वादों और दावों के बीच उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल अपने चरम पर है. सभी राजनीतिक दल अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए एढी चोटी का जोर लगा रहे हैं. लेकिन ऐसे में यूपी में होने वाले पहले दो चरणों के मतदान के लिए आलू किसानों का मुद्दा अहम होने वाला है.
बाराबंकी से लेकर बुलंदशहर तक आलू किसानों का वोट निर्णायक भूमिका निभाने वाला है. अलीगढ़, हाथरस, फर्रुखाबार, फिरोजाबाद, बाराबंकी, इटावा जैसे इलाकों में आलू एक मुद्दा बन सकता है. आलू की गिरती कीमतें, कोल्ड स्टोरेज का महंगा किराया और आलू किसानों का घाटा एक बड़ा मुद्दा बन गया है. खासकर पहले दो चरणों में ब्रज और पश्चिम की जिन सीटों में वोट डाले जाने हैं वहां पर आलू किसानों का मुद्दा असरदार हो सकता है. ये वो इलाके हैं जहां आलू बहुतायत मात्रा में पैदा किया जाता है. बीते तीन सालों से आलू किसानों को उपज तो अच्छी मिल रही है लेकिन उपज की कीमत नहीं मिल रही है और इन्हें घाटा हो रहा है.
बंपर पैदावार फिर भी हो रहा घाटा
यूपी में इस बार 155 लाख क्विंटल आलू पैदा हुआ है लेकिन सरकारी खरीद केंद्र ना शुरु होने के चलते ये सड़ रहा है. किसानों की समस्या ये है कि वो आलू को रखें कहां. क्योंकि कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने का किराया करीब 250 रुपये क्विंटल है. अच्छे आलू को पैदा करने और कोल्ड स्टोरेज में रखने का खर्च करीब 600 रुपये क्विंटल आता है ऐसे में इससे कम कीमत में अगर आलू किसान बेचता है तो उसे घाटा होना तय है. आपको जानकर हैरान होगी की बीते साल सरकार ने 487 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 12 हजार 938 क्विंटल आलू खरीदा था लेकिन 120 लाख टन आलू किसानों ने कोल्ड स्टोरेज में रखा. तो सरकारी खरीद से किसानों को फायदा हुआ नहीं.
इस साल अभी तक सरकारी आलू खरीद शुरु नहीं हुई है. कहा जा रहा है कि अप्रैल के आखिरी हफ्ते तक सरकार आलू खरीदेगी. ऐसे में वो आलू की कीमत कितनी देगी ये भी सवाल है. क्योंकि किसानों कहा नहीं है कि किसानों को करीब 6 से साढे 6 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से आलू खरीद की जाए. जो संभव नहीं लगता. ऐसे में यूपी में होने वाले पहले और दूसरे चरण के मतदान में आलू किसानों का वोट निर्णायक माना जा रहा है.