एनडीए सरकार में ग्रामीण इलाकों की हालत बेहद खराब है. पीएम मोदी ने जिस मनरेगा को यूपीए सरकार की विफलताओं का स्मारक बताया था उसके तहत रोजगार मांगने वालों की मांग काफी बढ़ोत्तरी हुई है.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा मनमोहन सरकार की महत्वपूर्ण योजना थी. मोदी सरकार ने इस योजना का यूपीए सरकार की नाकामियों का स्मारक करार दिया था. लेकिन आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक साल 2018-19 में पिछले साल के मुकाबले रोजगार की मांग में रिकॉर्ड दस फीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है
2010-11 के बाद से इस योजना के तहत काम करने वाले व्यक्ति की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है. मनरेगा के तहत उत्पन्न रोजगार 255 करोड़ व्यक्ति दिन थे और इनकी संख्या में और बढ़ोतरी होने की उम्मीद है. लेकिन 2017-18 में इस योजना ने 233 करोड़ व्यक्ति दिन रोजगार उत्पन किए. 2016-17 और 2015-16 की बात करें तो यह संख्या 235 करोड़ व्यक्ति बैठती है.
लोग मनरेगा से मांग रहे रोजगार
इस योजना के तहत एक व्यक्ति दिन की इकाई को आमतौर पर आठ घंटे के काम के लिए लिया जाता है. जानकारों का मानना है कि मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वाले लोगों की संख्या का बढ़ना ये दिखाता है कि लोगों में बेरोजगारी बढ़ी है. मनरेगा मांग संचालित सुरक्षा योजना है जो ग्रामीण क्षेत्रों में हर घर से एक व्यक्ति को 100 दिन के रोजगार का अवसर मुहैया कराती है. अगर सूखा है तो काम करने के दिनों की संख्या 150 दिन कर दी जाती है.
इस वक्त देश में बेरोजगारी की हालात ऐसी है कि मनरेगा कि तहत रोजगार मांगने वालों की तादात तेजी से बढ़ रही है. वित्त मंत्रालय द्वारा इस योजना के लिए अपर्याप्त धनराशि आवंटित किए जाने के कारण काम का प्रावधान अक्सर प्रतिबंधित था. 18 मार्च को मंत्रालय में झारखंड और कर्नाटक के अधिकतर जिलों में योजना के तहत 150 दिन काम दिए जाने के प्रावधान की घोषणा की. पिछले कुछ दिनों से जो रिपोर्ट आ रही हैं उससे स्पष्ट हो रहा है कि रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह से विफल रही है.