मोदी सरकार 2.0 का बजट 2019 क्या अल्पसंख्यक वर्ग के युवाओं के लिए खास है. ये सवाल इसलिए है क्योंकि मुस्लिम युवाओं को यूपीएससी परीक्षा में बैठने के लिए सरकार ने और मदद का फैसला करते हुए ज्यादा फंड दिया है.
यूपीएससी परीक्षा 2017 में पहली बार 50 मुस्लिम प्रत्याशियों ने परीक्षा पास की थी. 2018 में भी मुस्लिम युवाओं के परीक्षा पास करने की दर 50 फीसदी के आसपास रही थी. 2013, 2014, 2015 और 2016 में ये ये दर क्रमश: 30, 34, 38 और 36 थी. लेकिन बार मोदी सरकार ने UPSC परीक्षा में बैठने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के प्रतिभागियों के लिए आवंटित रकम में बढ़ोत्तरी की है. यूपीएसी, एसएससी, स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन के द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं में प्रीलिम्स क्वालिफाई करने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के प्रत्याशियों को मुफ्त और सस्ती कोचिंग उपलब्ध कराने से जुड़ी योजना के लिए पिछले साल 8 करोड़ रुपये की रकम आवंटित की गई थी. इस साल इस रकम को बढ़ाकर 20 करोड़ कर दिया गया है.
सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास नारे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार के ऊपर ये आरोप लगता रहा है कि वो अल्पसंख्यक समुदाय के ऊपर ध्यान नहीं दे रही लेकिन बजट में सरकार ने की गई घोषणाओं से लगता है कि सरकार को फोकस मुस्लिम युवाओं की शिक्षा के विस्तार पर है. पिछले साल जब हज सब्सिडी को खत्म किया गया तो अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा था कि सरकार इन फंड्स का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को शिक्षित करने में करेगी. सरकार की यूपीएससी योजना का मकसद मुस्लिम युवाओं को IAS-IPS की कुर्सी तक पहुंचाना है.
मौजूदा वक्त में यूपीएससी की सेवाओं में मुस्लिम युवाओं की भागीदारी कम है. लिहाजा उसको बढ़ाने के लिए स्कीम के तहत यूपीएससी के ग्रुप ए और ग्रुप बी, स्टेट पब्लिक सर्विस कमिशन और स्टाफ पब्लिक कमिशन के प्रीलिम्स एग्जाम पास करने वालों को सीधी आर्थिक मदद दी जाती है. नकवी ने पिछले साल ऐलान किया था कि सरकार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के हज भवन में छात्रों के लिए फ्री कोचिंग शुरू करेगी. इस साल की बात करें तो एग्जाम पास करने वाले मुस्लिम प्रतिभागियों की संख्या घटकर 28 रह गई. हालांकि, पिछले साल के 980 प्रतिभागियों की जगह इस बार महज 782 को ही रिक्रूट किया गया था.