मध्यप्रदेश में इस बार लोकसभा चुनाव बेहद दिलचस्प हो गया है. इस बार बीजेपी सत्ता में नहीं है और कांग्रेस पूरी ताकत से मुकाबला करने की तैयारी कर रही है. यहां सबसे महत्वपूर्ण है भोपाल लोकसभा सीट क्योंकि यहां दिग्विजय के सामने बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा को मैदान में उतारा है।
भोपाल लोकसभा सीट से कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को अपना उम्मीदवार बना दिया है. बीजेपी हिन्दुत्व के चेहेरे पर भरोसा किया है। बीजेपी ने यहाँ साध्वी प्रज्ञा को टिकेट दिया है। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने साध्वी के नाम का एलान किया। साध्वी प्रज्ञा मालेगाँव ब्लास्ट की आरोपित हैं। शिवराज सिंह पहले ही कह चुके है की यहाँ बीजेपी के मुकाबले कोई नहीं है।
“दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी भाजपा के लिए किसी भी तरह से कोई चुनौती नहीं है.”
भोपाल सीट का गणित किसके पक्ष में ?
भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने अपनी किस्मत अज़माई है लेकिन वह इस सीट से निकल नहीं पाए हैं. नवाब मंसूर अली खान पटौदी और सुरेश पचौरी भी चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन वो भी इस सीट पर कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए. तो क्या दिग्विजय के लिए यहां कांग्रेस को जीत दिलाना आसान होगा. भोपाल लोकसभा सीट पर कांग्रेस की हार का कारण ये है कि ये सीट बीजेपी का गढ़ बन चुकी है.
1984 तक भोपाल लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी. लेकिन 1989 से भाजपा ने सारे पत्ते खोले और सुशील चंद्र वर्मा को उतारा जो कायस्थ समाज के थे. चुंकि भोपाल लोकसभा सीट कायस्थ बाहुल्य है और ये वोटबैंक आजकल बीजेपी के पक्ष में है. यहां दूसरे नंबर पर ब्राह्मण मतदाता है और ये भी बीजेपी को वोट करते हैं. ऐसे में यहां से दिग्विजय सिंह का जीतना मुश्किल हो सकता है.
8 विधानसभा सीटों वाली भोपाल लोकसभा सीट में इस वक्त 3 में कांग्रेस और 5 पर बीजेपी का कब्ज़ा है. यहां के करीब 18 लाख वोटर ये फैसला करेंगे कि इस बार यहां दिग्गी राजा जीतेंगे या नहीं. यहां करीब 4 लाख मुसलमान मतदाता हैं जो दिग्विजय सिंह को वोट कर सकते हैं. लेकिन बाकी बिरादरियों का वोट हासिल करना उनके लिए चुनौती है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ‘बड़ी कठिन है डगर पनघट की’