश है. ये उस कैलाश से सैकड़ों किलोमीटर दूर है जिले लोग कैलाश कहते हैं.  

पिछले कुछ सालों से यहां के लोगों ने स्थानीय नेताओं की मदद से गणेश चतुर्थी को धूम धाम से मनाने का काम शुरु किया. इस बार गणेश चतुर्थी का भव्य आयोजन हो रहा है और लोग कह रहे हैं कि केलसू में ही भगवान गणेश का जन्म हुआ था. हालांकि यहां जो पूजा पाठ किया जा रहा है उस पर महाराष्ट्र की छाप दिखाई देती है. गणेश प्रतिमा स्थापित करने से पहले निकाले गए जुलूस में शामिल केलसू के ग्रामीणों ने सिर पर महाराष्ट्र् के लोगों द्वारा पहनी जाने वाली सफेद टोपी और सफेद कुर्ता-पायजामा भी पहना हुआ था. और गणेश जी की पूजा करने के लिए यहां के एक मराठी मानुष को लगाया गया.

पुराणों में मिलता है डोडीताल जिक्र

यहां गणेश भगवान को स्थानीय भाणा में डोडी राजा कहते हैं. ये केदारखंड में डुंडीसर हो जाता है. वैसे तो डोडीताल एडवेंचर के शौकीनों की पसंद रहा है लेकिन अब यहां गणेश जी के जन्म स्थान के तौर पर इसे प्रचारित करने की कोशिशें हो रही हैं. जानकार तो ये भी कहते हैं कि डोडीताल का इलाका मध्य कैलाश में आता है और यहां माता पार्वती और भगवान शिव का स्थान स्थल है. हिमगिरी बिहार नाम की एक किताब में भी डोडीताल को गणेश जी का जन्मस्थल बताया गया है. इसी तरह मुद्गल ऋषि की लिखी हुई मुद्गल पुराण जो पूरी तरह से गणेश जी को समर्पित है वो भी बताती है कि मुद्गल ताल केलसू क्षेत्र में है और इसी ताल के नाम से मुद्गल ऋषि का भी नामकरण हुआ था.

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