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गुजरात में अल्पेश ठाकोर के जाने से क्या कांग्रेस को फायदा भी हो सकता है ?

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पीएम मोदी के गृहराज्य गुजरात में कांग्रेस को जिन तीन उभरते हुए युवा नेताओं से उम्मीद थी उनमें से एक ने कांग्रेस का हाथ छोड़ दिया है. गुजरात में राधनपुर से कांग्रेस विधायक अल्पेश ठाकोर ने अपने दो साथियों के साथ कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है. क्या इससे गुजरात को छटका लगेगा. या फिर इससे कांग्रेस को फायदा भी हो सकता है ?

अल्पेश ठाकोर ने 2017 विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस ज्वाइन की थी. बीते करीब एक साल से अल्पेश कांग्रेस को गच्चा दे रहे थे और बीजेपी से नजदीकी बढ़ा रहे थे. इसी साल जनवरी में उन्होंने गुजरात बीजेपी के प्रमुख नेता शंकर चौधरी से मुलाकात की थी. इस मुलाकात के बाद कई सवाल खड़े हुए लेकिन कांग्रेस ने अल्पेश को मना लिया था. लेकिन अब अल्पेश ठाकोर और उनके दो सहयोगी विधायकों – धवलसिंह झाला और भरत जी ठाकोर – ने कांग्रेस का हाथ छिटक दिया है.

कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं अल्पेश

ऐसी ख़बर खूब आ रही हैं कि अल्पेश बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो अल्पेश ठाकोल इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं. क्योंकि अल्पेश जिस ठाकोर समुदाय से आते हैं उसकी तादाद गुजरात में करीब 18 फीसदी है. गुजरात के उत्तरी जिलों में ठाकोल मतदाता निर्याणक भूमिका में हैं. गुजरात की करीब 4 लोकसभा सीटों पर ठाकोर समुदाय निर्यायक भूमिका में है. इतना ही नहीं गुजरात में 40 फीसदी आबादी वाले ओबीसी वर्ग पर भी ठाकोर समुदाय का प्रभाव है.

इन सीटों पर ठाकोर की पकड़ कांग्रेस की परेशानी है

पाटण और बनासकांठा वो लोकसभा सीटें हैं जहां पर ठाकोर कांग्रेस के लिए परेशानी बन सकते हैं. गुजरात की छब्बीस में से जिन पांच लोकसभा सीटों पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा उम्मीदें थी जिसमें पाटण और बनासकांठा भी शामिल हैं. यहां कांग्रेस के जीतने की संभावना इसलिए ज्यादा थी क्योंकि दो साल पहले आई बाढ़ में बीजेपी सरकार ने यहां कोई काम नहीं किया था. कांग्रेस को उम्मीद थी कि वो इसका फायदा उठाएगी. लेकिन इस उम्मीद को झटका लगा है.  

कांग्रेस से क्यों बिगड़े अल्पेश ठाकोर के रिश्ते

ख़बर ये है कि अल्पेश पाटण सीट पर अपना उम्मीदवार चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने पाटण से जगदीश ठाकोर को अपना उम्मीदवार बनाया. जगदीश 2009 के लोकसभा चुनाव में इसी सीट से कांग्रेस को जीत दिला चुके हैं. चुंकि अल्पेश ठाकोर खुद भी पाटण जिले से ही आते हैं. इसलिए वो नहीं चाहते कि उनकी जगह कोई और नेता यहां कामयाब हो. अब इस बात की पूरी संभावना है अल्पेश ठाकोर जगदीश ठाकोर को हराने के लिए पूरी ताकत लगाएंगे. यहां ये भी कहा जा रहा है कि बीजेपी उन्हें इसके ईनाम के तौर पर मंत्री पद भी दे सकती है.

बनासकांठा में भी अल्पेश दिखाएंगे कांग्रेस को ताकत

बनासकांठा में कांग्रेस ने परथीभाई भटोल पर दांव खेला है. भटोल, गुजरात में हुए चर्चित दूध आंदोलन (1946) की नींव के तौर पर स्थापित हुई अमूल डेयरी (गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन) के चेयरमैन रह चुके हैं. परथीभाई इस इलाके में काफी लोकप्रिय हैं. लेकिन यहां भी अल्पेश अपने ही किसी सहयोगी को मौका दिए जाने की मांग कर रहे थे जिसे पार्टी नेतृत्व ने नकार दिया. यहां अल्पेश ने भटोल के सामने अपने दो डमी प्रत्याशियों को मैदान में उतार दिए हैं. ये काम उन्होंने कांग्रेस में रहते हुए किया था. आपको यहां भी बता दें कि अल्पेश के साथ जिन दो विधायकों ने कांग्रेस छोड़ी है वो मेहसाणा जिले से ही ताल्लुक रखते हैं.

क्या कांग्रेस के लिए कुछ संभावना भी बन रही है ?

यहां सवाल ये भी है कि अल्पेश को रोकने की कांग्रेस ने कोशिश क्यों नहीं की. यहां आपको समझना चाहिए कि करीब 6 महीने पहले परप्रांतीय लोगों पर गुजरात में हमले हुए थे और इस घटना में अल्पेश ठाकोर सुर्खियों में आए थे. उस वक्त गुजरात में 14 महीने की एक बच्ची के साथ दुष्कर्म के एक मामले में बिहार के एक मज़दूर को गिरफ़्तार किया गया था. इसके बाद राज्य के कई इलाकों में बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के ख़िलाफ़ जबर्दस्त हिंसा भड़क गई थी. हिन्दी भाषी लोगों ने उस वक्त अल्पेश और उनके नेतृत्व वाली ‘गुजरात क्षत्रिय-ठाकोर सेना’ को भी जिम्मेदार ठहराया था. चुंकि गुजरात की अलग-अलग सीटों पर बिहार-उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले प्रवासियों की एक बड़ी तादाद है लिहाजा कांग्रेस को इन लोगों को वोट अब मिल सकता है.

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