मोदी सरकार का कार्यकाल पूरा होने वाला है. इसलिए ये जरूरी हो जाता है कि उसके कामकाज का आंकलन किया जाए. मोदी सरकार ने अपने पांच साल में करीब 150 से ज्यादा योजनाओं का एलान किया और उन्हीं में से थी ‘स्मार्ट सिटी योजना’ इस योजना को 2015 में शुरु किया गया था और पांच साल के भीतर 100 शहरों को स्मार्ट बनान का वादा किया गया था.
अगले महीने की 11 तारीख को जब वोट डाले जाएंगे तो क्या ये मुद्दा होगा कि मौजूदा सरकार ने क्या काम किया है. मसलन आप ‘स्मार्ट सिटी योजना’ को ही ले लीजिए. 2014 जब नरेंद्र मोदी चुनाव प्रचार कर रहे थे तो उन्होंने स्मार्ट सिटी का जिक्र किया और सरकार बनने के एक साल बाद यानी 2015 में उन्होंने ‘स्मार्ट सिटी योजना’ लॉन्च कर दी थी.
इस योजना का जोर शोर से प्रचार किया गया और कहा गया कि अगले एक दशक में शहरों की आबादी 60 करोड़ हो जाएगी इसलिए जरुरी है कि शहरों को स्मार्ट किया जाए. मोदी सरकार ने कहा था कि इस योजना के जरिए शहरों में ख़राब इंफ़्रास्ट्रक्चर और घटिया सार्वजनिक सेवाओं की जगह पर सबकुछ स्मार्ट और आधुनिक कर दिया जाएगा.
‘स्मार्ट सिटी योजना’ और मोदी का वादा
मोदी सरकार का वादा था कि देश के 100 शहरों को स्मार्ट किया जाएगा. यानी वहां पर वो हर सुविधा मुहैया कराई जाएगी जो आधुनिक जीवनशैली के लिए जरूरी है. लेकिन अब सरकार कह रही है कि ‘स्मार्ट सिटी’ की कोई तय परिभाषा नहीं है. मोदी सरकार न वादा किया था कि जो 100 स्मार्ट शहर होगं वहां पर न सिर्फ़ बिजली और ऊर्जा की कमी पूरी करने वाली इमारतें होंगी बल्कि सीवेज के पानी कूड़े और ट्रैफ़िक जैसी तमाम बुनियादी समस्याओं से निबटने के लिए नई टेक्नॉलजी का इस्तेमाल भी होगा.
‘स्मार्ट सिटी योजना’ का क्या हुआ ?
2018 में मोदी सरकार ने स्मार्ट सिटीज़ मिशन के लिए देश के 100 शहरों को चुना था. इसके लिए एक डेडलाइन तय की गई थी जो अब पीछे छूट गई है और अब इन 100 शहरों क स्मार्ट होने में 2023 तक का वक्त लगेगा क्योंकि सरकार ने नई डेडलाइन 2023 तक की दी है. इस योजना के तहत हर स्मार्ट सिटी के लिए बजट देने की बात कही गई थी उसको लेकर भी कोई सकारात्मक प्रगति नहीं हो पाई है.
दिसंबर 2018 तक सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन के 5, 151 योजनाओं को मंज़ूरी दे दी थी जिसका बजट 2,000 बिलियन रुपयों के क़रीब था. जनवरी, 2019 में सरकार की ओर से कहा गया कि इसकी 39% योजनाएं या तो जारी हैं या फिर पूरी हो चुकी हैं. इसके अलावा सरकार ने इस बारे में कोई और जानकारी नहीं दी.
क्या कहते हैं आंकड़े ?
अगर आप आंकड़ों पर गौर करें तो ये बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकार ने ‘स्मार्ट सिटी योजना’ के लिए जो रकम दी है वो बहुत कम है. जब ये योजना शुरु हुई यानी 2015-16 में इस योजना के लिए 166 बिलियन रुपये आवंटित किए गए थे. 2019 में सरकार ने कहा कि 166 बिलियन रुपयों में से सरकार ने सिर्फ 35.6 बिलियन ही खर्च कर पाए. यानी सिर्फ 21 फीसदी पैसा सरकार खर्च पाई.
शिकायत ये भी आ रही है कि ‘स्मार्ट सिटी योजना’ में जो पैसा खर्च किया गया उसका 80 फीसदी हिस्सा शहर के किसी एक हिस्से के कायाकल्प में ही लगा दिया गया. संसदीय समिति की एक रिपोर्ट ने कहा है कि जो एजेंसियां इन योजनाओं को लागू करने के लिए ज़िम्मेदार हैं उनके साथ ताममेल की मी है और स्मार्ट सिटी योजना का असर लोगों पर नजर नहीं आ रहा. हालांकि सरकार का कहना है कि हमने इस योजना पर काफी काम किया है और अगर 2019 तक हमारे आधे प्रोजेक्ट भी पूरे हुए हैं तो ये बहुत है.