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गांधीनगर: बीजेपी को हराना मुश्किल है या नामुमकिन ?

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बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने गुजरात की गांधीनगर सीट से पर्चा दाखिल कर लिया है. ये लोकसभा सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाती है. बीजेपी के बड़े नेता इस सीट से चुनाव लड़ते और जीतते आए हैं. गांधीनगर से अमित शाहर चुनाव क्यों लड़ रहे हैं इसके अपने माएने हैं लेकिन एलके आडवाणी की विरासत को संभालकर उन्होंने भविष्य की राजनीति के संकेत दे दिए हैं.

गांधीनगर संसदीय सीट पर 1989 से बीजेपी एकतरफ जीतती आई है. गांधीनगर वीआईपी सीट है और यहां से अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेता चुनाव लड़ते रहे हैं. 1998 के बाद से यहां से आडवाणी आसानी से चुनाव जीतते आए हैं. लेकिन 2019 में उनको टिकट नहीं दिया गया. इस बार यहां से बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाहर चुनाव लड़ रहे हैं.

क्या हैं जातीय समीकरण ?

गांधीनगर में पाटीदार और वैश्य मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं. और ये बीजेपी का कोरवोट माना जाता है. गांधीनगर लोकसभा सीट पर गांधीनगर (उत्तर), कालोल, सानंद, घटलोदिया, वेजालपुर, नरनपुरा और साबरमती विधानसभा सीटें हैं. इसमें से सिर्फ एक सीट गांधीनगर (उत्तर) कांग्रेस के पास है जहां से डॉ. सीजे चावड़ा विधायक हैं. कांग्रेस के लिए ये सीट इसलिए मुश्किल रही है क्योंकि यहां कांग्रेस का संगठन काफी कमजोर है.

शाह ने यहीं से शुरु की राजनीति

अमित शाह ने यहीं से अपने राजनीति करियर की शुरुआत की थी. 2008 में हुए परिसीमन से पहले अमित शाह सरखेज विधानसभा से चुनाव लड़ते थे. नामांकन करने से पहले अमित शाह ने इस बात का जिक्र भी किया था. अमित शाह का घर नरनपुरा में प्रगति गार्डेन के पास था. 2008 में परिसीमन के बाद सरखेज को तीन विधानसभा सीटों में बांट दिया गया. 2012 में अमित शाहर नरनपुरा से विधानसभा का चुनाव जीता और 2017 में शाह गुजरात से राज्य सभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. इस बार वो लोकसभा के लिए बीजेपी के प्रत्याशी हैं और इस मजबूत सीट से जीतकर संसद में जाना चाहते हैं.

बीजेपी यहां इतनी मजबूत कैसे हुई ?

गांधीनगर  गुजरात के सबसे ताकतवर लोगों का गढ़ है. इस लोकसभा सीट का असर पूरे देश में देखने को मिलता है. गांधीनगर वो इलाका है जहां पर बीजेपी का कोर वोटर रहता है. गांधीनगर के एक ओर अहमदाबाद के पश्चिमी हिस्से का शहरी मतदाता वर्ग है, दूसरी तरफ गांधीनगर सिटी के लोग हैं, शहर के पश्चिमी हिस्से यानी वेजालपुर, घाटलोदिया और नरनपुरा में अर्बन मिडिल क्लास आबादी है. सानंद और गांधीनगर (उत्तर) ग्रामीण इलाका है जहां पर मिडिल क्लास आबादी है. वहीं अपर मिडिल क्लास आबादी भी इस इलाके में काफी है. पिछले तीस सालों से बीजेपी इन्हीं वोटरों के सहारे यहां से जीतती आई है.

कांग्रेस के लिए यहां क्या संभावना है ?

गांधीनगर में पाटीदार और दलित मतदाताओं को अपने पाले में खींचकर कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला कर सकती है. लेकिन कांग्रेस की परेशानी ये है कि उसका संगठन यहां काफी कमजोर है. ऐसा नहीं है कि यहां बीजेपी का हराया नहीं जा सकता. हराया जा सकता है लेकिन उसके लिए कांग्रेस को समय देना होगा. जमीन पर लोगों से मिलना होगा और पार्टी को मजबूत करने के लिए जातीय समीकर बनाने होंगे. अगर कांग्रेस उम्मीदवार चुनने में कोई गलती नहीं करे और लोगों तक पहुंचने के लिए सही रणनीति लगाए तो फिर कांग्रेस ये सीट जीत सकती है.

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