जनता है सिर्फ इनकी-उनकी तरफ देखने वाली कठपुतली, क्या मज़ाक है ?
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए मतदान चल रहा है। जनता के हितों की बात की जा रही है। कोई नौकरी की बात कर रहा है, तो कोई किसानों की, कोई महिला सुरक्षा और न जाने क्या-क्या। लेकिन समझना जरूरी है कि बात करने से जनता का हित नहीं है बल्कि ईमानदारी से उसे पूरा करना जरूरी है
जीतने वाली पार्टी या गठबंधन को पांच साल मिलते हैं, इन्हीं पांच सालों के कामों के आधार पर जनता अगले पांच साल तय करती है, कि अबकी बार किसकी सरकार होगी। यह एक प्रक्रिया है, लेकिन यह राजनीतिक हो गई है, पूरी तरह राजनीतिक। इसमें भ्रष्टाचार भी है, छींटाकशी भी, दलाली भी और कुछ नहीं है तो वो है ईमानदारी। जनता के हित में सच्चे मन से काम नहीं किया जाता, बस चुनावी खानापूर्ति की जाती है। जनता कठपुतली बन गई है। कैसी कठपुतली। इनकी तरफ और उनकी तरफ देखने वाली कठपुतली।
देश में होना क्या चाहिए, जनता के हित में क्या होगा। यह कोई व्यक्ति नहीं बताएगा। यह कोई संस्था नहीं बताएगी बल्कि इसके लिए संविधान बनाया गया है। संविधान बहुत कुछ कहता है, लेकिन कोई भी बात जनता से इतर नहीं कहता। संविधान जनता के लिए है। सारे हक हैं और सारी व्यवस्थाएं हैं। पूरी ताकत जनता के पास है। जनता को तय करना है, कि उन पर शासन करेगा कौन। चुनाव जनता के लिए होता है।
यह एक मौका होता है कि जनता अपने मन की बात कहे, किसी की सुने बिना। पिछले पांच सालों के हिसाब से, अपने लोकसभा क्षेत्र के ईमानदार प्रत्याशी का चुनाव करे। अगर प्रत्याशी इस काबिल नहीं है, तो नोटा का इस्तेमाल करे। नोटा यानी कि किसी को भी वोट न देना। इसका भी एक बटन ईवीएम में होता है।
दरअसल, जनता के हाथों से सत्ता की ताकत को राजनेताओँ ने छीन लिया है, उन्हें जुमलेबाजी और बड़ी-बड़ी बातें से बहलाकर। अब यह राजनेता संविधान को ताक पर रखकर अपने हिसाब से रूपरेखा तय कर रहे हैं और पूरे लोकतंत्र का कबाड़ा करके रख दिया है। आज हमारे सामने चुनाव का जो स्वरूप है, उसे बिगाड़ने वाले कई हैं और सुधारने वाले बहुत कम थे। इसलिए यह हावी हो गए हैं। चुनाव में रुतबा, पैसा, एक दूसरे पर आरोप, गड़े मुर्दे उखाड़े जाना और भद्दी, गालियों से भरी बातें कही जा रही हैं। असल मुद्दों पर पूरी ईमानदारी से कोई बात नहीं कर रहा है।
यूं तो चुनाव सब जीतना चाह रहे हैं, पर हर तरीके की जुगत लगाकर। थोड़ा गौर से देखें और मंथन करके समझें तो साफ समझ में आ जाता है, कि यह जीतने वाले सांसद पांच साल दिखेंगे भी नहीं। बस जीतकर आराम, मौज और रुतबे की कुर्सी चाहते हैं। अभी जनता से वोट मांग रहे हैं फिर जनता से ही तू तड़ाका करेंगे और न जाने किस- किस तरह से शोषण करेंगे। यह हकीकत है, चुनाव की हकीकत। अब वह अच्छे नेता नहीं बचे हैं, हमें इन्हीं में से सांसद चुनना है और फिर यही सांसद प्रधानमंत्री की ताजपोशी कर देंगे। कुछ अच्छे भी हैं, पर अकेला चना क्या भाड़ फोडेगा के मुहावरे को चरितार्थ करने वाले हैं।
अब राजनीति ईमानदारी, जुमलेबाजी के बीच दब गई है। अब वादों में भी दम नहीं बचा है। अगर कुछ बचा है तो जनता को मिले अधिकार। संविधान अभी भी वही है। इसे हमें समझने की जरूरत है। लोकतंत्र को बचाने की जरूरत है। वोट करें। हर बटन को ध्यान में रखकर। याद रखें ताकत आपके पास है। वादा आप हक से कराएं किसी के किए कराए वादे पर न चलें। वोट दें, अपनी समझ से।