बसपा प्रमुख मायावती का हालिया रुख से एक बात तो तय हो गई है कि वो आगे सपा के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेंगी. मायावती ने ट्वीट कर साफ कर दिया है कि बसपा अब कोई भी चुनाव सपा के साथ मिलकर नहीं लड़ेगी. यानी सपा-बसपा के गठबंधन टूटने की औपचारिक घोषणा उन्होंने कर दी है. दूसरी तरफ सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव भी बीमार चल रहे हैं. इन घटनाक्रमों के बीच में अखिलेश यादव कहा हैं ?
हैरानी की बात है कि मायावती की ओर से लगातार सपा पर वार किया जा रहा है औ सपा नेता चुप हैं. इस चुप का मतलब क्या है. क्योंकि न ही अखिलेश यादव ने कोई बयान दिया है और न ही पार्टी की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई है.
गठबंधन टूटने को लेकर कोई भी सपा नेता बोलने को तैयार नहीं है. खबर ये भी है कि अखिलेश यादव लखनऊ से बाहर हैं और जब वो वापस लौटेंगे तो पार्टी की ओर से बयान जारी किया जाएगा. अब अखिलेश इतने अहम वक्त में लखनऊ में नहीं हैं तो कहां हैं ? तो आपको बता दें कि अखिलेश के सपरिवार लंदन में हैं.
कहां हैं अखिलेश यादव?
1 जुलाई को अखिलेश यादव का जन्मदिन है और कहा जा रहा है कि वो विदेश में ही अपने जन्मदिन मनाएंगे. हालांकि इस बारे में सपा नेता कोई बात खुलकर नहीं बोल रहे. अखिलेश पिछले शुक्रवार को दिल्ली में लोकसभा में दिखे थे. और उनकी ट्विटर टाइम लाइन पर जो आखिरी ट्वीट है वो 15 जून का है. अखिलेश भले ही परिवार के साथ छुट्टी मनाने विदेश गए हों लेकिन यहां उनकी गैरहाजिरी में काफी कुछ घट रहा है. बसपा जिसके साथ मिलकर उन्होंने बीजेपी को धूल चटाने की रणनीति बनाई थी उसकी मुखिया उनपर हमला करते हुए अपनी पार्टी मजबूत कर रही हैं, उनके पिता जिन्हें संरक्षक बनाकर वो पार्टी अध्यक्ष बने वो बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं.
कई लोग ये भी कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में बुरी हार के बाद क्या अखिलेश यादव को नए सिरे से पार्टी की समीक्षा नहीं करनी चाहिए थी? क्या उन्हें ऐसे विकट समय में पार्टी के कार्यकर्ताओं को मनोबल नहीं बढ़ाना चाहिए था जब मायावती लागातार सपा कार्यकर्ताओं को नीचा दिखा रही हैं? चुंकि मायावती ने गठबंधन खत्म करने के संकेत तभी दे दिए थे जब उन्होंने ये एलान किया था कि नवंबर में होने वाले उपचुनाव में सभी 11 सीटों पर बसपा अकेले लड़ेगी. इसके बार अखिलेश यादव ने भी कहा था कि सपा भी सभी उपचुनाव अकेले लड़ेगी. उस वक्त अखिलेश को ये इल्म तो जरूर रहा होगा कि मायावती कभी भी बम फोड़ सकती हैं और उन्हें अपने संगठन पर नए सिरे से काम करने की जरूरत है.
अखिलेश ने अतीत से क्यों नहीं सीखा?
यूपी की राजनीति में 1993 में मुलायम सिंह और कांशीराम जब सपा-बसपा गठबंधन के पहली बार सूत्रधार बने थे तो बीजेपी का रथ रुक गया था. उस वक्त इन दोनों नेताओं ने उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम और पिछड़ों का ऐसा मजबूत समीकरण बनाया कि अयोध्या में विवादित ढांचे को गिराने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा ने बीजेपी को शिकस्त दे दी थी. ये गठबंधन करीब डेढ़ साल चला और 2 जून 1995 को मायावती ने मुलायम सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इस बार भी जब गठबंधन हुआ था तो कहा जा रहा था कि मायावती बदलेंगी नहीं. लेकिन अखिलेश समझ नहीं पाए.
अखिलेश यादव ने 24 साल बाद जनवरी 2019 में मायावती से दोबारा गठबंधन किया था. जो जून आते-आते छह महीने में ही टूट गया. इस गठबंधन का सबसे ज्यादा फायदा मायावती को हुआ जो शुन्य से 10 के आंकड़े तक पहुंच गईं. और सबसे ज्यादा नुकसान अखिलेश यादव को हुआ को 6 से पांच पर आ गए. गठबंधन के बावजूद सपा के कई अहम नेता चुनाव हार गए. इन नतीजों के बाद भी मायावती ने सपा पर जमकर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि सपा के लोग ये कह रहे हैं कि उनकी बदौलत बसपा 10 सीटें जीती है तो वो लोग अपने गिरेबां में झांके.
मायावती ने ये भी संकेत दे दिए हैं कि बसपा के कार्यकर्ता उपचुनाव में ये साबित करें कि लोकसभा चुनाव में 10 सीटें सपा के गठबंधन की वजह से नहीं आईं. मायावती ने बड़े ही सख्त लहजे में कहा कि सपा के लोगों ने चुनाव में धोखा दिया. कई जगहों पर बसपा को सपा के नेताओं ने हराने का काम किया. अखिलेश यादव ने ऐसे नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं की और चुनाव के नतीजों के बाद उन्हें फोन तक करना जरूर नहीं समझा. मायावती ने अखिलेश पर कई आरोप लगाए हैं लेकिन अखिलेश यादव अपने प्रतिक्रिया देने के लिए हैं ही नहीं. शायद वो ये नहीं समझ पा रहे कि आज की राजनीति में अवकाश की जगह खत्म हो गई है.