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लोकसभा चुनाव: सपा-बसपा-रालोद मिलकर क्या बीजेपी को रोक पाएंगे ?

यूपी में गठबंधन इस बार कितना कारगर रहेगा. इस प्रश्न का जवाब आपको यूपी गणित को समझ कर मिल पाएगा. अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल, अखिलेश की सपा और मायावती की बसपा, ये तीनों पार्टियां यूपी के पश्चिमी हिस्से में क्या कमाल करेंगी. इसके लिए यहां के गणित का समझें.

एलान हो गया है लेकिन अंजाम क्या होगा इसको समझने के लिए पश्चिम उत्तर प्रदेश की 22 लोकसभा सीटों के गणित को समझना जरूरी है… गठबंधन की बात करें तो मायावती इसमें सबपर भारी पड़ी हैं और वो 22 में से 11 सीटों वो मैदान में उतरेंगी.. मुस्लिम के साथ-साथ जाटों के मूड से यहां चुनाव का नतीजा तय होता है. ऐसे में जाटों की पार्टी मानी जाने वाली राष्ट्रीय लोकदल यहां निर्णायक भूमिका में है…लेकिन जाट किस पाले में जाएंगे ये कहना मुश्किल है क्योंकि 2014 और 2017 के चुनाव में बीजेपी ने इस वोट को अपने पाले में लाने में कामयाबी हासिल की थी…

17 फीसदी जाट या 33 फीसदी मुस्लिम?

पश्चिमी यूपी में 17 पर्सेंट जाट और 33 पर्सेंट मुस्लिम वोट हैं…इस  वोटबैंक के बैलेंस से यहां चुनाव जीता जा सकता है…और गठबंधन इस बैलेंस पर फोकस कर रहा है…हालांकि मुसलमान वोट को लेकर संशय है क्योंकि कांग्रेस भी पूरी ताकत लगा रही है और 2015 में यूपी के उपचुनावों में देवबंद से कांग्रेस उम्मीदवार को जीत मिली थी.

कांग्रेस के पास जाएगा मुसलमान

देवबंद सीट का जिक्र इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह जगह धर्मिक आधार पर काफी मायने रखती है. बीजेपी की प्रचंड लहर के बाद इस सीट से कांग्रेस उम्मीदवार का चुना जाना साफ इशारा करता है कि मुस्लिमों के लिए कांग्रेस की चमक फीकी नहीं पड़ी है. देखना ये भी अहम है कि क्या मुसलमान वोट काटने में बसपा और सपा कामयाब होंगे…क्योंकि ये वोट बंटने की संभावना है.

वीओ- सवाल ये है कि जाट वोट क्या गठबंधन को मिलेगा क्योंकि  2014 के लोकसभा चुनाव में जाट वोटर आरएलडी का साथ छोड़ बीजेपी का रुख कर चुका है…समाजवादी पार्टी मुस्लिम-यादव समीकरण के बल पर सत्ता तक पहुंचती रही है. वहीं जयंत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल मुस्लिम-जाट वोट बैंक के बल पर अपना वजूद बचाए हुए है. हालांकि इस बार ये समीकरण कुछ अलग हैं…बीते विधानसभा चुनाव में आरएलडी को कुल 9 सीटें मिली थीं.

जाट और मुस्लिम दोनों ही वर्ग आरएलडी के वोटर रहे हैं…2012 के मुजफ्फनगर दंगों के बाद जाट और मुस्लिम के बीच की दूरी लगातार बढ़ती रही है. ऐसे में दोनों वर्गों को एक साथ लाना काफी मुश्किल है…छोटे चौधरी की आरएलडी इन दिनों अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. ऐसे में पार्टी को अपना वजूद बचाए रखने के लिए सहारे की जरूरत थी….और गठबंधन वो सहारा बना है

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