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…जिस नारे के दम पर विजेता बनकर उभरे थे अखिलेश यादव

akilesh yadav 'ummed ki saiik'il

@yadavakhilesh

राजनीति में नारों की खास भूमिका होगी. नारे सरकारें बनाते और गिराते आई हैं. 2004 में शाइनिंग इंडिया का हश्र आपको याद होगा. 2014 में अबकी बार, मोदी सरकार आपको याद होगा. इसी तरह कभी यूपी में मुलायम सिंह के लिए नारा लगता था जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम हैऐसा ही एक नारा अखिलेश यादव ने भी दिया था उम्मीद की साइकिल’.

‘उम्मीद की साइकिल’, ये वो नारा था जिसने अखिलेश यादव को राजनीति का विजेता बनाया था. याद करिए 2007 को वो चुनाव जिसमें उत्तर प्रदेश में सपा के सदाबहार नारे ‘जिसका जलवा कायम है उसका नाम मुलायम है’ को मात देते हुए मायावती सत्ता में आईं थीं. मायावती को सत्ता से बेदखल करने के लिए सपा छटपटा रही थी और तभी सपा की उम्मीद बने थे अखिलेश यादव, अखिलेश यादव ने सपा की कमान अखिलेश संभाली और ‘उम्मीद की साइकिल’ का नारा दिया. अखिलेश ने 2011 में इसी नारे के साथ ‘क्रांति रथ’ यात्रा निकाली थी.

‘उम्मीद की साइकिल’ ने साइकिल ऐसी दौड़ाई जिसने मायावती को सत्ता से हटा दिया और 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में सपा को 403 में से 224 सीटें मिलीं. चुनाव में अप्रत्याशित जीत दर्ज करने के बाद अखिलेश  यूपी के मुख्यमंत्री बनें. लेकिन अगले चुनाव यानी पांच साल बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने नया नारा दिया ‘काम बोलता है’, ये नारा नहीं चला. इस चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ तो कांग्रेस के प्रचार सलाहकार प्रशांत किशोर ने ‘अपने लड़के बनाम बाहरी मोदी’ कैंपेन शुरू किया. ये भी कामयाब नहीं हुआ.

इस गठबंधन के लिए एक और नया नारा गढ़ा गया ‘यूपी को ये साथ पसंद है’. लेकिन लोगों को ये नारा भी रास नहीं आया. 2012 में उम्मीद की जो साइकिल अखिलेश ने दौड़ाई थी वो 2017 में विकास के नारे के साथ नहीं चली और अखिलेश यादव सत्ता से बाहर हो गए. सपा का ‘काम बोलता है’ नारा फ्लॉप रहा. 2017 के चुनाव में भाजपा को 403 सीटों में से 312 सीटें मिली। सपा को 47, बसपा को 19, कांग्रेस को 7 और आरएलडी को एक सीट मिली थी. क्या इस लोकसभा चुनाव में सपा की साइकिल दौड़ेगी क्योंकि इस बार ‘साथी’ के सहारे अखिलेश चुनावी वैतरणी पार करना चाहते हैं.

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