10 मार्च को लोकसभा चुनाव का एलान होने से पहले बीजेपी अध्यक्ष के आखिरी दांव ने बीजेपी की बड़ी समस्या का समाधान कर दिया है. पिछले करीब तीन महीनों से ये संकेत मिल रहे थे कि यूपी में बीजेपी के सहयोगी दल नाराज चल रहे हैं और वो बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं लेकिन आखिरी वक्त में बीजेपी अध्यक्ष ने काम कर दिया.
यूपी में बीजेपी के दो प्रमुख साथी एसबीएसपी (सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) और अपना दल-एस उसका साथ छोड़ने की तैयारी कर चुके थे. अपना दल एस की मुखिया तो प्रियंका गांधी से मिल भी चुकी थीं. लेकिन आखिरी वक्त में यानी लोक सभा चुनाव की आचार संहिता लगने से चंद घंटों पहले बीजेपी मुखिया ने दांव चला और काम होगा. अब ये दोनों पार्टियां बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने की बात कह रही हैं.
रूठों को मनाने में कामयाब हुई बीजेपी
हिंदुस्तान टाइम्स की खबर कहती है कि बीते रविवार को जब लोक सभा चुनाव के कार्यक्रम की घोषणा होने वाली थी उससे कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार ने राज्य के विभिन्न निगम-मंडलों के प्रमुखों की नियुक्तियों का आदेश जारी किया था. दरअसल ये कोशिश थी रूठों को मनाने की थी. यूपी में कुल 72 नेताओं का उपकृत किया गया. इनमें 15 नेता सहयोगी दलों के हैं. इस सूची के जारी होने के बाद एसबीएसपी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर का बयान ये आया कि,
‘भाजपा ने हमारी तरफ़ ईमानदारी से क़दम बढ़ाया है. निश्चित रूप से अब हम उसकी तरफ़ दो क़दम चलेंगे. हम लोक सभा चुनाव भी साथ मिलकर लड़ेंगे.’ इसी तरह अपना दल के नेता अरविंद शर्मा कहते हैं, ‘हम भाजपा के रवैये से पूरी तरह संतुष्ट हैं.’
ये वही ओमप्रकाश राजभर हैं जो कभी बीजेपी पर जमकर हमला करते थे. यहां आपको ये भी समझना चाहिए की बीजेपी के लिए सहयोगी दल कितने जरूरी है. बीजेपी ने 2014 का लोक सभा चुनाव अपना दल के साथ लड़ा था. दोनों पार्टियों ने राज्य की 80 में 73 सीटें जीती थीं. 2017 में यूपी विधानसभा चुनाव बीजेपी ने एसबीएसपी के साथ लड़ा और तीन चौथाई बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाई. लेकिन बीजेपी से दोनों दल नाराज चल रहे थे जिन्हें शाह के आखिरी दांव से मनाया गया है.