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यूपी में बीजेपी और एमपी में कांग्रेस कर रही है नए अध्यक्ष की तलाश

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बीजेपी और कांग्रेस यूपी और एमपी में अपने अध्यक्षों की तलाश में लगे हुए हैं. बीजेपी यूपी में महेंद्र नाथ पांडे के केंद्र सरकार में शामिल होने के बाद नए अध्यक्ष की तलाश कर रही है तो वहीं एमपी में कांग्रेस किसी आदिवासी नेता को पार्टी की कमान देना चाहती है.

लोकसभा चुनाव खत्म होने के बाद बीजेपी और कांग्रेस अपनी नई लीडरशिप तैयार करने में लग गई हैं. यूपी में बीजेपी अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय मंत्री बन गए हैं लिहाजा नए अध्यक्ष को लेकर चर्चाएं गरम हैं. एक व्यक्ति, एक पद के सिद्धांत के चलते पांडेय ज्यादा दिन तक अध्यक्ष पद पर नहीं रहेंगे. नए अध्यक्ष को खोजने के लिए बीजेपी ऐसे किसी नेता को खोज रही है जो सभी आंकड़ों पर फिट बैठे. कहा जा रहा है कि यूपी में सपा-बसपा गठबंधन से निपटने में महेंद्र नाथ पांडे का विशेष योगदान रहा है. महेंद्र नाथ पांडे को 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद केशव प्रसाद मौर्या को उप मुख्यमंत्री बनने के बाद कमान दी गई थी. 31 अगस्त, 2017 को अध्यक्ष पद पर आसीन हुए डॉ पांडेय को ब्राह्मण समीकरण को मजबूत करने का अवसर दिया गया था.

अध्यक्ष पद की रेस में किसका नाम ?

अब बीजेपी का नया अध्यक्ष कौन होगा इसको लेकर मंथन चल रहा है. बीजेपी चाहती है कि इस बार ऐसा अध्यक्ष बनाने की कवायद चल रही है जो दलित, सवर्ण और पिछड़ा तीनों वर्गों को साथ लेकर चल सके. अध्यक्ष बनने की रेस में गौतमबुद्ध नगर से सांसद महेश शर्मा, यूपी के उपमुख्यमंत्री डॉ दिनेश शर्मा, महामंत्री विजय बहादुर पाठक, यूपी के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, आगरा से सांसद एस.पी. सिंह बघेल, मंत्री दारा सिंह चौहान, एमएलसी लक्ष्मण आचार्य, प्रो़ रामशंकर कठेरिया, विद्यासागर सोनकर जैसे नाम भी चर्चा चल रही है. अध्यक्ष बनाने से पहले बीजेपी 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर ध्यान देगी.

मध्यप्रदेश में कांग्रेस खोज रही आदिवासी चेहरा

जिस तरह यूपी में बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए चेहरे की तलाश में लगी है उसी तरह एमपी में कांग्रेस भी किसी आदिवासी चेहरे की तलाश कर रही है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस डेढ़ दशक बाद सत्ता में लौटी है, और कांग्रेस की इस सफलता में आदिवासी वर्ग की बड़ी भूमिका रही है, मगर पार्टी के पास एक भी ऐसा आदिवासी चेहरा नहीं है, जिसकी पहचान पूरे प्रदेश में हो और उसके सहारे वह अपनी राजनीतिक जमीन को तैयार कर सके. कांग्रेस आदिवासी वोटों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए किसी आदिवासी चेहरे को राज्य में अध्यक्ष बनाना चाहती है. एमपी में मंत्री सज्जन सिंह वर्मा ने तो गृहमंत्री बाला बच्चन को प्रदेशाध्यक्ष बनाने की मांग उठी है. एमपी में करीब 22 फीसदी आदिवासी आबादी है और 47 सीटें ऐसी हैं जो आदिवासियों के लिए आरक्षित है. कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 में से 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस ये जानती है कि एमपी की राजनीति में अगर उसे वापसी बरकरार रखना है तो आदिवासियों को साधना पड़ेगा. इसी तरह कांग्रेस के 114 विधायकों में 25 प्रतिशत से ज्यादा आदिवासी वर्ग से हैं. यहां आपको ये भी जान लेना चाहिए कि विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में सफलता मिली, वहीं लोकसभा चुनाव में उसे इस वर्ग की एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई. कांग्रेस को 29 सीटों में से सिर्फ एक सीट ही मिली है. वह भी छिंदवाड़ा की है, जहां से कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ चुनाव जीते हैं. इस कारण से कांग्रेस आदिवासियों को अपने पाले में बनाए रखने की जुगत में जुट गई है.

कांग्रेस के पास कौन से आदिवासी चेहरे हैं ?

कांग्रेस के पास कभी एमपी में दलवीर सिंह, भंवर सिंह पोर्ते, जमुना देवी जैसे आदिवासी नेता रहे हैं, जो सत्ता में रहे तो उनकी हनक रही और विपक्ष में रहने के दौरान उन्होंने सत्ता पक्ष को हमेशा मुश्किल में डाले रखा. मगर जमुना देवी के निधन के बाद कांग्रेस में इस वर्ग का एक भी नेता उभरकर सामने नहीं आ पाया है. जो बड़े नाम वाले नेता हैं, उनकी खुद राजनीतिक जमीन कमजोर हो चली है. दूसरी ओर जनाधार वालों के पास गॉडफादर का अभाव है. इस वक्त कांग्रेस के पास सरकार में मंत्री उमंग सिंगार, ओंमकार सिंह मरकाम, विधायक फुंदेलाल सिंह माकरे के चेहरे है. लेकिन ये सभी नेता नई पीढ़ी के हैं. और ऐसी पूरी संभावना है कि आने वाले दिनों में इनमें किसी एक चेहरे पर कांग्रेस दांव खेल सकती है.

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