नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद गंगा की स्वच्छता का वादा किया था. गंगा की सफाई के लिए मोदी सरकार ने नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की जिसके तहत 3 साल में 2 हजार करोड़ रुपये खर्च किए गए. सरकार ने दावा किया कि गंगा काफी हद तक साफ हो गई हैं लेकिन हकीकत हैरान करने वाली है.
नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत मोदी सरकार में 3 साल मे 2 हजार करोड़ रुपया खर्च किया है. गंगोत्री से लेकर गंगा सागर तक गंगा की सफाई के लिए अभियान चलाए गए. पीएम मोदी ने कई बार गंगा आरती की और सार्वजनिक तौर पर कई बार गंगा सफाई को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की लेकिन गंगा कितनी साफ हुई आप अपने नजदीकी गंगा घाट पर जाकर ये देख सकते हैं.
एनजीओ की रिपोर्ट में खुलासा
वाराणसी संकट मोचन फाउंडेशन ने गंगा सफाई से जुड़ा एक सर्वे किया है. इस सर्वे की रिपोर्ट कहती है कि बीते 3 सालों में नमामि गंगे प्रोजेक्ट के तहत 2 हजार करोड़ रुपया खर्च करने के बावजूद गंगाजल और गंदा हुआ है. सर्वे में गंगा नदी में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) के कारण तीन साल में सबसे ज्यादा प्रदूषित बताया है.
और गंदा हुआ है गंगाजल
एनजीओ की रिपोर्ट कहती है कि इस वक्त गंगाजल पिछले तीन सालों में सबसे ज्यादा प्रदूषित है. मोदी सरकार ने 2015 में नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी. इस प्रोजेक्ट के तहत सरकार को 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करके गंगा की सफाई होनी थी. रिपोर्ट के मुताबिक इस योजना के तहत तीन सालों में सरकार ने 2 हजार करोड़ खर्च किया है लेकिन रिपोर्ट कहती है कि गंगाजल तीन साल पहले जितना गंदा था उससे और ज्यादा गंगा हो गया है.
रिपोर्ट के मुताबिक गंगाजल में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया और बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) में बढ़ोत्तरी हुई है. गंगा में ऐसे बैक्टीरिया का ज्यादा मात्रा में होना ये बताता है कि मोदी सरकार ने की ये योजना बुरी तरह फ्लाप हो गई है. ये एनजीओ 1986 से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा लॉन्च किए गए गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा के जल क्वॉलिटी का सर्वे कर रहा है.
डेडलाइन बढ़ाने के बाद ये हैं हालात
नमामि गंगे प्रोजेक्ट की शुरुआत 2015 में हुई थी जिसके तहत 2019 तक 20 हजार करोड़ रुपया खर्च करके गंगा को साफ करना था. लेकिन बाद में इसकी डेडलाइन 2020 तक बढ़ा दी गई. फिर भी गंगा साफ नहीं हो पाईं.
पीने के पानी में कोलीफॉर्म ऑर्गनिज्म 50 एमपीएन/100 मिली या इससे कम होना चाहिए और वहीं नहाने के पानी में कोलीफॉर्म 500 एमपीएन प्रति 100 मिली होना चाहिए. बीओडी में यह 3 एमजी प्रति लीटर से कम होना चाहिए.
गंगा नदी के जल में कोलीफॉर्म जनवरी 2016 में 4.5 लाख (अपस्ट्रीम) और 5.2 करोड़ (डाउनस्ट्रीम) से फरवरी 2019 में 3.8 करोड़ और 14.4 करोड़ हो गया है. इसी तरह बीओडी लेवल भी जनवरी 2016 से फरवरी 2019 तक 46.8-54mg/l से 66-78mg/l हो गया है.
ये आंकड़े बताते हैं कि गंगा सफाई को लेकर मोदी सरकार की गंभीरत काम नहीं आई है. गंगाजल को स्वच्छ करने के लिए जो योजना बनाई गई उसके प्रचार में ज्यादा पैसा खर्च हुआ है और गंगाजल पहले से ज्यादा गंदा हो गया है.