बीजेपी को इस बार बिहार में काफी नुकसान हो सकता है. एक इंटरनल सर्वे में ये बात स्पष्ट हुई है कि बिहार में 19 सीटें ऐसी हैं जहां से बीजेपी का सफाया हो सकता है. इन 19 सीटों पर महागठबंधन काफी मजबूत है और यहां जातीय समीकरण महागठबंधन के पक्ष में है.
बिहार में बीजेपी ने जेडीयू और एलजेपी के साथ गठबंधन किया है. बीजेपी ने इस बार कम सीटों पर भी समझौता किया है लेकिन हालात ऐसे बन रहे हैं कि बीजेपी को यहां काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. बीजेपी को ये डर खाए जा रहा है कि महागठबंधन उसके अति पिछड़ा वर्ग के वोटों में सेंध लगाकर उसकी हालत पलती कर सकता है. अति पिछड़ा वोटर को लुभाने के लिए नरेंद्र मोदी ने सत्ता में वापसी पर मल्लाह समुदाय अलग से मछलीपालन मंत्रालय का वादा किया है.
मल्लाह समुदाय को लुभाने के लिए बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है. पीएम ने यह भी जिक्र किया कि सरकार ने स्थानीय सहनी (मल्लाह, निषाद जाति) के नेता भगवान लाल सहनी को राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग का अध्यक्ष बनाया है. खबर ये है कि बीजेपी का इंटरनल सर्वे ही बता रहा है कि बिहार में 19 सीटों पर महागठबंधन के सहयोगी अपनी-अपनी जाति के वोट एक दूसरे पार्टियों को ट्रांसफर करने में कामयाब होते दिख रहे हैं.
गठबंधन का सीपीआई (एमएल) से भी तालमेल है जो आरा सीट से चुनाव मैदान में है. कागजों पर देखें तो राजद का मुस्लिम (17 फीसदी) और यादव (14 फीसदी), कांग्रेस की अगड़ी जातियां (12 फीसदी) और दलित (16 फीसदी), रालोसपा के कुशवाहा (8 फीसदी) और माझी का उनके मुसहर समुदाय (2.5 फीसदी) में पकड़ है।
महागठबंधन की रैलियों में हो रही है भीड़
महागठबंधन में कांग्रेस और आरजेडी के अलावा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (सेक्यूलर) और मुकेश सहनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल है. ये सभी दल अपनी अपनी जातियों में काफी मजबूत हैं और इन जातियों का वोट ट्रांसफर हो रहा है.
बिहार में महागठबंधन की जो रैलियां हो रही हैं उसमें भी काफी भीड़ जुट रही है. महागठबंधन जातिगत गणित को लेकर काफी आश्वस्त है और बीजेपी बेचैन है. बीजेपी कुशवाहा, सहनी और मांझी वोट के बंटने से चिंता है. क्योंकि जो सामाजिक गणित महागठबंधन ने बनाया है उससे पार पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं है.