ओडिशा में तीर्थ नगरी पुरी की अद्भुत रथयात्रा शुरु हो गई है. अगले 10 दिनों तक यहां जगन्नाथ रथ उत्सव मनाया जाएगा. ये वो मौका होता है जब पूरी दुनिया से लोग भगवान के दर्शनों के लिए पुरी पहुंचते हैं. इस उत्सव की तैयारी बेहद खास तरीके से की जाती है.
जगन्नाथ रथ यात्रा के लिए लाखो की संख्या में श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं. रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का ही नहीं बल्कि तीनों भाई-बहन के रथों के रंग अलग होते हैं. अगर सजावट होती है. सभी रथों की अपनी खासियत होती है. तीनों भगवान अपने-अपने रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं. ये वो मौका होता है कि जब जगन्नाथ रथयात्रा में शामिल होने के लिए उतावले हो रहे होते हैं. खास बात यह है कि रंग के साथ इनके नाम भी अलग-अलग होते हैं. भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ कहा जाता है.
तीनों रथों में ‘कपिलध्वज’ सबसे बड़ा रथ होता है जिसमें कुल 16 पहिए होते और रथ की ऊंचाई 13.5 मीटर होती है. इस रथ में लाल और पीले रंग के कपड़े का इस्तेमाल होता है. जो देखने मे काफी भव्य लगता है. माना जाता है कि इस रथ की रक्षा गरुड़ करते हैं. रथ पर लगे ध्वज को ‘त्रैलोक्यमोहिनी” कहते हैं.
क्या हैं जगन्नाथ रथयात्रा की खास बातें?
- मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है.
- इस मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है.
- जगन्नाथ पुरी के रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद को बनाने के लिए 500 रसोइए और उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं. यहां सारा प्रसाद मिट्टी के बर्तनों में ही पकाया जाता है.
- जगन्नाथ पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा.
- प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है.
- हैरानी की बात यह है कि इस मंदिर के ऊपर से कभी भी आप किसी पक्षी या विमान को उड़ते हुए नहीं देखेंगे.
- मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम रखते ही मंदिर के भीतर किसी भी भक्त को सागर द्वारा निर्मित ध्वनि नहीं सुनाई देती लेकिन जैसे ही आप मंदिर से बाहर एक भी कदम रखते हैं आप इस आवाज को सुन पाएंगे.