राजस्थान बीजेपी में उठापटक जारी है. पूर्व सीएम वसुंधरा राजे इन दिनों हाशिए पर हैं. चुनावी मौसम उनके लिए पतझड़ लेकर आया है. विधानसभा चुनाव में हार के बाद लोकसभा चुनाव में बांटे गए टिकटों से वसुंधरा राजे नाखुश हैं. कहा तो ये भी जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने उनकी राय भी नहीं ली है.
राजस्थान में भाजपा की अंदरूनी उठापटक खत्म नहीं हो पाई है. लोकसभा के टिकट बंटवारे में अपनी पूछ कम होना वसुंधरा राजे को अखरा है. वसुंधरा राजे इन दिनों पार्टी नेताओं से नाखुश हैं. वसुंधरा राजे जाट नेता हनुमान बेनीवाल को लेकिन भी खफा हैं. जाट नेता बेनीवाल ने अपनी अलग पार्टी बना विधानसभा चुनाव जीता था जबकि 2008 में वे नागौर से बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गए थे.
बेनीवाल ने वसुंधरा से खटपट के बाद ही अपनी अलग पार्टी बनाई थी. बेनीवाल की पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन किया था. वो खुद तो जीते ही, दो और उम्मीदवार भी जीते थे. बेनीवाल नागौर, पाली, जोधपुर और बाडमेर के युवा जाटों के नायक बन गए हैं. ऐसे में वसुंधरा से राय लिए बिना ही संघी खेमे ने बेनीवाल को भाजपा का सहयोगी बनवा दिया. ये बात वसुंधरा राजे को अखर गई.
राजे से राय लिए बगैर बांटे टिकट
बीजेपी ने बेनीवाल से समझोते के बाद नागौर लोकसभा सीट छोड़ दी है. ये वही सीट है जहां से बीजेपी के सीआर चौधरी पिछली बार जीते थे. इस बार बीजेपी आलाकमान ने उनका टिकट ही काट दिया है. सिर्फ नागौर ही नहीं जयपुर राजघराने की राजकुमारी दीया कुमारी को वसुंधरा के विरोध के बावजूद राजसमंद सीट से लोकसभा टिकट थमा दिया गया. दीया कुमारी जयपुर या टोंक से चुनाव लड़ना चाहती थीं. वसुंधरा ने दीया कुमारी को विधानसभा का टिकट नहीं मिलने दिया था लेकिन पार्टी ने उन्हें लोकसभा का टिकट दे दिया.
दीया और राजे के बीच है पुरानी अदावत
आपको बता दें कि वसुंधरा राजे और दीया कुमारी के बीच राज महल पैलेज होटल को लेकर पुरानी अदावत है. वसुंधरा राजे जब सीएम थीं उस वक्त उन्होंने राज महल पैलेस को कब्जाने की कोशिश की थी. ऐसे में दीया को मिला टिकट राजे का रास नहीं आ रहा है. ऐसे मे सवाल ये उठ रहा है कि क्या बीजेपी को अब राजस्थान में वसुंधरा राजे की जरूरत नहीं रही है ?