पर्यावरण को बिगाड़ने में ईंधन की बड़ी भूमिका है. साफ ईंधन की खोज के लिए वैज्ञानिकों के दल लगातार शोध कर रहे हैं. इन्हीं शोधों का नतीजा है कि अब डीजल, पेट्रोल, सीएनजी के बाद हाइड्रोजन तक हम आ गए हैं. दुनिया के कई देश इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं जिनमें बेल्जियम सबसे आगे है.
बेल्जियम ने हाईड्रोजन से चलने वाली बसों को डिजायन किया है. वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए इन बसों को डिजायन करना आसान नहीं रहा. लेकिन कामयाबी मिलने के बाद अब भविष्य में हाईड्रोजन ईंधन का विकल्प बन सकता है. बेल्जियम के सार्वजनिक परिवहन में हाइड्रोजन से चलने वाली बसें शामिल करने की तैयारी शुरु हो गई है.
हाइड्रोजन के दो अणु ऑक्सीजन के एक अणु से मिल कर पीने का पानी बनाते हैं. इसी पानी से हाइड्रोजन को अलग कर के उससे ऊर्जा हासिल की जाती है. हालांकि वैज्ञानिक ये भी कहते हैं कि हाइड्रोजन से ऊर्जा हासिल करने के लिए इसे ऑक्सीजन से अलग करना एक महंगा और मुश्किल भरा काम होता है. बसों को हाइड्रोजन से चलाने के लिए जरूरी है फ्यूल सेल, यानी इसे ऊर्जा देने वाली बैटरी. इस बैटरी को बनाना आसान नहीं है.
जीवाश्व ईंधन पर नर्भरता कम होगी
हाईड्रोजन से चलने वाली ये बसें हाइब्रिड फ्यूल सेल वाली हैं. हाइब्रिड का मतलब है कि बस को खींचने वाली ऊर्जा दो स्रोतों से आएगी. एक है फ्यूल सेल जो सीधे इलेक्ट्रिक मोटर को बिजली मुहैया कराती है, और दूसरी बैटरियों से ऊर्जा आएगी. ये बसें बैटरी और खास स्टेशनों से ईंधन हासिल करेंगे. जिन बसों को सड़क पर उतारा जा रहा है उनके हाइड्रोजन की टैंक को भरने में करीब 11 मिनट लगते हैं. शहरों में बढ़ते प्रदूषण को रोकने के साथ ही जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम साबित हो सकता है. अगर ये प्रयोग सफर रहा तो आने वाले समय में पर्यावरण को बचाने के लिए इस दिशा में कई देश आगे बढ़ सकते हैं.