ओडिशा में 21 लोकसभा और 147 विधानसभा की सीटें हैं. यहां मुकाबला मौजूदा सीएम नवीन पटनायक और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के बीच हो रहा है. कांग्रेस जो कुछ महीनों पहले तक मुकाबले को त्रिकोणीय कर रही थी वो आखिर में आकर बिखरती हुई लग रही है.
बीजेपी के लिए ओडिशा का महत्व काफी है. यही कारण है कि 2014 के बाद से बीजेपी आलाकमान ने ओडिशा में काफी ध्यान दिया. इस राज्ये में बीजेपी की राजनीतिक साख काफी कमजोर हो गई थी. इसका एक कारण ये भी था कि बीजेपी 10 सालों तक नवीन पटनायक की बीजू जनता दल (बीजेडी) से गठबंधन में रही और उस दौरान बीजेपी के नेताओं को किसी ने तवज्जो नहीं दी. बीजेडी से अलग होकर जब 2014 में बीजेपी ने चुनाव लड़ा तो यहां बीजेपी का करार शिकस्त मिली थी. हालात ये हो गई कि 21 लोकसभा सीटों में से बीजेपी के पास सिर्फ 1 सीटे है और 147 सदस्यों वाली विधान सभा में सिर्फ 10 विधायक हैं.
कांग्रेस बीजेपी से ज्यादा मजबूत लग रही थी
दिसंबर 2018 में जब कांग्रेस ने हिन्दी हार्टलैंड के तीन राज्यों में जीत हासिल की थी तब ओडिशा में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का जोश भी कुलांचे भर रहा था. ओडिशा में सालों से शिथिल पड़ा कांग्रेस का संगठन हरकत में आया और पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए श्रीकांत जेना के पार्टी से निकाले जाने के बाद गुटबाज़ी भी कम हो गई थी. इस दौरान राहुल गांधी ने जनवरी से मार्च के बीच ओडिशा के चार दौरे किए और हर बार लगा कि उनकी बातों और वादों का लोगों पर असर पड़ रहा है, ख़ासकर पश्चिम और दक्षिण ओडिशा के किसानों पर क्योंकि ये इलाके पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ से लगते हैं और यहां कांग्रेस सरकार आते ही किसानों के कर्ज़ माफ़ करने और धान के सहायक मूल्य पर 750 रुपये बोनस का असर ओडिशा के किसानों पर पड़ा था.
आखिरी वक्त में बिखर गई कांग्रेस
राहुल गांधी टिकट बंटवारे के बाद की कलह का मुकाबला करने में नाकाम रहे. अगस्त, 2018 तक 50% प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर देने के दावे करने वाली कांग्रेस आख़िरी वक़्त तक अपनी सूची तैयार नहीं कर पाई. ‘एक परिवार, एक टिकट’ नीति को ताक पर रखते हुए कम से कम पांच पिता-पुत्र जोड़ियों को टिकट दिए गए, जिनमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष निरंजन पटनायक, विधानसभा में विपक्षी नेता नरसिंह मिश्र और पूर्व केंद्रीय मंत्री भक्त चरण दास जैसे पार्टी के शीर्ष नेता और उनके बेटे शामिल थे. इसका असर ये हुआ कि भाई-भतीजावाद से नाराजगी बढ़ गई. हालात यहां तक खराब हो गए कि ओडिशा महिला कांग्रेस की प्रमुख सुमित्रा जेना तो कांग्रेस भवन में ही धरने पर बैठ गईं. यही सब कारण रहे कि कांग्रेस काफी पीछे नवीन और नरेंद्र की जंग में पिछड़ी सी लगती है.
एक साथ हो रहे हैं विधानसभा और लोकसभा चुनाव
ओडिशा उन तीन राज्यों में शामिल है जहां पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं. पिछले बार नवीन पटनायक की बीजेडी ने यहां 21 लोकसभा सीटों में 20 सीटें जीती थीं. बीजेपी इस बार कोशिश कर रही हैं कि वो नरेंद्र मोदी के चहरे को आगे रखकर और नवीन पटनायक के खिलफ 19 सालों की एंटी इन्कमबेंसी को भुनाकर सत्ता हासिल करे. लेकिन बीजेपी के लिए ये आसान कतई नहीं रहने वाला क्योंकि बीजेपी का काडर काफी मजबूत है और गांव देहात के इलाकों में बीजेडी बीजेपी से कहीं ज्यादा मजबूत है.
धर्मेंद्र प्रधान बीजेपी को कितना फयदा पहुंचाएंगे
2014 में जब बीजेपी ने केंद्र में सरकार बनाई तो नरेंद्र मोदी कैबिनेट में ओडिशा के दो नेताओं, धर्मेंद्र प्रधान और जुअल ओरम को जगह मिली. इन दोनों नेताओं को ‘मिशन ओडिशा’ की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन इन दोनों नेताओं का असर इस चुनाव में दिखाई नहीं दे रहा. धर्मेंद्र प्रधान ने बीते पांच सालों में पार्टी को मजबूत करने के लिए जो कुछ किया है उसका नतीजा 23 मई तो ही आएगा लेकिन एक बात तो तय है कि बीते पांच साल में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार ओडिशा का दौरा किया है और ज़िला स्तर तक संगठन को मजबूत करने की कवायद में लगे रहे हैं. पीएम नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने पिछले कुछ सालों के दौरान ओडिशा में दो दर्जन से ज़्यादा रैलियां की हैं. ये भी सच है कि ओडिशा में बीजेपी के आला नेतृत्व की मेहनत के चलते ही 2017 के पंचायत चुनावों में पार्टी को प्रदेश में पहले से कहीं ज़्यादा सीटें मिलीं थीं.
राज्य में मुकाबला नवीन बनाम नरेंद्र
भुवनेश्वर,ब्रह्मपुर, कालाहांडी या पुरी आप जहां भी जाएंगे और बीजेपी और बीजेडी की प्रचार सामिग्री में दो ही चेहरे दिखाई देंगे. बीजेपी के बड़े-बड़े होर्डिंग में नरेंद्र मोदी और बीजेडी के होर्डिंग में नवीन पटनायक. राज्य के बीजेपी नेताओं की तस्वीर होर्डिंग में नहीं दिखाई देती. इसमें भी कोई दोराय नहीं है कि ओडिशा में बीजेपी कुछ गेन कर रही है. लेकिन नवीन पटनायक की लोकप्रियता ओडिशा में काफी ज्यादा है और ऐसे में नरेंद्र मोदी को उन्हें कुर्सी से हटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में लोग नवीन पटनायक को ही पसंद करते हैं, 19 साल सत्ता में रहने के बाद भी यहां नवीन पटनायक की लोकप्रियता कम नहीं हुई है.
बड़े नेताओं को तोड़ने में कामयाब रही बीजेपी
2014 के आम चुनावों के दौरान ओडिशा राज्य में बीजू जनता दल में नवीन पटनायक के बाद बालभद्र माझी और बिजयंत पांडा की गिनती हुआ करती थी. लेकिन 2019 में ये दोनों नेता बीजेपी की टिकट पर मैदान में हैं. कंधमाल से बीजेडी सांसद प्रत्यूषा राजेश्वरी सिंह, के नारायण राव और दामा राउत के अलावा कांग्रेस के प्रकाश बेहरा जैसे नेता भी बीजेपी में शामिल हो गए. हालांकि बीजेपी को इन नेताओं के चलते कलह से भी जूझना पड़ रहा है लेकिन इसका फायदा बीजेपी को हो सकता है.