Site icon Rajniti.Online

लोकसभा चुनाव 2019: वो युवा नेता जिनके हाथ में भविष्य की राजनीति होगी


भारत दुनिया का सबसे जवान देश है. बड़ी आबादी जवान है और 2019 के लोकसभा चुनाव में 282 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां पहली बार वोट करने वाले युवा निर्णायक भूमिका में होंगे. तो ये जरूरी हो जाता है कि युवा नेताओं की बात करें.

हिन्दुस्तान को जिन युवा नेताओं से उम्मीद है वो उम्मीदों पर कितना खरा उतरेंगे ये महत्वपूर्ण प्रश्न है. भारत में युवा नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. युवा नेतृत्व का उभरना अच्छा संकेत है लोकतंत्र के लिए. कुछ युवा नेता ऐसे हैं जिन्हें राजनीति विरासत में मिली और कुछ युवा नेता ऐसे हैं जिन्होंने अपने दम पर राजनीति में जगह बनाई है. भारत की राजनीति में हमेशासे नए और युवा चेहरों से उम्मीद की जाती रही है. यही कारण है कि हर नेता भाषणों में युवाओं की बात करता है. फिर चांहे वो मोदी हैं जो 2014 के लोकसभा चुनाव में युवाओं को वोट बटोरने में कामयाब रहे. या फिर राहुल गांधी हों जो इस बार युवाओं को कांग्रेस में लाने की कोशिश कर रहे हैं. पिछले कुछ सालों में हिन्दुस्तान की राजनीति में युवाओं की भूमिका अहम हुई है और यही कारण है कि युनीवर्सिटी से लेकर राज्यों और केंद्र तक में युवा चेहरे सामने आए हैं जिनमें नेतृत्व की संभावना दिखाई देती है. फिर चाहें वो जेएनयू विवाद के बाद उभरे नेता हों या फिर गुजरात की तिकड़ी हो. यूपी बिहार में परिवारवाद से निकले नेता हों. या फिर सहारनपुर हिंसा के बाद दलित नेता के तौर पर उभरे चंद्रशेखर आज़ाद हों. ये समझना जरूरी हो जाता है कि इन नेताओं में भविष्य के भारत में नेतागीरी करने की कितनी संभावना है. तो चलिए सिलसिलेवार तरीके से युवा चेहरों पर नजर डालते हैं.

अखिलेश यादव

जब बात आती है युवा नेताओं की तो इस सूची में सबसे ऊपर है यूपी के पूर्व सीएम, मुलायम सिंह यादव के बेटे और सपा के मुखिया अखिलेश यादव का. युवा चेहरों में ये सबसे बड़ा नाम जिससे लोगों को काफी उम्मीदें हैं. अखिलेश यादव को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता राजनीति में लंबे वक्त से सक्रिय हैं. उनके पिता यूपी की राजनीति के पुरोधा हैं और लंबे वक्त तक उनके हाथ में देश के सबसे बड़े सूबे की कमान रही. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में लंबे समय तक शासन किया है अखिलेश यादव के पिता ने. यही कारण है कि उन्हें राजनीति में आने का मौका मिला. जब 2012 में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए तो किसी ने नहीं सोचा था कि मुलायम ख़ुद पीछे हटकर राज्य की सत्ता बेटे अखिलेश के हाथों में सौंपेंगे. ये राजनीति के जानकारों के लिए हैरत में डालने वाला फैसला था. लेकिन अखिलेश यादव ने सीएम बनने के बाद जिस तरह से खुद को साबित किया उसने उन्हें हमारी इस फेहरिस्त में पहले पायदान पर पहुंचा दिया. सीएम बनने के बाद उन्होंने पार्टी के गुंडा एलिमेंट पर लगाम लगाई. विकास कार्यों को आगे बढ़ाया. अखिलेश के कामों के कारण ही जब 2017 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीती तो लोग अखिलेश के काम को याद करना नहीं भूले. हां ये बात अगर है कि उनके शासनकाल में कानून व्यवस्था सवालों के घेरे में रही. अखिलेश का राजनीति अपने पिता से अगल है, 2017 में उन्होंने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली और बड़ी बेबाकी से कांग्रेस के साथ गठबंधन किया. इसके बाद इस बार लोकसभा चुनाव में मायावती की बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन किया है. मीडिया के साथ भी वो काफी सहज नजर आते हैं और 2019 के चुनाव में बड़े नेताओं के तौर पर उभर सकते हैं. कुछ लोग तो उनमें पीएम बनने की संभावना भी देखते हैं. हालांकि मौजूदा वक्त में उनकी राजनीति बसपा के सहारे ज्यादा नजर आती है.

तेजस्वी यादव

हमारी इस फेहरिस्त में दूसरे नंबर पर हैं बिहार के नेता तेजस्वी यादव. तेजस्वी दूसरे नंबर का सबसे बड़ा चेहरा हैं क्योंकि उन्होंने अपने पिता लालू यादव के जेल जाने के बाद ना सिर्फ पार्टी को संभाला बल्कि पार्टी को आगे लेकर गए. अखिलेश की तरह तेजस्वी को भी राजनीति विरासत में मिली लेकिन उन्होंने इसका बखूबी इस्तेमाल किया. भारतीय राजीनित पर लालू की सोशल इंजीनियरिंग ने अमिट छाप छोड़ी है. लेकिन लालू के दामन पर लगे चारा घोटाले के दाग ने उनकी राजनीति की कमर तोड़ दी. चारा घोटाले के मामलों में सज़ायाफ्ता लालू की पार्टी ने 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीटें जीती थीं. हालांकि, जनप्रतिनिधि कानून पर आए सुप्रीम कोर्ट के 2013 फैसले की वजह से लालू चुनाव लड़ने के योग्य नहीं थे. ऐसे में पार्टी की कमान भले ही लालू के हाथ में थी लेकिन विधानसभा में इसका प्रतिनिधित्व तेजस्वी के हाथों में चला गया. महागठबंधन की नीतीश कुमार वाली सरकार में तजस्वीर डिप्टी सीएम के पद पर तैनात हुए. इसके बाद तेजस्वी ने अपनी राजनीति को चमकाने का काम शुरू किया. तेजस्वी ने इन दिनों बिहार की राजनीति में सबसे तेजी से चमकते युवा चेहरों में शामिल हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि बिहार के वर्तमान नेताओं में से तेजस्वी सोशल मीडिया स्टार हैं और उनके ज़्यादातर ट्वीट्स सुर्खियों में तब्दील हो जाते हैं. जाति आधारित मामलों में 13 प्लाइंट रोस्टर से लेकर सवर्णों को मिले आरक्षण पर तेजस्वी ने सामाजिक न्याय की वही लाइन अपनाई है जो उनके पिता की लाइन रही है. पिता की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल की कमान बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी के हाथों में है. 2015 से अभी तक तेजस्वी की राजनीति देखकर ये लगता है कि उनमें काफी संभावना है.

चिराग पासवान

युवा नेताओं की सूची में तीसरे नंबर पर हैं बिहार के ही युवा नेता चिराग पासवान. इन्हें भी राजनीति विरासत में मिली. चिराग के पिता राम विलास पासवान बिहार से लेकर केंद्र तक में दिग्गज नेता रहे हैं. चिराग अपने पिता की लोक जनशक्ति पार्टी भविष्य के चिराग हैं और पार्टी की कमान उन्हीं के हाथों में है. शुरुआत में सिने जगत में अपना हाथ आजमाने वाले चिराग को जब उस क्षेत्र में सफलता नहीं मिली तो वो राजनीति में चले आए. जिस तरह से पासवान बिहार की एक दलित जाति के नेता हैं उस जाति के नेता जो बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका में है उसी तरह चिराग भी अब अपने पिता की जगह ले रहे हैं. हालांकि चिराग ने कभी अपने आप को युवा नेता के तौर पर पेश नहीं किया. हालांकि, हाल ही में उनके पिता की पार्टी के एनडीए के साथ हुए गठबंधन में उनकी अहम भूमिका बताई जा रही है. 2019 में चिराग मैदान में उतरने वाले हैं और देखना होगा कि पासवान का चिराग कितनी चमक पैदा करता है.

जिग्नेश मेवानी

हमारी इस फेहरिस्त में चौथे पायदान पर हैं जिग्नेश मेवानी…प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात से आने वाले इस युवा नेता ने सीधे पीएम मोदी को चुनौती दी है. गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में मेवानी स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में उतरे और वडगाम सीट से जीत हासिल की.  हालाकिं मेवानी के ख़िलाफ़ अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करके कांग्रेस ने उन्हें अपना अप्रत्यक्ष समर्थन दिया था. गुजरात के अहमदाबाद में जन्मे मेवानी दलितों के ख़िलाफ़ उना हुई हिंसा के बाद धीरे-धीरे सुर्खियों में आए और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मेवानी को लेकर अभी तक देशद्रोह या ऐसा कोई और विवाद नहीं हुआ है और उनकी छवि एक पढ़े लिखे दलित युवा नेता की है. अंग्रेज़ी सहित्य की पढ़ाई करने वाले मेवानी ने पत्रकारिता की पढ़ाई करने के अलावा लॉ की भी पढ़ाई की है. वो विधायक हैं. वकील हैं और दलित समुदाय में धीरे धीरे पकड़ मजबूत कर रहे हैं. कई सामाजिक आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लिया है. अभी तक आए नामों में वो भारतीय राजनीति में सबसे सक्रिय युवा चेहरा हैं. हालांकि, वो 2019 का आम चुनाव लड़ेंगे या नहीं ये साफ नहीं है.

हार्दिक पटेल

गुजरात का ये युवा चेहरा पांचवे पायदान पर इसलिए है क्योंकि पाटीदारों के इस युवा नेतता ने सत्ता की नाक में दम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. पटीदार आंदोलन के इस अगुआ ने पीएम नरेंद्र मोदी के गढ़ में उनको तब चुनौती दी जब मोदी अपनी सबसे मज़बूत स्थिति में थे. 2015 में शुरू हुए पाटीदार आंदोलन के केंद्र पाटीदार समाज के लिए आरक्षण की मांग है. इससे जुड़े प्रदर्शन इतने ज़ोरदार रहे कि हार्दिक के ख़िलाफ़ देशद्रोह जैसे काले कानून तक का इस्तेमाल करना पड़ा. 2015 में हार्दिक ने पटेल अनामत आंदोलन समिति का गठन किया जिसकी मांग ये थी कि गुजरात में समृद्ध स्थिति में होने के बावजूद पटेलों को ओबीसी समुदाय में शामिल किया जाए. महज़ 25 साल की उम्र में गुजरात के इस नेता ने भविष्य की उम्मीदें जगाने का काम किया. कहना ग़लत नहीं होगा कि 182 सीटों वाले राज्य में जैसे तैसे 99 सीटें जीतने वाली बीजेपी को तब भारी नुकसान होता जब हार्दिक चुनाव लड़ रहे होते. उनके चुनाव नहीं लड़ने की वजह से पटेलों का वोट कांग्रेस की ओर नहीं मुड़ा जिससे बीजेपी फायदे की स्थिति में रही. लेकिन 2019 में वो मैदान में उतर रहे हैं. और कांग्रेस की टिकट पर वो यहां हुंकार भरेंगे.

अल्पेश ठाकोर

छठा नंबर है गुजरात के ही नेता अल्पेश ठाकोर का. अल्पेश बिहार में कांग्रेस के प्रभारी हैं और युवा के एक बड़े तबके को उनसे काफी उम्मीदें हैं. हालांकि पिछले साल वो महाराष्ट्र के राजे ठाकरे सरीखी राजनीति करने लगे क्योंकि उन्होंने बिहारियों को घेरने की कोशिश कि जिससे गुजरात में रह रहे कई बिहारियों को पलायन करना पड़ा था. जब इस मामले ने तूल पकड़ा तो उन्होंने अपने हाथ पीछे खींच लिए. उनकी इस हरकत ने कांग्रेस काफी नुकसान किया और उनकी छवि को काफी धक्का लगा. फिलहाल उन्हें लेकर ये अटकलें लगाई जा रही थी कि वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जा सकते हैं. खैर इन सबके बाद भी वो गुजरात में क्षत्रीय-ठाकोर सेना का गठन करने के बाद युवा नेता के तौर पर उभरे हैं. ठाकोर राधनपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और 2015 में गुजरात में हुए पटीदार आंदोलन के बाद ठाकोर ने एससी, एसटी और ओबीसी समुदाय वालों के लिए आरक्षण को लेकर एक आंदोलन भी किया था. मेवानी की तरह वो भी राज्य की राजनीति तक ही सिमटे हैं और अभी तक के मौजूदा तथ्यों के हिसाब से तो उनके राष्ट्रीय राजनीति में आने के कोई आसार नहीं है.

कन्हैया कुमार

सांतवे नंबर पर हैं कन्हैया कुमार. जेएनयू में हुए कथित देशद्रोह के बाद छात्र राजनीति से राष्ट्रीय स्तर की लाइमलाइट में आए कन्हैया से देश के एक तबके को बड़ी उम्मीदें रही हैं. कन्हैया को लेकर जब विवाद शुरू हुआ था और उनसे जब राजनीति में आने से जुड़ा सवाल पूछा गया था तो उन्होंने कहा था कि वो अपनी पीएचडी में व्यस्त है और राजनीति में नहीं आने वाले. लेकिन ताज़ा हाल ये है कि वो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) की टिकट पर बिहार के अपने गृहनगर बेगुसराय से चुनाव लड़ने वाले हैं.

जेएनयू में कन्हैया ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (एआईएसएफ) के बैनर तले राजनीति करते थे. एआईएसएफ सीपीआई का छात्र संघ है. अब वो उस लेफ्ट की उम्मीद हैं जो पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और केरल में मजबूत तो है लेकिन सरकार में सिर्फ केरल में ही बची है. ऐसे में देखने वाली बात होगी कि क्या कन्हैया लेफ्ट के नरेंद्र मोदी साबित होते हैं क्योंकि उनमें भी राजनीति की समझ है और लोग उनमें उम्मीद देखते हैं.

सचिन पायलट

राजस्थान के उपमुख्यमंत्री हैं सचिन पायलट, कांग्रेस के युवा नेताओं में उनका अपना कद है और राजस्थान में कांग्रेस की वापसी का श्रेय उन्हें जाता है. राहुल गांधी के करीबी सचिन पायलट इन दिनों कांग्रेस की राजस्थान की बड़ी उम्मीद है. सचिन पायलट युवा हैं और लोगों राजनीति में उनको काफी काम करना है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया

मध्यप्रदेश में चुनाव प्रभारी संभालने वाले सिंधिया को भी राजनीति विरासत में मिली. लेकिन उन्होंने अपनी जमीन खुद तैयार की है. राजघराने से आने के बाद भी उन्होंने लोगों से संवाद खत्म नहीं किया और मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की 15 साल पुरानी सत्ता छीनने में उनकी बड़ी भूमिका है. वो पश्चिम यूपी के प्रभारी बनाए गए हैं और उनसे कांग्रेस को उम्मीद है कि वो यूपी में कांग्रेस को जिंदा करने में मदद करेंगे.  

इन नेताओं के अलावा आप आदित्य ठाकरे, अनुराग ठाकुर और जयंत चौधरी को भी इस फेहरिस्त में जोड़ सकते हैं. आप इन सबकी राजनीति से सहमत असहमत हो सकते हैं. लेकिन इस बात की भारी संभावना है कि भारत के भविष्य की राजनीति में अगर कोई करिश्मा नहीं होता तो देश की कमान इन नेताओं के हाथों में ही होगी. स्पेशल डेस्क स्वदेश न्यूज़

Exit mobile version