Artical 35A: सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई, जम्मू कश्मीर में हाय-तौबा

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भारतीय संविधान की धारा या अनुच्छेद 370 के जरिये ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है. यही धारा है जो जम्मू कश्मीर की विधानसभा को दूसरे राज्यों की तुलना में कई विशेषाधिकार देती हैं. लेकिन क्या ये हटाई जा सकती है. ये समझना जरूरी है.

भारतीय संविधान की धारा या अनुच्छेद 370 के जरिये ही जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिलता है. यही धारा है जो जम्मू कश्मीर की विधानसभा को दूसरे राज्यों की तुलना में कई विशेषाधिकार देती हैं. लेकिन क्या ये हटाई जा सकती है. ये समझना जरूरी है.

क्या है धारा 370 ?

1947 में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक्त जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह स्वतंत्र रहना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने कुछ शर्तों के साथ भारत में विलय के लिए सहमति जताई. इसके बाद भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया गया जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार मिला. इसा धारा के तहत है राज्य के लिए अलग संविधान की मां की गई. 1951 में राज्य को संविधान सभा को अलग से बुलाने की अनुमति मिली और नवंबर, 1956 में संविधान का काम पूरा हुआ. 26 जनवरी, 1957 को जम्मू कश्मीर में विशेष संविधान लागू कर दिया गया.

धारा 370 के मायने?

धारा 370 में केंद्र सरकार से जम्मू-कश्मीर के रिश्तों की रूपरेखा है. प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने करीब 5 महीनों की बातचीत के बाद इसे संविधान में जोड़ा था. इसके तहत रक्षा, विदेश नीति और संचार मामलों को छोड़कर किसी भी मामले से जुड़ा क़ानून बनाने और लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की अनुमति चाहिए होगी. धारा 370 के कारण ही जम्मू कश्मीर में धारा 356 लागू नहीं होती. इसका मतलब ये है कि राज्य के संविधान को बर्खास्त करने का अधिकार भारत के राष्ट्रपति के पास नहीं है.

35A के क्या है मायने?

धारा 370 के चलते जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है, अलग राष्ट्रध्वज अलग होता है और यहां विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है. बात जम्मू कश्मीर के संविधान की करें तो इसमें धारा 35A का जिक्र है. ये धारा स्थायी निवासी प्रावधान का जिक्र करती है और ये धारा 370 का हिस्सा है. इस धारा का मतलब ये है कि कश्मीर में भारत के किसी दूसरे राज्य का निवासी किसी तरह की प्रापर्टी नहीं खरीद सकता. धारा 360 के तहत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है लेकिन 370 की वजह से वो भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता.यहां आपको जानकारी दे दें कि राज्य में आपालकाल सिर्फ दूसरे देश से युद्ध के हालात में लग सकता है.

राष्ट्रपति राज्य को लेकर कोई बड़ा निर्णय तभी ले सकते हैं जब राज्य की ओर से सिफारिश की जाए. अब जब सवाल उठ रहा है कि इस धारा को खत्म कर देना. तो सवाल ये है कि क्या पीएम मोदी इसे खत्म करेंगे. क्या ये संभव है.

क्या 370 को संविधान से हटाया जा सकता है?

दिसंबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात कही थी. सर्वोच्च अदालत ने कहा था की धारा 370 को संविधान से हटाने का फैसला सिर्फ संसद कर सकती है. तत्कालीन चीफ़ जस्टिस एचएल दत्तू की बेंच ने उस वक्त कहा था,

”क्या ये कोर्ट का काम है? क्या संसद से कह सकते हैं कि ये आर्टिकल हटाने या रखने पर वो फ़ैसला करें, ये करना इस कोर्ट का काम नहीं है.”

2015 में जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने भी कहा था कि संविधान के भाग 21 में ”अस्थायी प्रावधान” शीर्षक होने के बावजूद अनुच्छेद 370 एक स्थायी प्रावधान है और धारा 370 के खंड 3 के तहत इसे निरस्त और संशोधित नहीं किया जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा था कि जम्मू कश्मीर देश के बाकी राज्यों की तरह भारत में शामिल नहीं हुआ है और इसनें भारत के साथ संधि पत्र पर हस्ताक्षर करते वक्त अपनी संप्रभुता कुछ हद तक बकरार रखी थी. लिहाजा इस पर किसी का जोर नहीं चल सकता.

मोदी क्या धारा 370 खत्म कर सकते हैं ?

याद कीजिए 2014 का लोकसभा चुनाव. जब पीएम मोदी ने धारा 370 का बहुत जिक्र किया था बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में धारा 370 को खत्म करने की बात कही थी. बीजेपी लगातार इसका विरोध करती रही है. लेकिन हैरानी इस बात की है कि बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद चुप्पी साध ली और पीडीपी के साथ गठंबधन की सरकार जम्मू कश्मीर में बना ली. जो बाद में गिर गई. मोदी और बीजेपी के तमाम नेता ये मानते आए हैं कि धारा 370 को संविधान निर्माताओं की ग़लती है. लेकिन बीजेपी की सरकार अभी तक इसको लेकर कोई कदम नहीं उठा पाई है. वहीं जम्मू कश्मीर के क्षेत्रीय दल इसके हिमायती रहे हैं.

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