बिहार में इस बार मुकाबला एनडीए और महागठबंधन के बीच है. बदली हुई परिस्थितियों में मुकाबला दिलचस्प हो गया है. दोनों ही गठबंधनों की ताकत को देखें तो जातियों की भूमिका उसमें अहम हो जाती है. इस बार शायद मोदी फैक्टर से ज्यादा जातियों का अर्थमैटिक काम करने वाला है. और ये अर्थमैटिक महागठबंधन के पक्ष में दिखाई देता है.
ये पहली बार हो रहा है जब लालू यादव की आरजेडी 40 लोकसभा की सीटों वाले बिहार की आधी से भी कम सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इससे पहले कभी नहीं हुआ जब आरजेडी राज्य की 25 सीटों से कम सीटों पर चुनाव लड़ी हो. लेकिन इस बार आरजेडी सिर्फ 19 सीटों पर मैदान में उतर रही है. बाकी सीटें महागठबंधन के दूसरे दलों के पास हैं.
इसमें कांग्रेस 9,पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) को 5, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को तीन-तीन सीटें मिली हैं. जबकि वामपंथी सीपीआई (माले) एक सीट पर चुनाव लड़ेगी. अब अगर महागठबंधन के पक्ष में बने समीकरण की बात करें तो,
महागठबंधन का अर्थमैटिक
- रालोसपा पिछड़े वर्ग की कुशवाहा जाति का प्रतिनिधित्व करती है, जो बिहार की आबादी में 6 से 8 प्रतिशत के करीब है. कुशवाहा मतदाताओं का कराकट, उजियारपुर, समस्तीपुर और खगड़िया जैसी कई लोकसभा सीटों पर प्रभुत्व है. हालांकि ये वोट बैंक एनडीए का माना जाता है.
- ‘हम’ के जीतन राम मांझी को मुसहरों का नेता माना जाता है. दलित समुदाय की मुसहर जाति राज्य की आबादी में चार प्रतिशत के करीब है, और गया लोकसभा क्षेत्र में ये बड़ी संख्या में हैं.
- साहनी की पार्टी वीआईपी को साथ लेकर महागठबंधन उनके मल्लाह समुदाय में पैठ बनाने की उम्मीद करता है. मल्लाहों को राज्य के अत्यंत पिछड़ा वर्ग में रखा गया है. बिहार के मतदाताओं में से करीब 29 प्रतिशत अत्यंत पिछड़ा वर्ग के हैं.
- आरजेडी के पास मुसलमानों और यादवों का वोट हैं जो बिहार के 30 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करता है.
बिहार में महागठबंधन को बनाए रखने के लिए काफी मंथन हुआ और आखिरकार लालू की गैरमौजूदगी में पार्टी संभाल रहे उनके बेटे तेजस्वी यादव ने इस गठबंधन को टूटने से बचा दिया. आरजेडी का कहना है,
‘हमारे नेता लालू प्रसाद ने 2014 चुनावों के तत्काल बाद इस गठबंधन की आधारशिला रख दी थी. यह गठबंधन पार्टियों का समूह मात्र नहीं है, बल्कि यह दबे-कुचले वर्गों की आवाज़ बनेगा.’
यहां आपको ये भी बता दें कि आरजेडी के अच्छी बात ये हुई है कि लंबी बातचीत के बाद शरद यादव को उनकी पुरानी सीट मधेपुरा से राजद के टिकट पर लड़ने के लिए मना लिया गया है और ये आरजेडी के पक्ष में जा सकता है. लालू यादव भले ही इस समय चारा घोटाला मामले में रांची में न्यायिक हिरासत में हों लेकिन महागठबंधन में उनकी भूमिका बड़ी है.