आपने फिल्म दामिनी का वो संवाद को सुना ही होगा जिसमें सनी देओल कहते हैं ‘तारीख पर तारीख मिलती रही है जज साहब इंसाफ नहीं मिला’. तो ये बात सही भी है हमारे देश में इतने मामले हैं कि उनका बोझा उठाते उठाते अदालतों की कमर टूटने लगी है. हालत ये है कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने खुद कहा है कि तमाम हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीश 25 से 50 साल पुराने मामलों को जल्द निपटा दें.
साहब, आपको जानकर हैरानी होगी की हमारे देश में एक हजार से ज्यादा ऐसे मामले हैं जो 50 साल से लंबित हैं और दो लाख से ज्यादा मामले 25 साल से लंबित हैं. यानी दो-दो पीढ़ियां खप गईं लेकिन इंसाफ नहीं मिला. ये आंकड़ा यहीं नहीं रुकता, 90 लाख से ज्यादा लंबित दीवानी के मामले हैं जो सालों से लंबित हैं और 20 लाख मामले तो ऐसे हैं जिसमें अभी तक समन ही नहीं भेजा गया है. आपराधिक मामलो की हालत तो और खराब है. देश में 2 करोड़ 10 लाख आपराधिक मामलों में से एक करोड़ से ज्यादा में अब तक समन तक जारी नहीं हुआ है. हैं ना चौंकने वाली बात. अब पहले से ही करोड़ मामले लंबित हैं ऊपर से मामले बढ़ ऐसे रहे हैं जैसे हनुमान जी की पूंछ.
नेशनल ज्युडिशियल डाटा ग्रिड डेटा बताता हैं कि अदालतों में दीवानी और आपराधिक मामलों की लगातार तेजी से बढ़ रही है. और सरकार इन्हें रोकने या खत्म करने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है. आंकड़े बताते हैं कि निचली अदालतों में 2.97 करोड़ दीवानी और आपराधिक मामले लंबित हैं. इनमें से दो दीवानी मामले तो ऐसे हैं जो 1951 से लंबित हैं. मतलब कतई हद है. 2015 से जनवरी 2019 तक सुप्रीम कोर्ट में अच्छी बात ये हुई कि लंबित मामलों की तादाद में 3.8 फीसदी गिरावट आई. लेकिन बुरी बात ये है कि देश के 24 हाईकोर्टों में लंबित मामलों में 9.7 फीसदी यानी 3.75 लाख की बढ़ोत्तरी हो गई. इनमें भी अव्वल है इलाहाबात हाईकोर्ट जिसमें 7.26 लाख मामले बढ़े हैं. राजस्थान हाईकोर्ट दूसरे नंबर पर है जहां 4.49 लाख मामले सामने आए.
अब ऐसा नहीं है कि अदालतें काम नहीं कर रहीं. 2017 और 2018 के साल में निचली अदालतों ने 1 करोड़ 26 लाख दीवानी और 1 करोड़ 30 लाख आपराधिक मामले निपटे थे. लेकिन मुकदमें इतने है कि अदालतों को दम फूल रहा है. इससे राहत देने के लिए अप्रैल, 2017 में दस साल से ज्यादा पुराने जो मामले थे उसको जल्दी जल्दी निपटाने के लिए रिटायर न्यायिक अधिकारियों की बहाली करने के लिए न्याय मित्र योजना शुरू की गई थी. लेकिन फायदा ज्यादा कुछ हुआ नहीं. चुंकि अदालतों से सबका वास्ता पड़ता है तो सभी सोच रहे होंगे कि मोदी जी ऐसा क्या कर सकते हैं कि तारीखें ना मिलें और जल्द से जल्द इंसाफ मिले. चलिए ये आपको बताएंगे इससे पहले ये बता देते हैं कि तारीख पर तारीख मिलती क्यों है.
तारीख मिलने या लंबित मामलों को सबसे पहला कारण तो ये है कि जजों की कमी है. मई, 2014 में हाईकोर्ट के जजों की अनुमोदित तादाद 906 थी जिसे दिसंबर, 2018 में बढ़ा कर 1079 किया गया था. लेकिन फिलहाल इन अदालतों में 676 जज ही हैं. इसके हिसाब से 37 फीसदी पद खाली पड़े हैं. 2013 से 2018 के बीच निचली अदालतों में न्यायिक अधिकारियों के 19,518 पदों को बढ़ाकर 22,833 किया गया था लेकिन हैरानी होगी आपको ये जानकर की इनमें से 5,450 पद अभी खाली हैं. इस वजह से निचली अदालतों में लंबित मामलों की तादाद तेजी से बढ़ रही है. अब जब जज ही नहीं हैं तो सुनवाई करे कौन और सुनवाई होगी नहीं तो हुआ ये कि अदालतों में लंबित 2.97 करोड़ मामलों में 2.05 करोड़ मामले तो 2015 से अब तक जुड़ गए.
अब आप सोच रहे होंगे कि जब पता है कि जज चाहिए तो जजों के खाली पद भरे क्यों नहीं जाते. तो आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीशों और केंद्र सरकार के बीच खूब टकराव हुआ. उसका नतीजा ये हुआ कि 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने ये कहा कि निचली अदालतों में 2,279 जजों की नियुक्ति अगर होती है तो हर साल आने वाले ताजा मामलों को निपटाया जा सकेगा और अगर 8,152 अतिरिक्त जजों की नियुक्ति की जाएगी तो पांच सालों में तमाम लंबित मामले निपटाए जा सकेंगे. इसी साल 11 जुलाई को राज्यसभा में सरकार ने कुछ आकंड़े रखे थे जिसमें पता चला कि निचली अदालतों में जजों के 5,450 पद खाली हैं. अब इतने पद पहले भरें तब कुछ और सोच सकते हैं.
आखिर में आपको सवाल ये होगा कि इसमें मोदी जी क्या करेंगे. तो साहब मोदी सरकार ये तो पता ही है कि जजों के कितने पद खाली हैं. तो सबसे पहले तो सरकार जजों के खाली पद भरे. लेकिन काम इतने से नहीं चलेगा क्योंकि हालात बेहद खराब और जब मरीज आईसीयू में हो तो उसका अच्छा ट्रीटमेंट देना पड़ता है. इसलिए निचली अदालतों में बुनियादी ढांचे को सुधारें. सरकार ने लोकसभा में कहा भी है कि निचली अदालतों में जजों का जो चयन हाईकोर्टों और संबंधित राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है. लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी निभा नहीं रहे हैं. दूसरी बात ये आती है कि हाईकोर्ट के जजों के रिटायर होने की उम्र को 62 से बढ़ा कर 65 कर दें मोदी जी. अगर ऐसा होगा तो तीन साल तक सेवानिवृत्ति रुकेगी और बेहतर जजों से 403 खाली पदों को भर दिया जाएगा. तो फौरी तौर पर अगर मोदी जी कुछ इस तरह के कदम उठा लेते हैं तो आपको तारीख पर तारीख नहीं मिलेगी.